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गंगा दशहरा

Ganga Dussehra (Avtaran)

सनातन सभ्यता एवं हिंदू धर्म के अनुसार गंगा नदी सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि देवी का एक स्वरूप है। सनातन धर्म में गंगा को माँ का अवतार माना गया है, इसीलिए हम इन्हें माँ गंगा कह कर बुलाते हैं।

हिंदू धर्म में पौराणिक काल से लेकर अब तक गंगाजल का विशेष महत्व माना गया है, तथा गंगाजल सबसे पवित्र एवं पूजनीय होता है। किसी भी पूजा विधि में लगने वाले वस्तुओं के अलावा गंगाजल का एक विशिष्ट स्थान रहता है। बिना गंगाजल के कोई भी पूजा सफल नहीं मानी जाती।

कहते हैं माँ गंगा का पानी मन के सारे पाप धो देता है एवं यह मनुष्य के सभी कुकर्म को अपने अंदर समा लेता है। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा जैसे पावन पर्व का विशिष्ट महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि माँ गंगा को भावतारिणी, पाप विनाशिनी आदि नामों से जाना जाता है।

पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि गंगा दशहरा का व्रत इसलिए मनाते हैं क्योंकि इस दिन माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ एक बहुत बड़े एवं सकुशल राजा हुए हैं, जिनके वंशज प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, भरत आदि हैं। राजा भगीरथ ने अपने मृत पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए माता गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर आने का आग्रह किया था, एवं शिव की जटा से निकली गंगा पृथ्वी पर पहुंची और उनके पूर्वजों की आत्मा का उद्धार किया, तभी से माँ गंगा को भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है।

गंगा दशहरा हर वर्ष माँ गंगा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिंदी पंचांग के हिसाब से हर साल जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का यह पावन पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। खासकर हरिद्वार जैसे देवभूमि में यह त्यौहार सभी गंगा घाटों पर पूरे धूमधाम से एवं श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है।

इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। गंगा हिमालय से निकलते हुए मुख्यतः हरिद्वार, वाराणसी, बनारस, इलाहाबाद, ऋषिकेश आदि स्थानों पर पूजनीय स्वरूप में अवस्थित है। यह महोत्सव 10 दिनों तक चलता रहता है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में गोता लगाने से 10 प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।

इस साल 2021 में गंगा दशहरा का यह पावन पर्व 20 जून दिन रविवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन माँ गंगा की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करने पर एवं उनका व्रत रखने पर, माँ गंगा भक्तों के सभी कष्ट एवं बाधाएं हर लेती हैं।

बताया जाता है कि माँ गंगा की गोद में यानी की गंगा स्नान करने से एवं इसके पश्चात दान-पुण्य करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। इस लेख के द्वारा हम आपको बताएंगे क्या होता है गंगा दशहरा का महत्व एवं पूजा की सही विधि क्या है और गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त कब है। तो आइये जानते है इस पर्व के पीछे की कथा तिथि, मंत्र एवं शुभ मुहूर्त आदि को।

गंगा दशहरा (अवतरण) 2021 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

गंगा दशहरा: 20 जून 2021, दिन रविवार

दशमी तिथि का आरम्भ: 19 जून 2021 शाम 06 बनकर 50 मिनट से
दशमी तिथि का समापन: 20 जून 2021 शाम 04 बजकर 25 मिनट पर

हस्त नक्षत्र आरम्भ: 18 जून 2021 रात्रि 09 बजकर 40 मिनट से
हस्त नक्षत्र का समापन: 19 जून 2021 रात्रि 08 बजकर 31 मिनट पर

व्यतीपात योग आरम्भ: 18 जून 2021 प्रातः 05 बजकर 05 मिनट से
व्यतीपात योग समाप्त: 19 जून 2021 तड़के सुबह 02 बजकर 49 मिनट (02:49am)

गंगा जी की कथा

बात त्रेता युग से भी पूर्ण आदिकाल की है जब अयोध्या पर राजा सगर का राज हुआ करता था। महाराज सगर की दो पत्नियां थी जिनमें से एक के 60000 पुत्र एवं दूसरी का केवल एक ही पुत्र था।

एक बार की बात है महाराज सगर ने अपने राज्य की सुख, शांति एवं समृद्धि हेतु अश्वमेघ यज्ञ कराने का विचार किया जिसमें यज्ञ की विधि अनुसार अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को राज्य के बाहर छोड़ दिया गया।

राजा इंद्र इसी ताक में थे कि कोई ऐसा अवसर प्राप्त हो जिससे इस यज्ञ को असफल बनाया जा सके। अतएव मौका मिलते ही उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को चुराकर दूर महर्षि कपिल के आश्रम में जाकर छिपा दिया। महर्षि कपिल उत्कृष्ट तपस्वी व्यक्ति थे जो पाताल लोक में प्रवास कर तपस्या करते थे।

घोड़े के बहुत खोजने पर भी ना मिलने पर महाराज सगर चिंतित हो गए एवं उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया। ढूंढते-ढूंढते महाराज सगर के साठ हजार पुत्र खुदाई करते हुए पाताल लोक में महर्षि कपिल के आश्रम जा पहुंचे एवं महर्षि कपिल के समक्ष अपने घोड़े को देखकर उन्हें चोर संबोधित कर चीखने लगे। इस पर ऋषि कपिल ने क्रोध के आवेश में आकर अपने नेत्र खोलें जिससे सगर के 60000 पुत्र तत्काल भस्म हो गए।

