भगवान विष्णु के कृपा पात्र बनने की शुभ तिथि एकादशी तिथि होती है। पुराणों में एकादशी का वर्णन हरि वासर या हरि दिन के नाम से भी किया गया है जिसमें माघ मास के कृष्ण पक्ष की तिथि को हर वर्ष षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं श्री कृष्ण की पूजा की जाती है एवं काले तिल अर्पित किये जाते हैं।
माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु को काले तेल अर्पित करना हमारे दुष्कर्म से उत्पन्न पापों का नाश करता है। षटतिला एकादशी में तिल का छह प्रकार से प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहते हैं। एकादशी के दिन तिल का उबटन लगाना, तिल से स्नान करना, हवन यज्ञ आहुति हेतु तिल का प्रयोग साथ ही तिल से बनी वस्तुओं के दान करने का विधान बताया गया है। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं एवं व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत को आयु एवं आरोग्य का वृद्धि कारक माना गया है।
षटतिला एकादशी श्री हरि विष्णु की आराधना कर तिल समर्पित कर, दान व व्रत करने का त्योहार माना जाता है। इस वर्ष माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाएगा जो कि 7 फरवरी 2021 दिन रविवार को प्रातः 06 बजकर 28 मिनट से आरंभ होगी, जिसके बाद 8 फरवरी यानी दिन सोमवार प्रातः 04 बजकर 47 मिनट पर इसका समापन होगा। इस व्रत के समापन हेतु पारण का समय 8 फरवरी दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से दोपहर 03 बजकर 53 मिनट तक का है।
षटतिला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पूर्व ही तिल का उबटन लगाकर, पानी में तिल मिलाकर उसी जल से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात भगवान विष्णु तथा अपने आराध्य इष्टों के नाम से तेल की आहुति डालकर यज्ञ करने का विधान है। आज के दिन भोजन में भी तिल का प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं, पेयजल में भी तिल मिश्रित करने का विधान है।
इस दिन स्नान, यज्ञ आदि पश्चात भगवान विष्णु एवं कृष्ण की आराधना कर षटतिला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। हालांकि व्रत के संकल्प की मानसिकता एक दिन पूर्व ही यानी दशमी वाले दिन ही ले लेनी चाहिए। दसवीं की तिथि को सूर्यास्त के बाद से भोजन का त्याग कर दें तो और भी बेहतर है। दशमी तिथि से ही व्यक्ति को मानसिक रूप से संकल्पित होकर अपने अंदर से काम, क्रोध, लोभ, मोह, तिरस्कार आदि की भावनाओं का परित्याग कर शुद्ध मन से व्रत हेतु तैयार होना चाहिए।
व्रत वाले दिन तिल मिश्रित खिचड़ी का भोग लगाकर प्रसाद बांटे और स्वयं निराहार रहकर फलाहार का सेवन करें। दिन में हवन पूजन के साथ संध्या में भी भगवान विष्णु की आरती करें। घी का दीपक जलाएं। एक घी का दिया घर की तुलसी के समक्ष भी जलाएं। वहीं दूसरे दिन यानी द्वादशी तिथि के अनुसार पूजन और गरीबों को भोजन कराकर अपना व्रत खोलें।
ये भी पढ़ें:-