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Navratri 2020: 58 वर्षों बाद बना है दुर्लभ ज्योतिषीय योग, माँ की सवारी से लेकर जानें 12 राशियों पर प्रभाव और उपयुक्त मंत्र

Navratri 2020 coincidence after 58 years, know effects on all zodiac signs and special mantra

हिन्दू धर्म मे अनेकानेक प्रकार के व्रत, उपवास, पूजा-पाठ आदि आदि निहित है जिसमें से नवरात्र अर्थात माता दुर्गा आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा आराधना को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। नवरात्र पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तौर तरीके से मनाया जाता है।

नवरात्र हिंदू धर्म के मुख्य त्योहारों में से श्रेष्ठ माना जाता है जिसमें पश्चात दसवें दिन अर्थात दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है, अर्थात विजय का त्यौहार। नवरात्रि में माता दुर्गा के नव रूप की अलग-अलग दिन तिथि के अनुरूप पूजा आराधना की जाती है। इस वर्ष 2020 में शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो नवरात्रि के नौं दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना का 12 राशियों के जातकों के ऊपर भिन्न-भिन्न प्रभाव परिलक्षित होता है। प्रायः दुर्गा पूजा को जातकों की जीवन में खुशहाली प्रदान करने वाला ही माना जाता है।

आज हम यहाँ दुर्गा पूजा में माता दुर्गा के नव रूप के बारे में जानेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि उन नौं रूपों का 12 राशियों के जातकों के ऊपर इस वर्ष क्या प्रभाव परिलक्षित होगा, साथ ही 12 राशियों के जातकों के लिए नवरात्रि में पूजा आराधना हेतु विशेष मंत्र माँ आदिशक्ति के नौ रूपों की आराधना की तिथि के साथ-साथ माता के वाहन के बारे में भी अहम तत्व को समझेंगे।

तो आइए जानते हैं सर्वप्रथम माता दुर्गा के नौ रूपों को।

  1. माँ शैलपुत्री (Shailputri),
  2. ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini),
  3. चंद्रघंटा (Chandraghanta),
  4. कुष्मांडा (Kushmanda),
  5. स्कंदमाता (Skandamata),
  6. कात्यायनी (Katyayani),
  7. कालरात्रि (Kalratri),
  8. महागौरी (Mahagauri)
  9. सिद्धिदात्री (Siddhidatri)

58 वर्षों के पश्चात, बन रहा है पुनः ग्रह गोचरों का दुर्लभ योग

प्रत्येक वर्ष नवरात्र के पर्व पर माता दुर्गा के इन्हीं नों रूपो की विशेष पूजा आराधना की जाती है। इस वर्ष नवरात्र पूरे नव रात्रों का होने वाला है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि नवरात्र कभी 7 दिनों में तो कभी 8 दिनों में समाप्त हो जाता है। वहीं यदि हम इस वर्ष के नवरात्रि को ज्योतिष्य परिपेक्ष्य से देखें तो ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक का यह योग पूरे 58 वर्षों के पश्चात पुनः बनने जा रहा है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो इस वर्ष यानी 2020 से पूरे 58 वर्ष पूर्व 1962 में ग्रह-गोचरों की स्थिति का यह दुर्लभ योग संभव हो पाया था जिसमें कि शनि मकर राशि में और गुरु धनु राशि में गोचर करेंगे। 58 वर्ष पूर्व बने इस दुर्लभ संयोग के समय नवरात्र 29 सितंबर को आरंभ हुआ था, अतः ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी वर्ष 2020 में पढ़ने वाला नवरात्र अत्यंत ही महत्वकारी है।

तिथि व दिन के मुताबिक करें माँ की पूजा

  • माँ शैलपुत्री पूजा घटस्थापना - 17 अक्टूबर , शनिवार
  • माँ ब्रह्मचारिणी पूजा - 18 अक्टूबर, रविवार
  • माँ चंद्रघंटा पूजा - 19 अक्टूबर, सोमवार
  • माँ कुष्मांडा पूजा - 20 अक्टूबर, मंगलवार
  • माँ स्कंदमाता पूजा -  21 अक्टूबर, बुधवार
  • षष्ठी माँ कात्यायनी पूजा - 22 अक्टूबर, वृहस्पतिवार
  • माँ कालरात्रि पूजा - 23 अक्टूबर, शुक्रवार
  • माँ महागौरी दुर्गा पूजा - 24 अक्टूबर, शनिवार
  • माँ सिद्धिदात्री पूजा - 25 अक्टूबर, रविवार

