आपने प्रायः एकादशी व्रत करने वाली घर की महिलाओं से एकादशी व्रत के दिन चावल का सेवन ना करने की सलाह सुनी होगी। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि एकादशी व्रत के दिन चावल के सेवन से मना क्यों किया जाता है? कई बार तो व्रतधारियों को भी इसके पीछे के पौराणिक, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक तत्वों का बोध नहीं होता है। कुछ व्रतधारी तो एकादशी व्रत के मूल अर्थ को भी नहीं समझते! ऐसे में आपका यह जानना अत्यंत ही आवश्यक है, कि एकादशी व्रत क्या है एवं उसके महत्व क्या है? क्यों एकादशी व्रत के ही दिन चावल खाने से ना केवल व्रतधारी बल्कि अन्य परिवार के जनों को भी मना किया जाता है?
तो आइए जानते हैं इन सभी प्रश्नों का उचित एवं सटीक उत्तर। आज हम सर्वप्रथम एकादशी व्रत के बारे में जानेंगे फिर उसके महत्व को समझते हुए हम चावल के वर्जित होने के तथ्यों पर भी प्रकाश डालेंगे।।
एकादशी एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं विशेष फलदाई व्रत है। यह व्रत भगवान विष्णु के अनन्य अवतारों का है। इस व्रत में भगवान विष्णु के सभी अवतारों की भिन्न-भिन्न तिथि पर पूजा आराधना की जाती है। सामान्यतः हर वर्ष एकादशी व्रत 24 बार आता है। वहीं जिस वर्ष मलमास पड़ता है, उस वर्ष एकादशी व्रत की संख्या बढ़कर के 26 हो जाती है। प्रायः एकादशी का व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति एवं संतान के उज्जवल भविष्य एवं दीर्घकालिक जीवन अवधि हेतु रखती हैं।
वर्ष में पड़ने वाले 24-26 एकादशी के व्रत भिन्न-भिन्न नामों से जैसे जया एकादशी, षटतिला एकादशी, विजया एकादशी आदि-आदि से जाने जाते हैं। इसमें प्रत्येक व्रत के विधि-विधान भी अलग-अलग होते है। कुछ एकादशी निर्जला एकादशी होती हैं, तो कुछ सामान्य। सामान्य एकादशी व्रत में व्रतधारी पूरे दिन-रात फलाहार से व्रत करते हैं एवं भगवान विष्णु के भिन्न-भिन्न अवतारों की एकादशी व्रत की महत्ता के अनुरूप आराधना करते हैं। तत्पश्चात दूसरे दिन विधि-विधान से अपना व्रत खोलते हैं। वहीं निर्जला एकादशी व्रत में व्रत धारी दिन-रात अन्न, फल, जल किसी भी तत्व का ग्रहण नहीं करते हैं। इस दिन व्रत धारी पूरी दिन-रात भूखे प्यासे भगवान विष्णु की पूजा आराधना करते हैं एवं दूसरे दिन विधि-विधान से चावल का सेवन करते हुए व्रत खोलते हैं।
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सामान्य एकादशी के मुकाबले निर्जला एकादशी व्रत को अत्यधिक प्रभावी एवं फलदाई माना जाता है। हालांकि शास्त्रों में सभी एकादशी के व्रत को अहम माना गया है। तो आइए जानते हैं एकादशी व्रत के महत्व के संबंध में-
भारतीय हिंदू पौराणिक शास्त्रों में एकादशी व्रत के संबंध में कहा गया है कि ‘न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं’ तात्पर्य विवेक के समान संसार में कोई बंधु नहीं है एवं एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। धर्म आध्यात्मिक से लेकर शास्त्रों तक में एकादशी को व्रतों में शीर्ष स्थान पर रखा गया है। माना जाता है कि मनुष्य अपने मन से अत्यंत ही चंचल प्रकृति का होता है जिसका अपनी इंद्रियों पर संयम नहीं रहता। जो व्यक्ति इंद्रियों को साध लेता है, वह व्यक्ति परम ब्रह्म परमात्मा की असीम अनुकंपा का पात्र बन जाता है। ऐसे व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं एकादशी के संबंध में भी यह तथ्य सर्वविदित किया जाता है कि जो व्यक्ति अपने पांच ज्ञानेंद्रियां एवं पांच कर्मेंद्रियों के साथ अपने मन पर आत्म नियंत्रण स्थापित कर लेता है, वह व्यक्ति एकादशी के सामान निर्मल, पवित्र एवं ब्रह्म स्वरूप हो जाता है।
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एकादशी पर्व के संबंध में शास्त्रों में वर्णित है कि महर्षि नारद को अनेकानेक वर्षों तक निर्जला एकादशी एवं एकादशी व्रत करने के कारण ही भगवान विष्णु की भक्ति प्राप्त हुई थी। इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए ज्योतिष शास्त्रों में एकादशी व्रत ना करने वाले लोगों से भी व्रत के कुछ सामान्य नियमों का पालन करने हेतु कहा जाता है। कहा जाता है कि एकादशी व्रत के दिन सामान्य तौर पर जो व्यक्ति व्रत नहीं करते हैं, उन्हें भी तामसिक भोजन, मद्य-पान आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही इन सबके अतिरिक्त चावल का भी सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी में चावल के सेवन ना करने पर प्रायः प्रश्न उठाया जाता है। कुछ लोग तो व्रत के इस विधान को मान्यता भी नहीं देते जबकि इसके पीछे शास्त्रों में एक विशेष तथ्य निहित है जिसके अनुरूप ही एकादशी व्रत में चावल को वर्जित किया गया है। आइए जानते हैं इस तथ्य के संबंध में-
