ज्योतिष शास्त्र में शनि को बहुत ही महत्व स्थान दिया जाता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली के अध्ययन के समय कुंडली में स्थित शनि ग्रह को विशेष रूप से देखा जाता है। ज्योतिष के अनुसार शनि देव व्यक्ति को जितना कष्ट देते हैं, उतना ही धनवान भी बनाते हैं। शनि का नाम सुनते ही हर किसी के मन में डर छा जाता है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में यदि शनि कमजोर हो, तब उसे कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
शास्त्रों की माने तो भगवान् शनिदेव हर इंसान को उसकी अहित करनी का कई तरह से दंड देते हैं, जिन्हे हम धार्मिक तौर पर शनि की दशा, शनि की गति अथवा शनि की कुदृष्टि के रूप में जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस संसार में भोगी को ये दण्ड शारीरिक, मानसिक अथवा आर्थिक समस्याओं के रूप में प्राप्त होते हैं। क्योंकि हर व्यक्ति कर्म और दायित्वों से किसी न किसी प्रकार से बंधा होता है, इसलिए इनकी पूर्ति करते वक्त उत्पन्न हुई स्वयं हित या अवसरवादिता के लोभ की वजह से जाने-अनजाने में ही वो मन, विचार और कर्मों आदि दोषों का भागीदार बन जाता है।
इसके अतिरिक्त जब-जब शनि का गोचर होता है, तब इसका प्रभाव शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से सभी 12 राशियों पर भी होता है। वर्तमान समय में शनि मकर राशि में हैं, जहां वह उल्टी चाल अर्थात वक्री होकर चल रहे हैं। अतः 29 सितंबर तक शनि उल्टी चाल में ही रहेंगे। कई राशियों पर शनि की उल्टी चाल का असर होगा। खासकर उन राशियों पर, जिन पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हैं।
ज्योतिषों के अनुसार शनि इस समय मकर राशि में अपनी उल्टी चाल से चल रहे हैं। ऐसे समय में शनि की साढ़ेसाती धनु, मकर तथा कुंभ राशि पर है। कहा जाता है कि शनि की साढ़ेसाती तीन चरणों में पूरी होती है। पहला चरण, दूसरा चरण तथा तीसरा चरण। ज्योतिषों की मानें तो इस समय शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण धनु राशि पर, दूसरा चरण मकर राशि पर और पहला चरण कुंभ राशि पर चल रहा है।
राशियों पर शनि की साढ़ेसाती चलने से कई तरह की परेशानियां आती हैं। यदि कार्य समय पर पूर्ण न हो तो जातक को बीमारियां घेरे रहती हैं और आर्थिक संकट का खतरा रहता है।
ज्योतिष गणना के अनुसार शनि की ढैय्या को अशुभ माना गया है। वर्तमान समय में मिथुन और तुला नामक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। जन्म राशि से लेकर चतुर्थ और अष्टम स्थानों पर गोचर करते हुए शनि की ढैया चलती है, जो ढ़ाई वर्ष तक रहती है। यह भी जातक के लिए बहुत कष्टदायीं होता है।
शनि का साढ़ेसाती व ढैय्या के अतिरिक्त शनि उन जातकों पर भी अपनी अशुभ छाया डालते हैं जो सदैव गरीबों व असहायों की मदद करने के बजाय उन्हें परेशान और उनका अपमान करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से शनि की वक्री चाल को अशुभ माना जाता है। ऐसे में 29 सितंबर तक शनि के मकर राशि में वक्री चल में होते हुए धनु, मकर, कुंभ, मिथुन और तुला राशि के जातकों को सावधान रहने की आवश्यकता होगी। ज्योतिष में शनि के बुरे या अशुभ प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है, इससे संबंधित कुछ ये भी पढ़ें: शनि के उपाय बताए गए हैं-
शनिदेव की साढ़ेसाती से बचने के मंत्र:
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिश्रवन्तु नः।
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
इन मंत्रों के जाप से उन राशियों के लोग बच सकते हैं जिनके ऊपर शनि की साढ़ेसाती है।
शनिवार के दिन शनिदेव की प्रतिमा पर पवित्र जल, सरसों या तिल का तेल, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य तथा काले रंग का वस्त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
मंत्र, ध्यान व पूजा और शनिदेव की आरती के पश्चात जाने-अनजाने में हुई गलती या बुरे कर्म की क्षमा मांगने, शनिदेव से स्वयं के लिए शुभ आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु इस मंत्र का जप करें-
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योऽहं तव दर्शनात्।।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उनके इन सभी मंत्रों का जाप करें-
शनिदेव का तांत्रिक मंत्र:
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
शनिदेव का वैदिक मंत्र:
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनिदेव का एकाक्षरी मंत्र:
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
शनि देव जी का गायत्री मंत्र:
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोदयात।
इसके अतिरिक्त भी शनिदेव के अन्य कई मंत्र हैं, जो निम्नलिखित हैं-