हिंदू धर्म में पूजन करने हेतु अनेकानेक प्रकार की विधियां निहित है, जैसे कि पंचोपचार (5 प्रकार), दशोपचार (10 प्रकार), षोडशोपचार (16 प्रकार), द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार), एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार) इत्यादि। इनमें से षोडशोपचार पूजन का विशेष महत्व है। किसी भी पर्व-त्योहार, व्रत-उपवास आदि के पूजन कर्म में षोडशोपचार पूजन का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। इस विधि द्वारा व्यक्ति 16 प्रकार से अपने आराध्य देवी-देवताओं का पूजन कर पाते हैं ।
षोडशोपचार पूजन की विधि विस्तृत तौर पर कर्मकांड भास्कर में निहित है। इसमें षोडशोपचार पूजन के सभी उपचार पूजन प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में भी षोडशोपचार पूजन का सविस्तार वर्णन किया गया है।
आइए आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से षोडशोपचार पूजन की पूरी प्रक्रिया के संबंध में विस्तार से बताते हैं ताकि आप इस पूजन विधि को समझ सके। आप सुगमता पूर्वक हिंदी में अर्थ और महत्व को समझ कर षोडशोपचार पूजन की प्रक्रिया से अपने घर में पूजन कर सकते हैं।
षोडशोेपचार पूजन की 16 अलग-अलग विधियां नीचे दी गई है जिनके माध्यम से आप देवी-देवताओं का उपचार पूजन कर स्वयं को अपने इष्ट का कृपा पात्र बना सकते हैं। आइए जानते हैं षोडशोपचार पूजन के 16 आयाम-
षोडशोपचार पूजन कर्म
1. प्रथम उपचार: देव आवाहन (देवताओं का आवाहन करना अर्थात बुलाना)
देव आवाहन की प्रक्रिया से व्यक्ति सर्वप्रथम सभी देवी देवताओं का उनके अंग, परिवार, आयुध एवं शक्तियों के साथ आवाहन करता है एवं मूर्ति में प्रतिष्ठित प्राण की पूजा आराधना भी की जाती है। आवाहन के मंत्र उच्चारण के समय जातक को अपने दाहिने हाथ में चंदन, अक्षत, पुष्प, पान, सुपारी, मिष्ठान, जल आदि लेकर मंत्र के अंत में नमः बोलते हुए अपने इष्ट देवी देवताओं अथवा आवाहित देवी देवताओं के चरणों में अर्पित करें।
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2. दूसरा उपचार: देवगण हेतु आसन (देवी-देवताओं के विराजमान होने हेतु स्थान)
देव आवाहन की प्रक्रिया के माध्यम से हम देव गणों को अपने पूजा अर्चना हेतु बुलाते हैं। बुलाने के पश्चात भारतीय परंपरा के अनुसार आदर सत्कार में उन्हें विराजने हेतु अर्थात बैठने हेतु स्थान प्रदान किया जाता है। अतः देवी देवताओं के विराजमान होने हेतु आप भावनाओं के माध्यम से पुष्प अर्पित कर उन्हें सुंदर स्थान प्रदान करने का भाव करें एवं अंत में नमः बोलते हुए पुष्प समर्पित करें।
3. तीसरा उपचार: पाद्य (आवाहित देवी- देवताओं का जल से चरण धोना, पाद-प्रक्षालन)
तीसरे उपचार की पूजन विधि आवाहित देवी- देवताओं के चरण धोने की है जिसमें हम आये हुए देव अतिथियों का चरण धोकर उनका सम्मान करते हैं। इसी भावना के साथ आप ताम्रपत्र में आचमनी से जल अर्पित करें एवं भाव करें कि आप अपने हाथों से प्रभु के चरणों को धो कर अपने सेवा भावना एवं आतिथ्य भाव को प्रकट कर रहे हैं।