एकादशी व्रत में चावल का सेवन वर्जित है। इसके पीछे कुछ विशेष तथ्य निहित है। आज हम आपको इसके सभी तथ्यों के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक एवं कथात्मक स्वरूप से परिचय करवाएंगे। आइए जानते हैं-
आध्यात्मिक/धार्मिक कारण
धर्म व अध्यात्म की माने तो किसी भी व्रत उपवास के दौरान व्यक्ति को सात्विकता बरतनी चाहिए, बल्कि व्यक्ति को अपने जीवन में ही सात्विकता का शिरोधार्य कर लेना चाहिए। सात्विकता के पालन करने का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा, मद्यपान आदि का सेवन ना करें। इसके साथ-साथ यह भी विशेष महत्व रखता है कि व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मकता को शिरोधार्य करें जिसमें छल, कपट, झूठ, राग, द्वेष आदि का परित्याग कर सन्मार्ग को अपनाते हुए परम ब्रह्म परमात्मा को अपने जीवन में समाहित करें। वहीं जब हम एकादशी व्रत की बात करते हैं तो उपरोक्त सभी तत्वों के अतिरिक्त इसमें चावल के सेवन से भी मना किया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुरूप एकादशी व्रत के दिन चावल का सेवन करने से रेंगने वाले जीव की योनि प्राप्त होती है। वहीं शास्त्रों में यह भी निहित है कि जिस भी किसी व्यक्ति का अगला जन्म रेंगने वाली प्राणी का निर्धारित होता है, उसके द्वारा द्वादशी तिथि को चावल का सेवन करने से उस योनि से मुक्ति भी मिलती है।
ज्योतिषीय व वैज्ञानिक दृष्टिकोण
एकादशी में चावल खाने से परहेज के पीछे के तत्वों को समझने हेतु हम ज्योतिषीय अथवा वैज्ञानिकीय दृष्टिकोण का प्रयोग करते हैं तो वैज्ञानिकता के अनुरूप चावल का संबंध नमी अर्थात जल से होता है। वहीं ज्योतिषीय दृष्टिकोण में नमी यानी जल का संबंध सीधा चंद्रमा से होता है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा मन और श्वेत रंग का भी स्वामी ग्रह माना जाता है।
वहीं चावल का संबंध जल के साथ-साथ श्वेत रंग से भी होता है। चंद्रमा मन को नियंत्रित करने का कार्य करता है। मन द्वारा ही मानव के चित्त की स्थिरता व अस्थिरता नियंत्रित होती है। जब हम स्पष्टता के साथ इसके त्रिकोणीय अर्थ को समझते हैं तो इससे यह जान पड़ता है कि एकादशी के व्रत के दिन चावल का सेवन करने से चंद्रमा हमारे मन को अधिक चलायमान बनाए रखता है जिससे व्रत की पवित्रता भंग होती है। चूँकि एकादशी व्रत को मन एवं इन्द्रियों को ही नियंत्रित करने का व्रत विशेष माना जाता है, इसलिए इस दिन लोगों को चावल के सेवन से वर्जित किया जाता है। इसी कारण से महर्षि व्यास ने महाभारत काल में वेदों की संरचना व विस्तार की अवधि के दौरान पांडव पुत्रों को एकादशी व्रत बगैर जल के अर्थात निर्जला एकादशी व्रत करने हेतु प्रेरित किया था।
कथात्मक तथ्य
एकादशी व्रत पर चावल ना खाने के संबंध में एक बहुत ही प्राचीन एवं प्रचलित कथा शास्त्रों में निहित है कि आदिकाल में एक महर्षि मेधा हुआ करते थे जो माता शक्ति के बहुत बड़े उपासक थे।
एक बार उनके किसी दुष्ट कृत्य के कारण माता शक्ति उनसे क्रोधित हो गई एवं उन्होंने उसे प्राण दंड देने का निर्णय लिया जिसके भय से महर्षि मेधा छुपने हेतु स्थान ढूंढने लगे। इसी दौरान महर्षि मेधा ने माता शक्ति से बचाव हेतु एक युक्ति निकाली जिसके तहत उन्होंने योग विद्या से अपने शरीर का परित्याग कर दिया एवं मिट्टी में जाकर समाहित हो गए। कुछ समय पश्चात वे किसानों के फसल के साथ धरती के ऊपर हुए एवं चावल के रूप में पृथ्वी लोक पर आ गए। इस तथ्य का भान माता शक्ति को एकादशी की तिथि को हुआ। तब से माता शक्ति के अनुसार जो भी कोई व्यक्ति एकादशी की तिथि को चावल का सेवन करता है, वह व्यक्ति मेधा ऋषि के शरीर के अंगों के मांस के टुकड़े का सेवन करता है जो कि तामसिक भोजन माना जाता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में एकादशी तिथि को चावल के सेवन से वर्जित माना जाने लगा।