हिंदू धर्म में ज्योतिष शास्त्र का विशेष महत्व है। यह चहुँ ओर से हमारे लिए लाभप्रद है। ज्योतिष शास्त्र को ना सिर्फ आध्यात्मिक अपितु वैज्ञानिक मान्यताएं भी प्राप्त है। इसके अनेकानेक आयाम है जो हमें जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में शुभ फल प्रदान करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों एवं उनकी स्थिति व तिथि अनुसार होने वाले परिवर्तन आदि की गणना को अहम माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति की कुंडली में नवग्रह में होने वाले परिवर्तन हमारी तत्कालीन स्थिति परिस्थिति दिशादशा का कारक होता है। अतः हमें नव ग्रहों की स्थिति कार्य को समझने की आवश्यकता है ताकि हम ग्रहों की स्थिति को अपने अनुकूल बना सके।
आप एस्ट्रोकाका के माध्यम से सभी ग्रहों के दोष से मुक्ति हेतु उपाय व अन्य समस्याओं के लिए वास्तु उपाय प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिए आज हम जानते हैं बृहस्पति यानी गुरु ग्रह की शांति हेतु कुछ सरल उपाय।
ज्योतिष शास्त्र एवं अन्य पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ग्रह-गोचरों को अहम माना जाता है जिसमें बृहस्पति को सबसे बड़ा ज्ञानी, विद्वान एवं श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए बृहस्पति को सभी देवी-देवताओं में श्रेष्ठ गुरु की उपाधि दी गई है। चूँकि बृहस्पति सत्य के प्रवर्तक माने जाते हैं, इसलिए इसे सभी ग्रहों में से सबसे अधिक विद्वान बुद्धिमान पुरुष माना जाता है। वाक शैली की प्रखरता गुरु बृहस्पति के ही नियंत्रण में होती है। बृहस्पति माता सुनिमा एवं महर्षि अंगिरा का यशस्वी संतान है।
हमारी कुंडली में विराजमान नौं ग्रहों में से एक बृहस्पति ग्रह है जिसमें इसे सुखद, स्वास्थ्यवर्धक, दीर्घायु एवं बिना कलह-क्लेश युक्त जीवन को रोचक बनाने योग्य माना जाता है। गुरु बृहस्पति के संबंध में यह भी सर्वविदित है कि किसी भी कन्या के जीवनसाथी अथवा उसके वैवाहिक जीवन में होने वाले परिवर्तन, विवाह की स्थिति, घर-वर आदि के अधिष्ठाता बृहस्पति होते हैं। गुरु एक शुभ ग्रह है किंतु कई बार हमारे कई दोषों के कारण यह अपने दुष्प्रभाव दिखाना प्रकट कर देता है। यह अवगुणों एवं समस्याओं को हमारे जीवन में आने से रोकने के बजाय बढ़ावा देने लगता है। ऐसे में हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि हम अपनी कुंडली में विराजमान इस ग्रह को कैसे संतुलित एवं शुभ फलदाई बनाएं। आइए जानते हैं कुछ उपाय।
व्रत उपाय
बृहस्पति के दुष्प्रभावों व दोषों से मुक्ति हेतु हर गुरुवार को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें और सूर्य भगवान की पूजा-आराधना कर, पीपल में जल, पीले पुष्प एवं लड्डू चढ़ाएं। तत्पश्चात पूरे दिन श्रद्धा भाव से बृहस्पति को अपने ग्रहों का गुरु मानते हुए मन में सदविचार रख बिना किसी दुष्कर्म के व्रत धारण करें। व्रत की सफलता आपके मानसिक विचारों पर निर्भर करती है। अतः मानसिक तौर पर स्वयं को सकारात्मक एवं शुद्ध व पवित्र बनाए रखें।
मंत्रोउपाय
अपने जीवन में सकारात्मकता लाने एवं स्वयं के मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु नित्य प्रतिदिन गायत्री मंत्र का नियमितता के साथ जब करें। गायत्री मंत्र का जप केवल गुरु ही नहीं अपितु अन्य सभी ग्रहों की शांति हेतु सर्वश्रेष्ठ है। यह मंत्र आपको सन्मार्ग की ओर अग्रसर कर श्रेष्ठता के पद का अनुगामी बनाता है।
ॐ भूर् भुवः स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात।
गायत्री मंत्र के अतिरिक्त आप खासतौर पर बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु निम्न मंत्रों का भी नियमित 108 बार जप करें। मंत्र जप से गुरु आप के प्रति अपनी सकारात्मक प्रभाव दिखाना आरंभ कर देगा।
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नम:
ॐ बृं बृहस्पत्यै नमः
बृहस्पति ग्रह के लिए गायत्री मंत्र
ॐ अंगिरसाय विद्हे दिव्यदेहाय धीमहि तन्न: जीवः प्रचोदयात।
अन्य उपाय
कुछ अन्य उपाय: