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जया पार्वती व्रत (Jaya Parvati Vrat)

Jaya Parvati Vrat

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जया पार्वती का व्रत विवाहित स्त्रियों द्वारा धारण किया जाता है। जया पार्वती व्रत को विजया पार्वती व अन्य अन्य नामों से जाना जाता है। यह व्रत सुहागन औरतों के लिए बहुत खास माना जाता है। इस दिन माता पार्वती को पूजा-अर्चना व तपोबल से प्रसन्न किया जाता है।

कहा जाता है कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को पड़ने वाले जया पार्वती व्रत जीवनसाथी की लंबी दीर्घायु एवं संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है  जो हमारे उज्जवल भविष्य हेतु सहायक सिद्ध होता है। इसे एक रहस्यमई एवं अत्यंत फलदाई व्रतों में से एक माना जाता है जिसे गुप्त तौर पर रखा गया। एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को इस व्रत के बारे में समुचित जानकारी दी थी। तब से यह हर वर्ष हर सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाया जाने लगा। इस व्रत के पीछे सुंदर कथा निहित है। आइए जानते हैं इसके विषय में।

जया पार्वती व्रत कथा

जया पार्वती के संबंध में शिव पुराण में एक प्राचीन कथा प्रचलित है जिसमें यह कहा गया है कि पौराणिक काल में कौटिल्य नगर नाम का एक शहर था जहाँ वामन नाम का एक श्रेष्ठ ज्ञानी ब्राह्मण हुआ करता था। उस ब्राह्मण की पत्नी का नाम सत्या था। उनकी कोई संतान नहीं थी। उनके घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। सांसारिक एवं भौतिकवादी सभी सुख-सुविधाएं उनके घर में निहित थी। संतान ना होने की वजह से उनका जीवन दुख के मारे अत्यंत ही कष्टकारी था।

एक बार की बात है, मुनि नारद घूमते-फिरते उस ब्राह्मण के घर आ पहुंचे। ब्राह्मण की पत्नी सत्या ने नारद मुनि की खूब सेवा की और अपनी संतान ना होने के कष्ट से नारद मुनि को परिचित करवाया। तत्पश्चात भगवान नारद मुनि ने उन्हें एक गुप्त बात बताई। उन्होंने कहा कि तुम्हारे नगर के बाहर के वन के दक्षिणी भाग में वृक्ष है, वहाँ भगवान शिव एवं माता पार्वती का लिंग स्वरूप स्थापित है। माना जाता है कि वहाँ स्वयं आदिशक्ति जगदंबा एवं भगवान शिव के स्वरूप का सूक्ष्म प्रवास है। अतः तुम वहाँ जाकर उनकी नित्य पूजा अर्चना करो, तुम्हें अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।

फिर क्या था, ब्राह्मण दंपत्ति वहाँ जाकर नित्य पूजा-अर्चना करने जाने लगे और यह उनके दैनिक क्रियाकलाप का हिस्सा हो गया। ऐसा करते-करते उन्हें 5 साल बीत गये, संतान की आस लगाए भगवान शिव-पार्वती के लिंग स्वरूप की आराधना करते रहे। एक दिन की बात है। ब्राह्मण जंगल में जाकर पूजन करने हेतु पुष्प तोड़ रहा था जिस दौरान उसे एक विषैले सर्प ने डस लिया और इसकी वजह से उसकी मृत्यु हो गई।

यहाँ ब्राह्मणी अर्थात उनकी भार्या अपने स्वामी की प्रतीक्षा में बैठी थी। काफी देर होने के पश्चात वो उन्हें ढूंढते-ढूंढते वहाँ तक पहुंची। अपने पति की ऐसी हालत देख उनसे सहन ना हुआ और उसने माँ पार्वती का आवाहन किया, मन ही मन सच्चे हृदय से देवी पार्वती का स्मरण ध्यान किया जिससे मां पार्वती प्रकट हुई और उसके पति को के प्राणों को वापस कर दिया। माँ पार्वती ने कहा तुमने 5 वर्षों से हमारे लिंगस्वरूप की आराधना की है, तुम्हें जो भी वर चाहिए निसंकोच मांगो जिस पर ब्राह्मणी सत्या ने अपने कष्ट की वजह से माँ पार्वती एवं भगवान शंकर को रूबरू कराया। तत्पश्चात माता पार्वती ने देवी सत्या से कहा कि पुत्री तुम विधिवत तौर से आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को विजया पार्वती व्रत का धारण करो, तुम्हें मन वांछित फल की प्राप्ति होगी एवं तुम्हारी सूनी गोद भर जाएगी।

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तत्पश्चात ब्राह्मण दंपत्ति ने शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को विधिवत तौर पर व्रत-पूजा आदि किया जिसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। तब से यह व्रत नियमित तौर पर किया जाने लगा। इस व्रत को धारण करने वाली स्त्री का पति भी दीर्घायु को प्राप्त होता है।

जया पार्वती व्रत 2020 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

तिथि: 3 जुलाई 2020, दिन शुक्रवार
जया पार्वती प्रदोष पूजा मुहूर्त: शाम 07 बजकर 23 मिनट से रात्रि 09 बजकर 24 मिनट तक
मुहूर्त अवधि : 2 घंटे 1 मिनट

विजया पार्वती व्रत पूजन विधि

इस दिन शिव लिंग के लिंगस्वरूप का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। तत्पश्चात षोडशोपचार पूजन की विधि द्वारा विधिवत तौर तरीके से शिव-पार्वती का पूजन किया जाता है। सुहागन स्त्रियां पार्वती का सोलह सिंगार करती है और फिर माता पार्वती समेत भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती हैं। आज के दिन कथा श्रवण का विशेष महत्व है। आज व्रत कथा संध्या कालीन में अवश्य ही करना चाहिए, तत्पश्चात भगवान शिव एवं गौरी की आरती की जाती है। साथ ही पूरे दिन उपवास रखकर व्रत कर्म को संपन्न किया जाता है।

हालांकि भिन्न-भिन्न स्थानों पर इस व्रत को अलग-अलग प्रकार से मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर यह व्रत 3 दिनों तक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है तो कहीं यह सामान्य तरीके से।

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