4. चौथा उपचार: अर्घ्य (देवताओं के हाथ धुलने के लिए जल देना; हस्त-प्रक्षालन)
चौथे उपचार की पूजन विधि अर्घ्य प्रदान की है। यह देव गणों को हाथ मुँह धुलने के लिए जल देने के समान है। अतः आप पुनः ताम्रपत्र में आचमनी द्वारा जल डालकर आवाहित देवी-देवताओं हेतु अर्घ्य प्रदान करने का भाव करें। आचमनी में जल लेकर उसमें चंदन, अक्षत तथा पुष्प डालकर, उसे मूर्ति के हाथ पर चढाएं।
5. पांचवां उपचार: आचमन (देवों के कुल्ला करने हेतु जल देने की है; मुख-प्रक्षालन)
पांचवा उपचार पूजा आचमन का होता है। आचमन के माध्यम से हम देवी-देवताओं को उनके मुँह धुलने, कुल्ला करने आदि हेतु जल प्रदान करने की भावना रखते हैं। इसी भावना को आत्मसात किए आप पुनः ताम्रपत्र में पानी से जल प्रदान करें।
6. छठा उपचार: स्नान (देव स्नान हेतु )
एक बार फिर आचमनी से जल आप ताम्रपत्र में यह भाव रखते हुए प्रदान करें कि आप अपने आवाहित इष्ट देवी-देवताओं के स्नान हेतु जल प्रदान कर रहे हैं। इसी भाव से जल को ताम्रपत्र में मंत्र समाप्ति पर डालते हुए, नमः का उच्चारण करें। वहीं यदि आपके पास पूजन कर्म में धातु की मूर्ति हो तो आप मूर्ति पर जल का अभिषेक कर देवी-देवताओं को नहलाने का भाव करते हुए अभिसिंचिन करें। जल छिड़कने के पश्चात मूर्तियों को स्वच्छ एवं साफ कपड़े से पोछ दें, फिर उनका श्रृंगार कर पुष्प, अक्षत आदि अर्पित करें।
देवी-देवताओं के स्नान कर्म उपचार पूजन में आप उनका पंचामृत से भी स्नान करवा सकते हैं। इसमें आप दूध, दही, घी, शहद, शक्कर आदि से एक-एक कर अपने आराध्य देवी-देवता का स्नान करवाएं। अंत में उनका जल से स्नान कर साफ वस्त्र से मूर्ति को पोछ दें।
7. सातवां उपचार: देवता को वस्त्र पहनाना
सातवा उपचार पूजन कर्म देवी-देवताओं को वस्त्र धारण करवाने से संबंधित है। इसमें आप प्रतिमा पर नए सुंदर वस्त्र पहनाकर सजाएं, अन्यथा यदि आप सामान्य तौर पर पूजन कर्म कर रहे हैं तो ताम्रपत्र में मोली यानी कलावा के टुकड़ों को डालकर भगवान को वस्त्र अर्पित करने की भावना कर सातवें उपचार कर्म की प्रक्रिया को संपन्न कर सकते हैं।
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8. आठवां उपचार: देवगण को उपवस्त्र यानी यज्ञोपवीत (जनेऊ) अर्पित करना
षोडशोपचार पूजन कर्म में आठवां उपचार देवी-देवताओं को उपवस्त्र धारण करवाने का है। उपवस्त्र अर्थात जनेऊ धारण करवाना। हिंदू धर्म में जनेऊ को सनातनी होने के अस्तित्व प्रतीक माना जाता है। अतः आप मंत्र उच्चारण की प्रक्रिया समाप्त होने पर पुरुष देवताओं को यज्ञोपवीत प्रदान करें, अन्यथा इसे भी आप मौली या कलावे के टुकड़े को ताम्रपत्र में डालकर नमः बोलते हुए यज्ञोपवीत धारण करने की भावना मन में रखते हुए संपन्न कर सकते हैं।
9. नौवां उपचार: तिलक लगाने का
