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दशहरा (विजयादशमी)

Dussehra (Vijyadashami)

भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' भले ही संविधान निर्माण के वक्त भारत के लिखित दस्तावेजों में निहित हुआ है किंतु अगर भारतीय परंपरा एवं भारतीय संस्कृति को देखा जाए तो यह युगो-युगो से हमारे संस्कारों में ही अभिभूत है।

बात त्रेता काल की हो या द्वापर युग की, सदैव सत्यमेव जयते अर्थात सत्य की जीत की ही कामना की गई है और सदा सर्वदा सत्य की ही जीत हुई है। जब त्रेता काल में भगवान विष्णु के अवतार रूप स्वयं श्री राम पृथ्वी पर अवतरित होते हैं तो उनका मूल उद्देश्य बुराइयों का नाश कर सत्य पर विजय प्राप्त करना था। उनका उद्देश्य केवल असत्य का, अनीति का एवं दुष्ट प्रवृत्तियों का दुष्टों का नाश कर धरा पर सत्य के विजय का ध्वज लहराना रहा।

बात त्रेता काल की है जिसे हम आज भी याद कर विजयादशमी यानी दशहरा के पर्व के रूप में मनाते हैं और रावण का पुतला फूंक कर असत्य पर सत्य की विजय बुराइयों पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हैं

आइए जानते हैं विजयादशमी के पीछे के पूर्ण वाक्यांश को

यह घटना त्रेता काल की है जिसमें भगवान श्री राम पृथ्वी पर अयोध्या में दशरथ नंदन के रूप में अवतरित हुए थे उस काल में मर्यादित एवं प्रबल पुरुष का विलक्षण स्वरूप लिए अवतरित हुए थे।

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गुरुकुल से वापस अयोध्या आने के पश्चात जब श्री राम का राज्याभिषेक होने जा रहा था तो उनके पिता दशरथ की पूर्व रानी केकई द्वारा महाराज दशरथ से श्री राम के 14 वर्ष के वनवास की बात की जाती है। तत्पश्चात आज्ञा स्वरूप श्री राम 14 वर्ष के लिए वनवास जाते हैं जहाँ रावण अपने स्वरूप को परिवर्तित कर सीता का हरण कर लंका ले जाता है जिस कारण श्री राम लंका को रावण को उसकी दुष्ट प्रवृत्तियों एवं नीतियों का भान कराने एवं उनके मोक्ष हेतु लंका नरेश रावण से युद्ध करते हैं जिसमें श्री रामचंद्र ने अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशानन यानी 10 सिर वाले रावण का वध किया और संपूर्ण सृष्टि को रावण जैसे पापी के कोहराम से बचाकर जनकल्याण का कार्य किया।

हमारे पूजनीय धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार इसी दिन से विजयादशमी का पर्व ना सिर्फ भारत अपितु अन्य कई देशों में भी मनाया जाने लगा। विजयदशमी का पर्व आने के पूर्व 9 दिनों का नवरात्र व्रत-उपवास एवं देवी शक्ति की आराधना की जाती है। तत्पश्चात दशमी के दिन रावण वध के साथ विजयादशमी अर्थात दशहरा पर्व मनाया जाने लगा।

दशहरा का दिन नवरात्रि के पर्व के 9 दिनों के पश्चात समापन का दिन होता है। नवरात्रि के 9 दिनों में आदि शक्ति जगदंबा के नौ स्वरूपों की पूजा आराधना के बाद दसवें दिन माँ दुर्गा की उपासना की जाती है, साथ ही उनसे विश्व कल्याण की कामना की जाती है। आज के दिन जगदंबा महिषासुर का वध कर सृष्टि को मुक्त करती है एवं आदि शक्ति के शक्ति का परिचय कराती है। आज के दिन माँ अपने मायके यानी पृथ्वी लोक से पुनः प्रस्थान करती हैं। जगह-जगह पर देशभर में धूमधाम से मनाई जा रहे दुर्गा पूजा का आज समापन होता है। देवी की मूर्ति को पवित्र नदी में श्रद्धा भाव से विदाई दी जाती है फिर उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

दशहरा 2021 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

इस वर्ष दशहरा 15 अक्टूबर 2021, दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।

शुभ मुहूर्त

इस दिन विजय मुहूर्त अपराह्न 02 बजकर 03 मिनट से लेकर 02 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। कहते हैं कि इस मुहूर्त के अंतर्गत पूजा करना बेहद शुभकारी होता है साथ ही इस दौरान आरम्भ किए गए सभी कार्यों का फल हमेशा ही अच्छा रहता है।

अपराह्न पूजा का समय दोपहर 01 बजकर 18 मिनट से दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक है।

दशमी तिथि का आरम्भ:- 14 अक्टूबर, दिन बृहस्पतिवार शाम 06 बजकर 52 मिनट से।
दशमी तिथि की समाप्ति:- 15 अक्टूबर, दिन शुक्रवार शाम 06 बजकर 02 मिनट पर।

श्रवण नक्षत्र का आरम्भ:- 14 अक्टूबर प्रातः 09 बजकर 37 मिनट से।
श्रवण नक्षत्र की समाप्ति:- 15 अक्टूबर प्रातः 09 बजकर 15 मिनट पर।

दशहरा पर्व के दिन की शुरुआत

दशहरा पर्व की सुबह की शुरुआत दही के टीके के साथ होती है। इस दिन प्रातः काल उठने के साथ ही घर के बड़े-बुजुर्ग माथे पर दही का टीका लगा दिन के शुभ कार्य की निपटने की कामना करते हैं एवं बड़े बुजुर्ग बच्चों को आशीष प्रदान करते हैं। तत्पश्चात नीलकंठ के दर्शन की मान्यता है। माना जाता है नीलकंठ भगवान शिव का स्वरूप होता है जिसका दशहरे के दिन दर्शन अत्यंत ही आवश्यक एवं शुभ कार्य होता है। नीलकंठ के दर्शन हेतु कई स्थानों पर प्रातः काल शोभायात्रा निकाली जाती है एवं दर्शन पश्चात माँ जगदंबे की पूजा अर्चना की जाती है।

दशहरे के दिन हवन यज्ञ के माध्यम से नवरात्र का विसर्जन किया जाता है एवं हवन की प्रत्येक आहुति के साथ आसपास की बुराइयों एवं आत्मिक दुष्ट प्रवृत्तियों का नाश होता जाता है। आज के दिन कन्याओं को भोजन कराने एवं उन्हें वस्त्र दान करने आदि का भी विधान है। दशहरे के पर्व को संपूर्ण विश्व भर में बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आज की रात्रि के अंधेरे में रावण के पुतले का दहन किया जाता है एवं रावण के जलते हुए पुतले को बुराइयों के दहन का प्रतीक माना जाता है। रावण दहन के साथ-साथ मन ही मन अपने अंदर की एक बुराइयों को छोड़कर एक अच्छाई अपनाने का भी संकल्प लिया जाता है

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