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वरलक्ष्मी व्रत

Varalakshmi Vrat

आज के भौतिकवादी युग में हम परस्पर उत्कृष्टता की ओर तत्पर हैं। वर्तमान युग में हम बड़े ही तन्मयता पूर्वक लीन हो गये हैं। आधुनिक युग की भागदौड़ युक्त जिन्दगी में हम पूर्णतः व्यस्त है। जिन्दगी में अपनी जरूरतों को पूर्ण करने हेतू अपने सभी रिश्ते नाते दाव पर लगा धन को मह्त्वता दे दिन रात अपने कार्य में लीन रह्ते है। इसी प्रकार साधक अपनी धन सम्पदा सम्बन्धी परेशानियों से मुक्ती प्राप्त करने हेतु, साधक अपने जीवन में लक्ष्मी जी की आराधना करता है।

धन संपदा संपत्ति आदि को हम लक्ष्मी के नाम से जानते हैं। जिस प्रकार हिंदू धर्म में यन्त्र-तंत्र सर्वत्र देवी-देवताओं का निवास माना जाता है, यहाँ पर्वतों को भी पूजा जाता है, पत्थरों में देवों के देव महादेव को देखा जाता है, वायु, जल, अग्नि को देवता की उपाधि दी जाती है, उसी प्रकार धन संपदा को माता लक्ष्मी के नाम से संबोधित किया जाता है। माता लक्ष्मी धन संपदा और रिद्धि-सिद्धि, की देवी मानी जाती हैं।

कहा जाता है जिस घर में लक्ष्मी जी का वास होता है, वहाँ कभी भी धन-संपत्ति आदि परेशानियां, विपदायें कभी जन्म नहीं लेती हैं। आज के भौतिकवादी युग में रिश्ते नातों से प्रबल, धन को माना जाता है, इसीलिए सभी साधक लक्ष्मी जी की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं एवं माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर सभी प्रकार की आर्थिक विघ्न-बाधाओं से मुक्त होकर सुख एवं आराम की जिंदगी व्यतीत करते हैं।

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वर लक्ष्मी व्रत का अनुसरण

हमारे पौराणिक ग्रंथों में निहित है कि लक्ष्मी जी स्वर्ग में वास करती हैं और वे महर्षि भृगु और ख्याति की पुत्री हैं। ऐसा व्याख्यान है कि लक्ष्मी जी की महिमा अपरंपार है किन्तु भगवान विष्णु से विवाह कर उनकी शक्तियां और भी प्रबल हो गयी। ऐसा माना जाता है कि उनके चार हाथ हैं जिसके माध्यम से वे भविष्यदर्शिता, दृढ़ संकल्प, व्यवस्था शक्ति, श्रम शीलता को नियंत्रित व व्यस्थित करती हैं। माँ लक्ष्मी अपने सभी हाथों से याजक के भविष्य कल्याण हेतु सदा अपना आशीर्वाद बनाए रखती हैं।

साधक अपने व्यवहारिक जीवन में धन-संपदा हेतु कड़ी मेहनत करता है। इसीलिए वह अपने कर्मों के साथ स्वयं पर सदैव भगवान के आशीर्वाद की भी अपेक्षा रखता है। हिंदू धर्म में वरलक्ष्मी का व्रत रखने का खास प्रावधान है। सनातन धर्म में इसको बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना गया है। ऐसी मान्यता है कि महालक्ष्मी का एक रूप वरलक्ष्मी भी है, वे अपने इस अवतार में दूधिया महासागर से अवतरित हुई थी, इसलिए इस दिन रंगीन कपड़ों में सजाया जाता है व दूधिया महासागर के समान उनका रंग रूप माना जाता है।

वरलक्ष्मी व्रत की कथा

पुरातन काल की कथाओं के अनुसार स्वर्ग की कृपा से एक नगर का निर्माण हुआ था जिसका नाम कुण्डी नगर था। यह नगर मगध राज्य के मध्य स्थापित था। इस नगर में एक आस्थावान, कर्त्तव्यनिष्ठ महिला वास करती थी जो अपने घर वालों के साथ-साथ ईश्वर को भी अपना असीम प्रेम अनुग्रहित करती थी। वो अपने खाली समय का सदुपयोग कर लक्ष्मी जी की आराधना करती थी। उस महान महिला का नाम चारूमती था।