शनिवार से शुरू हो रही है नवरात्र की पूजा, बन रहा है बुधादित्य योग

17 अक्टूबर की तिथि यानी शनिवार के दिन से नौ दिवसीय दुर्गा पूजा अर्थात नवरात्रि के पावन पर्व का आरंभ होने जा रहा है। इस दिन ग्रह गोचरों की स्थिति में भी कुछ विशेष परिवर्तन होने जा रहा है। नवग्रहों के अधिपति अर्थात भगवान सूर्य इस दिन अपनी राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। 17 अक्टूबर को सूर्य अपनी राशि परिवर्तित कर तुला में प्रवेश करने जा रहा है। इसके अतिरिक्त इस राशि परिवर्तन के पूर्व बुध वक्री चाल चल रहा था, इस वजह से तुला राशि में बुधादित्य योग्य बनने जा रहा है जिस वजह से ग्रह गोचर के दृष्टिकोण से अर्थात ब्रह्मांडीय हलचल के मुताबिक भी इस वर्ष के नवरात्र का महत्व विशेष हो जाता है।

माता की सवारी का निर्धारण

आपने प्रायः यह सुना होगा कि नवरात्र में आदि शक्ति जगदंबा का आवागमन किसी ना किसी साधन, वाहन व पशु-जानवर आदि के माध्यम से होता है जिसके संबंध में धर्मशास्त्री व ज्योतिष शास्त्र यह तर्क प्रदर्शित करते हैं कि नवरात्र में माता की आवागमन का वाहन नवरात्र के आरंभ की तिथि व माता की विदाई के वाहन का निर्धारण नवरात्र के अंत यानी कि 10वीं वाली तिथि से निर्धारित होता है। यानी कि अगर नवरात्र की शुरुआत सोमवार को होगी तो वाहन हाथी होगा। वहीं रविवार के लिए भी माता का वाहन हाथी ही माना जाता है। शनिवार या मंगलवार के दिन अगर नवरात्र का आरंभ होने जा रहा है तो माता जगदंबा के आगमन हेतु सवारी घोड़े को माना जाएगा। जबकि गुरुवार और शुक्रवार के दिन माता के आवागमन होने पर माता डोली से पृथ्वी लोक पर आती हैं। जबकि बुधवार को यदि नवरात्र का आरंभ होता है तो माता का वाहन नाव माना जाता है।  इस वर्ष नवरात्र के आरंभ की तिथि 17 अक्टूबर यानी शनिवार की है, इस आधार पर इस वर्ष माता का आवागमन घोड़े की सवारी से होगा, जबकि विदाई भैंसे पर होने वाली है।

माता की सवारी है राष्ट्र हेतु अशुभकारक

ज्योतिष शास्त्री और धर्म ज्ञाताओं की मानें तो इस वर्ष माता के आवागमन का वाहन घोड़ा और विदाई का वाहन भैंस होने की वजह से राष्ट्र पर अहित व अशुभकारी परिणाम परिलक्षित हो सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि माता घोड़े पर सवार होकर आती है तो राष्ट्र के वैदेशिक संबंध प्रभावित होते हैं, पड़ोसी देशों के साथ युद्ध होने की आशंका रहती है, साथ ही सीमा पर किसी ना किसी तथ्य को लेकर वाद-विवाद बना रहता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दृष्टिकोण से भी माता की सवारी को उचित नहीं माना जा रहा है। शासन सत्ता में उथल-पुथल की स्थिति बनी रहेगी, राष्ट्रव्यापी रोग शोक चहुँ ओर फैला होगा। अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी आने के आसार हैं। कुल मिलाकर माता का वाहन राष्ट्र हेतु अशुभकारी संकेत प्रदर्शित कर रहा है।

आगे पढ़ें इस योग का सभी 12 राशियों पर क्या होगा प्रभाव...