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गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)

Guru Purnima

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाव।
बलिहारी गुरु आपनों, गोविंद दियो बताय।।

तात्पर्य:-

जब आपके समक्ष आपके गुरु और गोविंद अर्थात ईश्वर, दोनों खड़े हो तो व्यक्ति दुविधा में पड़ जाता है कि किस के चरणों को पहले स्पर्श करू, किसका अनुगामी बनूं। उस परिस्थिति में भी हमें हमारे गुरु के चरणों का स्पर्श करना चाहिए, चूँकि हमें उस गोविंदा का भान कराने वाले भी हमारे गुरु ही होते हैं। किसी भी मनुष्य के जीवन की पहली गुरु उसकी मां होती है। मां हमें चलना, गलना और ढलना सिखाती हैं। वहीं गुरु कुम्हार की भांति होता है जो शिशु रूपी कच्चे घड़े को अपने पसीने से सींचकर संघर्ष की ज्वाला में हाथ डालकर उसे परिपक्व बनाता है। गुरु वह शख्सियत है जो अपने पद चिन्हों पर हमें चलाते हुए स्वयं से भी आगे तक ले जाना जाने की चाह रखते हैं। गुरु पथ प्रदर्शक होते हैं, जीवन की हर राह के मार्गदर्शक होते हैं।

गुरु का शाब्दिक अर्थ

गुरु शब्द के शाब्दिक अर्थ को समझने के लिए हम गुरु शब्द का संधि विच्छेद करें तो यह दो शब्दों के सहयोग से बना है। गुरु = गु + रु। इसमें 'गु' का मतलब है अंधकार तो वहीं 'रु'  का मतलब है प्रकाश। अर्थात गुरु वह है जो हमें अंधकार से रौशनी की तरफ ले जाता है। गुरु में वह काबिलियत है जिससे वह सर्वसाधारण को सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। भगवान रामचंद्र हों अथवा श्री कृष्ण, ईश्वर के सभी अवतारों को भी सद्ज्ञान की प्राप्ति व सत्यपथ के प्रति अनुगामी बनने एवं लक्ष्य की प्राप्ति हेतु गुरु का ही सहारा लेना पड़ा था।

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क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा?

वेदों एवं पुराणों में निहित तथ्यों के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहा गया है कि महर्षि वेदव्यास का जन्म 3000 ईसा पूर्व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। महर्षि वेदव्यास जी ने सनातनी धर्म के प्रवर्तक एवं मार्गदर्शक चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद) की रचना की, इसी कारण व्यास जी के नाम में वेद का संयोग किया गया है। वेदों के अतिरिक्त अन्य कई पुराण, ग्रंथ, शास्त्र आदि की रचना भी महर्षि वेदव्यास जी द्वारा की गई। अपनी अनन्य रचनाओं द्वारा उन्होंने जन-जन में ज्ञान के प्रकाश का दीया जला कर जग को रौशनी प्रदान की, साथ ही समाज व राष्ट्र को नया एवं उचित मार्गदर्शन प्रदान किया।

वेदव्यास जी द्वारा रचित वेद ग्रंथ व अन्य रचनाएं आज भी जीवन्त आदर्श है जो गुरुत्व धर्म को निभाकर जनमानस को सन्मार्ग प्रदान करने का कार्य करती हैं। उपरोक्त कृतियों के कारण ही उन्हें जन-जन का गुरु माना गया है। इसलिए उनके जन्मदिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

आषाढ़ की पूर्णिमा को ही क्यों मनाते हैं गुरुपूर्णिमा?

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे दो तथ्य परिलक्षित होते हैं। धर्म ग्रंथों के मतानुसार आषाढ़ पूर्णिमा को ही 3000 ईसा पूर्व में वेदव्यास जी का जन्म हुआ था जिनकी कृतियों के उपरांत देवगणों ने उन्हें त्रिलोक के गुरु के रूप में स्वीकार किया। वहीं भारतीय मौसमी परिवेश एवं वैज्ञानिकता का दृष्टिगोचर करें तो यह तथ्य सामने आता है कि आषाढ़ मास वर्षा ऋतु का होता है जिसमें ना अधिक सर्द की मार झेलनी पड़ती है और ना ही गर्मियों वाले पसीने छूटते हैं।

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वर्षा ऋतु समकालीन होती है जो प्राकृतिक सौंदर्य एवं मानसिक शांति व प्रसन्नता को बढ़ाती है जिससे यह मौसम शिक्षा-दीक्षा हेतु अनुकूल माना गया है। इस मौसम में गुरु एवं शिष्य दोनों ही प्रसन्न भाव से विद्या ग्रहण में मन को केंद्रित कर पाते हैं। इसलिए उसको गुरु पूर्णिमा हेतु चयनित किया गया।

वर्ष 2020 में गुरुपूर्णिमा तिथि एवं समय

गुरु पूर्णिमा हर वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को विधि विधान से संपूर्ण हिंदुस्तान में मनाया जाता है। इस वर्ष 2020 आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि हिंदी कैलेंडर में इस वर्ष यह तिथि 5 जुलाई की है जिसमें पूर्णिमा तिथि 4 जुलाई 2020 को प्रातः 11 बजकर 33 मिनट पर आरंभ होगी और अगले दिन अर्थात 5 जुलाई 2020 को प्रातः 10 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी।

किसी भी पर्व त्यौहार में दो तिथि होने पर उसकी गणना प्रहर के अनुसार की जाती है। यदि गुरु पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के बाद तीन प्रहर तक पूर्णिमा की तिथि का मुहूर्त बरकरार है तो उसी दिन गुरु पूजा, व्यास पूजा आदि कर्म संपन्न होता है, अन्यथा पूजन की क्रिया उसके पूर्व वाले दिन ही संपन्न कर ली जाती है।

गुरु पूजन विधि विशेष

गुरु पूर्णिमा की तिथि को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जगकर नित्य क्रिया आदि संपन्न कर किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान कर पूजन आरंभ करें जिसमें महर्षि वेदव्यास की प्रतिमा को स्थापित कर षोडशोपचार पूजन आरंभ कर महर्षि वेदव्यास के साथ-साथ अपने गुरु की भी पूजा आराधना करें। आज के दिन गुरु मंत्रों का जप अधिकाधिक करें, साथ ही गुरु मंत्र अथवा गायत्री मंत्र के नियमित जप का संकल्प भी लें। इसे आजीवन पूरा करने की चेष्टा करें। मंत्र जप से आपकी आंतरिक शक्तियां जागृत होंगी जो सदैव आपको सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती रहेंगी। आज के दिन संध्याकालीन वेला में तुलसी के पौधे के समक्ष घी के दिये जलाएं। इस दिन जरूरतमंदों को दान देना पूण्यदाई होता है।

गुरुपूर्णिमा के लिए विशेष मंत्र

गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वराय
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।

ओम् गुरुभ्यो नमः।

ओम् गुं गुरुभ्यो नमः।

ओम् परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:।

ओम् वेदाहि गुरु देवाय विद्महे परम गुरुवे धीमहि तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।

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