नौवें उपचार में देवी-देवताओं की प्रतिमा पर आप अपनी अनामिका उंगली से रोली से तिलक करें, अन्यथा इस विधि में भी आप पुष्प में रोली चंदन लगाकर ताम्रपत्र में अर्पित करके अपने इष्ट देव के आतिथ्य में उन्हें तिलक लगाने की भावना से पूजन करने की प्रक्रिया संपन्न कर सकते हैं।
10. दसवां उपचार: अक्षत समर्पण
दसवीं प्रक्रिया में आप अपने द्वारा अब तक के किए गए पूजा उपचार के कर्म की क्षति पूर्ति हेतु पीले रंग में रंगे हुए चावल को अक्षत स्वरूप में समर्पित कर मन ही मन या भावना रखे की अब तक की पूजा में जो भी कमी रही उसकी क्षतिपूर्ति हेतु या अक्षत समर्पित कर रहे हैं।
11. ग्यारहवां उपचार: पुष्प (फूल) अर्पण
11वीं प्रक्रिया में आप देवी देवताओं को पुष्प समर्पित कर अपनी श्रद्धा भाव को देव के प्रति प्रदर्शित कर उनका स्वागत आतिथ्य करें।
12. बारहवां उपचार: धूप दर्शन
12वें पूजन कर्म की प्रक्रिया में सुगंधित धूप आदि द्वारा आवाहित देवी-देवताओं की आवभगत की जाती है। इसमें आप अपने आराध्य देव हेतु उपयुक्त एवं प्रिय धूप का प्रयोग कर सकते हैं।
13. तेरहवां उपचार: दीप दर्शन
तेरहवें षोडशोपचार के पूजन करने की प्रक्रिया में आवाहित देवी-देवताओं को दीपक से आरती उतार कर उनका स्वागत करें एवं उनके प्रति अपनी सम्मान भावना को प्रकट करें।
14. चौदहवें उपचार: नैवेद्य (मिठाई) का भोग
वही 14वें षोडशोपचार पूजन की प्रक्रिया में भोग हेतु लाए गए मेवा मिष्ठान का अर्पण कर अपने इष्ट देवी देवताओं को मेवा मिष्ठान से भोग लगाने की भावना करें एवं ताम्रपत्र में मेवा मिष्ठान को समर्पित करें। मेवा मिष्ठान में आपको अधिक सतर्कता एवं शुद्धता बरतने की आवश्यकता है। पूजन कर्म में समर्पित होने वाले नैवेद्य को गाय के दूध एवं घी से बनाने की चेष्टा करें। कोशिश करें कि पूजन कर्म में अर्पित होने वाला खाद्य पदार्थ घर का बना हो एवं शुद्ध सात्विक व स्वच्छ व पवित्र हो।
15. पंद्रहवां उपचार: तम्बूलपुगीफलानी (पान सुपारी) का अर्पण
पंद्रहवें षोडशोपचार पूजन की प्रक्रिया में भगवान को पान सुपारी चढ़ाया जाता है। ध्यान रहे पूजन कर्म में प्रयुक्त की जाने वाली सुपारी कटी हुई ना हो इसके लिए आप छोटी गोल सुपारी का प्रयोग करें एवं डंटल वाली पान को ही पूजन करने हेतु उपयुक्त माना जाता है।
16. सोलहवां उपचार: दक्षिणा समर्पण
हिंदू धर्म के लगभग सभी पूजन कर्म में दान दक्षिणा को विशेष महत्व दिया गया है। अतः षोडशोपचार पूजन की प्रक्रिया के अंत में आप अपनी श्रद्धा भाव एवं सामर्थ्य के अनुरूप दक्षिणा को अपने मस्तक से लगाते हुए किसी ताम्रपत्र में अर्पित कर दें। बाद में से किसी गरीब अथवा मंदिर में दान कर दें।
16 प्रकार से देवी देवताओं का आवाहन के पश्चात पूजन कर्म करने के बाद अंत में सभी त्रुटि, भूल-चूक एवं पाप हेतु क्षमा मांगते हुए ताम्रपत्र में अक्षत समर्पित करें एवं अपने सभी भूलचूक अथवा रही-सही कसर हेतु क्षमा मांग ले।
इस प्रकार षोडशोपचार की पूजन प्रक्रिया का समापन करें। तत्पश्चात आरती आदि की क्रिया कर अपने पूजन कर्म को सफल सार्थक एवं पुण्य फलदाई बनाएं।