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गायत्री जयंती

Jyeshtha Gayatri Jayanti

गायत्री की उत्पत्ति

माना जाता है कि संपूर्ण सृष्टि के सभी प्राणियों के अंदर चार प्रकार की विशेष दैवीय चेतना का संचार एवं अनुगमन होता है जो इस प्रकार हैं— 1. ऋक् अर्थात 'कल्याण', 2. यजु यानी 'पौरुष', 3. साम का तात्पर्य 'क्रीड़ा' से है 4.अथर्व का अर्थ, 'अर्थ' है।

वेदों एवं पुराणों के अनुसार मनुष्य की आंतरिक प्राणधारा इन चारों के अतिरिक्त कहीं और कदापि नहीं हो सकती है। इसमें ऋक् को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम एवं अथर्व को अर्थ भी कह कर संबोधित किया गया है। इन्हें ही ब्रह्मा जी के चार मुख का वास्तविक स्वरूप माना जाता हैं।

ब्रह्माजी की उत्पत्ति के समय उनके केवल एक मुख था किंतु उनकी कार्यक्षमता अर्थात एक मुख से ही चार प्रकार के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानों का प्रसार करना के कारण ही उन्हें चार मुख वाला चतुर्मुखी कहा जाने लगा। वास्तव में वेद शब्द का मूल अर्थ ज्ञान है। वेद ज्ञान का समुचित संग्रह है जो प्राणियों के अंतःकरण में प्रवाहित होकर श्रेष्ठता प्रदान करता है।

वेद को प्राणियों के अंतर्मन में सुगमता पूर्वक प्रवाह हेतु ही चार भागों में वर्गीकृत किया गया। यह चारों उस एक शक्ति का प्रस्फुटित रूप है, जिसके द्वारा ब्रह्मा जी ने सृष्टि की उत्पत्ति की। इसी शक्ति को गायत्री का नाम दिया जाता है। अतः इसी कारण गायत्री को वेदों की जननी माना जाता है। इस प्रकार सृष्टि की आरंभ कर्ता गायत्री ही हैं जिनका जन्म कमल के पुष्प से हुआ है।

गायत्री अवतरण

गायत्री को चारों वेदों शास्त्रों एवं शुक्तियों की जननी माना जाता है। चारों वेदों की जन्मदात्री होने के कारण ही इन्हें वेदमाता गायत्री भी कहा जाता है। गायत्री के उपासक स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तीनों हुए हैं।

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सृष्टि के रचयिता कर्ताधर्ता एवं पालन पोषण करने वालों ने भी इनकी उपासना कर गायत्री को सिद्ध किया है। इस कारण इन्हे देवमाता गायत्री कहा जाता है। गायत्री संपूर्ण सृष्टि के ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए इन्हे ज्ञान की गंगा अर्थात ज्ञानगंगा भी माना जाता है। गायत्री को सृष्टि रचयिता ब्रह्मा की दूसरी पत्नी के रूप में भी वर्णित किया गया। पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी आदि देवियों को गायत्री का स्वरूप माना गया है।

सर्वप्रथम गायत्री की उत्पत्ति ब्रह्मा के स्वरूप में ब्रह्मांड में हुई है, तत्पश्चात गायत्री ने ब्रह्मा के स्वरूप से चारों मुख द्वारा चार वेद की रचना की।

गायत्री को सिद्ध शक्ति माना जाता है। इस कारण इसे पूर्व में देवताओं तक ही सीमित रखा जाता था। देवतागण गायत्री को सिद्ध कर संपूर्ण सुख, भक्ति एवं अंतरजगत की खुशियों को का भोग करते थे किंतु बाद में इसे महर्षि विश्वामित्र ने अपने कठोर तप द्वारा संपूर्ण जनमानस हेतु सर्वसाधारण तक पहुंचाने का कार्य किया। इसके लिए गायत्री मंत्र का प्रयोग किया गया।

गायत्री मंत्र एक ऐसा श्रेष्ठतम मंत्र है जिसमें चारों वेदों का सार तत्व निहित है। गायत्री मंत्र का श्रद्धापूर्वक स्मरण करना एवं उसे अपने जीवन में उतारना चार वेदों के ज्ञान समान पुण्यदायी माना जाता है। गायत्री को ही हिंदू सनातन धर्म की अधिष्ठात्री जन्मदात्री माना जाता है।

हालांकि माना जाता है विश्वामित्र द्वारा गायत्री मंत्र का प्रचार-प्रसार केवल ऋषि-मुनि एवं तपस्वियों तक ही किया जा सका जिसके बाद इसके प्रचारक एवं गायत्री मंत्र के महत्व को दुनिया के समक्ष लाने का कार्य पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने किया।

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म 1932 में हुआ। उस वक्त गायत्री व गायत्री मंत्र की उपासना केवल ऋषि, मुनि एवं तपस्वीगण कर सकते थे किंतु उन्होंने गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण हेतु प्रयोग में लाने पर बल दिया एवं इसकी शक्ति का बोध कराया। इसके लिए उन्होंने 3200 पुस्तकें लिखी और जनसाधारण को जागृत किया। विशेष तौर पर महिलाओं के लिए गायत्री मंत्र पर पाबंदी लगाई जाती थी जिसे जन जागरण एवं विचार क्रांति द्वारा स्थापित करने का कार्य किया।

गायत्री जयंती 2021 पर पूजा हेतु शुभ मुहूर्त एवं तिथि

गायत्री जयंती एक आध्यात्मिक पर्व है। इसकी तिथि को लेकर भिन्न-भिन्न धर्मावलंबियों व ज्ञाताओं के अलग-अलग मत हैं। माना जाता है कि गंगा दशहरा और गायत्री जयंती दोनों की समान तिथि होती है तो वहीं कुछ लोग इसे गंगा दशहरा के अगले दिन मनाने का तर्क देते हैं, यानी जेष्ठ मास की एकादशी तिथि को, जबकि कई लोग सावन पूर्णिमा को गायत्री जयंती के रूप में हर्षोल्लास से मनाते हैं।

प्रायः बहुतायत लोग सावन मास की पूर्णिमा तिथि को ही गायत्री जयंती मनाते हैं। जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भी गायत्री जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 2021 में गायत्री जयंती हेतु एकादशी तिथि 21 जून को है। तो आइए जानते हैं इस वर्ष तिथि व शुभ मुहूर्त-

एकादशी तिथि प्रारम्भ:- 20 जून 2021 शाम 04 बजकर 22 मिनट से।

एकादशी तिथि समाप्त:- 21 जून 2021 दोपहर 03 बजकर 30 मिनट पर।

आज क्या करें विशेष

गायत्री जयंती के दिन विधिवत तौर पर षोडशोपचार पूजन द्वारा गायत्री की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम माता गायत्री की प्रतिमा को स्थापित कर लेना चाहिए, साथ ही एक कलश एवं अखंड दीपक भी जलाना पुण्यदायी माना जाता है। तत्पश्चात कर्मकांड की विधिवत प्रक्रिया अनुसार षोडशोपचार पूजन के साथ माँ गायत्री का पूजन करें।

इस दिन व्रत- उपवास रखने का भी विधान है। कुछ साधु तपस्वी लोग इस दिन केवल फलाहार अथवा जल आहार ही करते हैं। इस दिन गायत्री मंत्र का अधिक से अधिक बार जप करना चाहिए। आज के दिन गायत्री मंत्र के जप का संस्मरण मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। आज से नियमित गायत्री मंत्र जप और सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने का संकल्प भी लें।

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