इस घटना के बाद सभी मृत आत्माओं की मुक्ति हेतु राजा सगर, तत्पश्चात अंशुमान दिलीप आदि सभी घोर तपस्या करते हैं एवं भूलोक पर मां गंगा के अवतरण हेतु ईश्वर से गुहार लगाते हैं। किंतु उनकी तपस्या असफल रह जाती है और वे मृत्यु के आगोश में समा जाते हैं।

दरअसल गंगा के अवतरण के पीछे का तथ्य यह था कि हिन्दू धर्म मे किसी भी व्यक्ति के मोक्ष हेतु तर्पण का विधान है जिसके लिए नदियों में अस्थि विसर्जन को अहम माना जाता है। किंतु हुआ ऐसा था कि  महर्षि अगस्त्य ने संपूर्ण सृष्टि की पवित्र नदियों के जल का पान कर लिया था जिस वजह से सगर के पुत्रों के तर्पण का कर्म अधूरा था।

सगर के कई वंशज ईश्वर को प्रसन्न कर माँ गंगा की कामना कर रहे थे। इसी क्रम में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने घोर तपस्या कर ब्रह्म देव को प्रसन्न किया एवं माँ गंगा के सानिध्य की इच्छा प्रकट की जिस पर ब्रह्मदेव ने कहा - मैं गंगा के धरा पर अवतरण की अनुमति तो तुम्हें दे दूंगा, किंतु पृथ्वी, गंगा के वेग को सहन कर पाने में सक्षम नहीं है। अतः तुम्हें सर्वप्रथम भगवान शिव का शरणागत होना होगा।

तत्पश्चात भगीरथ ने एक टांग पर खड़े होकर भगवान शिव की तपस्या की एवं उन्हें प्रसन्न किया जिस पर भगवान शिव ने सभी समस्याओं का निदान करते हुए पृथ्वी पर गंगा के अवतरण का वचन दिया। अतएव जिस दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण होता है वह दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। उस दिन से इस तिथि को हर वर्ष गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाने लगा।

क्या है गंगा दशहरा पर्व का महत्व?

कथाओं के अनुसार इस दिन माँ गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी एवं कईयों का उद्धार किया था, यही कारण है कि इस तिथि को गंगा जयंती के तौर पर मनाया जाता रहा है, और आने वाले समय में भी मनाया जाता रहेगा।

इस पावन पर्व को हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व दिया गया है। कहां जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से हमारे सभी पापों से हमें मुक्ति मिल जाती हैं। इस दिन गंगा का स्नान एवं दान करने से, कई महायज्ञ के फल एक साथ ही प्राप्त हो जाते हैं।

वैसे भी हिंदू सभ्यता के अनुसार गंगा में स्नान करने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है एवं मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष मिलता है। कहा जाता है कि विशेष फल की प्राप्ति हेतु गंगा दशहरा के पर्व वाले दिन सत्तू, मिट्टी का मटका, एवं हाथ के पंखे आदि दान करना बृहद फलदाई होता है। इस पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने से मनुष्य के कुकृत्य एवं मानसिक विकृतियां आदि दूर हो जाती हैं।

गंगा दशहरा पर्व की सही पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी सूर्योदय से भी पूर्व उठकर अपना दैनिक कर्म पूरा करने के बाद गंगा में स्नान कर ले। चूँकि इस साल कोरोनावायरस के कारण दूर-दूर से आने वाले सैलानियों का जमावड़ा गंगा तटों पर नहीं हो पाएगा, अर्थात आप गंगा स्नान करने के लिए घर से दूर नहीं जा सकते, तो इस का उपाय यह है कि घर में ही स्वच्छ पानी या नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर मन में भावना करते हुए कि आप गंगा नदी में कर चुके हैं, इसी भावना के साथ स्नान कर लें।

स्नान करने के बाद सूर्योदय होते ही एक पात्र में शुद्ध एवं स्वच्छ जल लेकर उसमें गंगा जल मिला दे और सूर्य देवता को अर्घ्य के रूप में यही जल अर्पित करें। अर्घ्य देते समय भावना करें कि आप माँ गंगा की भक्ति में लीन है एवं मां गंगा का ध्यान करते हुए गंगा मंत्रों का उच्चारण करें।

मां गंगा का मंत्र कुछ इस प्रकार है-

नमामि देवी इदम गंगे, हर हर गंगे।

यदि आप चाहें तो अपने समक्ष एक चौकी पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर माँ गंगा की कोई प्रतिमा या कोई प्रतीकात्मक तस्वीर लगाकर उनकी पूजा-अर्चना भी कर सकते हैं।

जैसे ही पूजन एवं जाप पूरा हो जाए, माँ गंगा का ध्यान करते हुए उनकी आरती करें। यदि संभव हो सके तो घर के सभी सदस्यों को भी आरती में शामिल होने को कहे।

पूजन के पश्चात जितना आपका सामर्थ्य हो, एवं अपने मन के अनुसार यथाशक्ति गरीबों, ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों में भोजन एवं वस्त्र आदि का दान करें। यदि गौ सेवा का सौभाग्य प्राप्त हो, तो इससे उत्तम कोई दान भी नहीं हो सकता। अर्थात संभव हो सके तो गौ पूजन भी कर सकते हैं।

पूजा के उपरांत जो सामग्री आपने गंगा पूजन में इस्तेमाल की है, उसे किसी तालाब या जलस्रोत आदि में बहा दें। यदि इतने पर भी आपका मन ना माने तो उस पूजन सामग्री को कहीं संभाल कर रखें। कोरोनाकाल का यह समय बीत जाने के बाद स्थिति सामान्य होने के पश्चात, जब भी आप गंगा स्नान के लिए जाएं तो यह पूजन सामग्री अवश्य लेते जाएं एवं गंगा के बहते शुद्ध जलधारों में प्रवाहित कर दें।

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