ऐसा कहा जाता है कि माँ लक्ष्मी ने उस महिला से प्रसन्न होकर उसे स्वप्न में दर्शन दिए और उसे वर लक्ष्मी नामक व्रत से अवगत कराया। उसे यह व्रत रखने की सलाह देकर कहा कि इसके प्रभाव से तुम्हारी सभी अपेक्षाएं व मनोकामनाएं पूर्ण होगी।

चारुमती ने अगले ही दिन व्रत को विधिवत रूप से पूर्ण किया और आस-पास की सभी महिलाओं को इस व्रत से अवगत कराया। व्रत के पश्चात सभी महिलाओं के घर सुख-समृद्धि, धन-संपदा आदि की वर्षा होने लगी। उनका जीवन सभी मनोकामनाओं से मुक्त व प्रसन्नता से समाहित हो गया। इसी प्रकार इस व्रत की पूजा-अर्चना सभी जगह की जाने लगी और हिंदू धर्म में इसकी महत्ता दिन व दिन अधिक होती गई।

वरलक्ष्मी व्रत की तिथि एवं शुभ मुहूर्त

दांपत्य जीवन में इस व्रत का प्रभाव बहुत ही लाभकारी व मंगलकारी माना गया है। इसी के विपरीत कुंवारी लड़कियों को इस व्रत का अनुसरण करना वर्जित है। यह व्रत विशेषकर वर व लक्ष्मी रुपी पति-पत्नी के लिए ही जाना जाता है। यह व्रत श्रवण मास के शुक्ल पक्ष में अन्तिम सप्ताह के शुक्रवार को होता है। मह्गृंथों के अनुसार इस व्रत की अधिक महत्ता है। इस बार व्रत का शुभ अवसर 31 जुलाई, दिन शुक्रवार को है।

किसी व्रत पूजा आदि हेतु शुभ मुहूर्त बहुत विशेष महत्व रखता है। अतः लक्ष्मी के पूजन हेतु शुभ मुहूर्त का विशेष ख्याल रखें। साथ ही भिन्न-भिन्न लग्न अवधि में अपने ग्रह गोचर व सांसारिक स्थितियों के अनुरूप पूजा आराधना कर माता लक्ष्मी को प्रसन्न करें।

वरलक्ष्मी व्रत की तिथी - 31 जुलाई 2020

पहला मुहूर्त - सिंह लग्न पूजा मुहूर्त
प्रातः काल - 06:59 am से 09:17 am
अवधि - 2 घन्टे 17 मिनट

द्वितीय मुहूर्त - वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त
दोपहर - 01:53 pm से 04:11pm
अवधि- 2 घन्टे 19 मिनट

तृतीय मुहूर्त - कुम्भ लग्न पुजा मुहूर्त
संध्या - 07:57 pm से 09:25 pm
अवधि - 1 घन्टे 27 मिनट

चतुर्थ मुहूर्त - वृशभ लग्न पूजा मुहूर्त
मध्यरत्रि - 12:25 am से 02:21 am
अवधि - 1 घन्टे 56 मिनट

पूजा करने की विधि

  • साधक प्रातः काल उठकर लक्ष्मी जी का सर्वप्रथम स्मरण करना चाहिए।
  • घर को गंगा जल के माध्यम से संचित कर गृह को शुद्ध करना चाहिए ।
  • घर में उपस्थित पूजा स्थल को शुद्ध कर, लाल व पीले कपड़े को आसन के स्थान पर सुशोभित करना चाहिए।
  • अपने पूजा स्थल पर विष्णु जी, लक्ष्मी जी व गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर उनका तिलक करना चाहिए।
  • पूजा स्थल पर अक्षत से पूर्ण कलश को प्रतिमा के समीप स्थापित कर उसका पूजन करना चाहिए।
  • पानी युक्त नारियल को एक लाल व पीले कपड़े में लपेटकर कलश के शीर्ष पर स्थापित करें व उसका विधि पूर्ण तिलक करें।
  • इस दिन पूजा में आज-पास के सभी लोगों को सम्मलित होने के लिए निमंत्रण दे जिससे ये साधक के साथ आस-पास में भी सुख-समृद्धि का वास हो।
  • सभी विधिवत रूप से भगवान विष्णु , गणेश व लक्ष्मी जी की पूजा कर कथा का पाठ करें।
  • अंततः प्रसाद वितरण के पश्चात रात्रि में फलाहार ग्रहण कर स्वं निद्रा ग्रहण करें।

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