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कलावा (मौली) है कल्याणकारी

Hindu sacred thread Kalava (Mauli) is beneficial

हिंदू धर्म में कलावा का विशेष महत्व है। इसे हिंदू धर्म के लगभग सभी जातक अपने हाथों में बांधते हैं। यह कलावा मौली, धागा आदि नामों से भी जाना जाता है। सामान्य तौर पर कलावा लाल अथवा पीले रंग या फिर दोनों रंगों के मिश्रित स्वरूप में बांधा जाता है। वहीं कुछ जातक अपनी कुंडली के अनुसार ग्रहों की स्थिति को देखते हुए उनके शुभ प्रभाव को अपने ऊपर बनाए रखने हेतु भिन्न-भिन्न रंगों के धागे बांधते हैं।

धागा हिंदू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों में भी गुणकारी माना जाता है। इस्लाम धर्म में भी काले धागे का विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त धागे का उपयोग जादू, टोना-टोटका आदि में भी किया जाता है। जादू-टोना आदि में विशेष तौर पर लाल, काले धागे का प्रयोग किया जाता है।

आज हम मुख्य रूप से हिंदू धर्म में प्रयुक्त होने वाला कलावा यानी लाल रंग अथवा पीले रंग के धागे या फिर दोनों रंगों के मिश्रित रंग के धागे के महत्व के संबंध में बात करेंगे, जिसमें हम धागे के वैज्ञानिक महत्व को दर्शायेंएंगे, साथ ही कलावा से संबंधित धार्मिक तथा ज्योतिषीय महत्व पर भी विवेचना करेंगे।

तो आइए सर्वप्रथम जानते हैं कलावा यानी मौली का वैज्ञानिक महत्व-

वैज्ञानिकीय महत्व

विज्ञान की दृष्टि में धागा बांधना अत्यंत ही गुणकारी माना जाता है। विज्ञान का तो यह भी मानना है कि जिस प्रकार धर्म शास्त्रों में व्यक्ति के लिंग के अनुसार धागा के बांधने की विधि अथवा हाथों का विभाजन किया गया है, वह भी वैज्ञानिक तथ्य के आधार पर ही है। अर्थात धर्म ग्रंथों के अनुसार पुरुषों को सदैव कलावा अपने दाहिने हाथ की कलाई में बांधने का परामर्श दिया जाता है, साथ ही कुंवारी कन्याओं को भी दाहिने हाथ की कलाई बांधने को कहा जाता है। जबकि विवाहित स्त्रियों को कलावा अपने बाएं हाथ में बांधना चाहिए। इसके पीछे भी वैज्ञानिक के तत्व हैं। विज्ञान के अनुसार हमारे हाथों की कलाइयों की नस-नाड़ियां हमारे शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से जुड़ी हुई है। सूक्ष्म रूप से इन कलाइयों की नस-नाड़ीयों द्वारा शरीर के कुछ विशेष अंग प्रत्यंगों का संचालन होता है।

विवाहित स्त्रियों के बाए हाथ में कलावा बांधने के संबंध में विज्ञान की मान्यता है कि बाएं हाथ की कलाइयां गर्भधारण अथवा विवाह पर्यंत होने वाले शारीरिक परिवर्तन आदि से संबंधित क्रियाकलापों के लिए पोषण कारक है, जबकि पुरुष अथवा कुंवारी कन्याओं के दाएं हाथ में कलावा बांधने से उदर से संबंधित अंग विशेष का संचालन होता है। इसके अतिरिक्त कलावे के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह शरीर की अतिरिक्त ऊर्जाओं का अवशोषण करता है। जितनी भी बार हम हाथ धोते हैं एवं कलावा साथ में भीगता है, उतनी बार वह शरीर से अतिरिक्त ऊर्जाओं को अपने अंदर अवशोषित करने का कार्य करता है। कलावा रक्तचाप को संतुलित रखता है, हृदय की गति के संतुलन में भी इसका महत्व होता है। मधुमेह के रोगियों, लकवा से पीड़ित रोगी अथवा अन्य गंभीर बीमारियों में भी कलावा उपयोगी सिद्ध होता है। यह व्यक्ति के त्रिदोष अर्थात वात, पित्त, कफ आदि को भी नियंत्रित रखने का कार्य करता है। अतएव धर्म की दृष्टि से भले ना सही, किंतु विज्ञान की दृष्टि से आपको कलावा अवश्य ही धारण करना चाहिए।

मौली का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म की पूजन की क्रिया में 'रक्षा सूत्र धारणम' नामक एक क्रिया होती है जिसमें जातक अपनी कलाई में कलावा का मंत्र उच्चारण के साथ वरण करता है एवं मन ही मन यह भावना करता है कि यह रक्षा सूत्र सदैव उसके साथ ईश्वर के आशीर्वाद के कवच के स्वरूप बना हुआ है, जो उसकी हर बुराइयों से, हर व्याधि एवं संकटों आदि से रक्षा करेगा।

कहा जाता है कि जो जातक कलावा का धारण करता है, उसके ऊपर त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की कृपा सदैव बनी रहती है। कलावा कच्चे सूत के धागे से निर्मित किया जाता है जो लाल पीले रंगों में उपलब्ध होता है। लगभग सभी प्रकार की पूजन क्रिया में कलावा धारण करना अनिवार्य माना जाता है। षोडशोपचार पूजन की प्रक्रिया में तो कलावा को वस्त्र के रूप में स्वयं भगवान को भी अर्पित किया जाता है। इसका ना सिर्फ धार्मिक महत्व है, अपितु वैज्ञानिक एवं ज्योतिष महत्व भी है।

कलावा के संबंध में कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएँ भी हैं। बहनें श्रद्धा भाव से इसे अपने भाई की कलाई पर राखी के स्वरूप में बांधती हैं। कलावा को लेकर ही रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है जिसमें कलावा भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम का प्रतीक माना जाता है। धर्म शास्त्रों की दृष्टि से हर व्यक्ति को कलावा बांधे रहना चाहिए। सूतक की काल अवधि के पश्चात कलावा परिवर्तित करना चाहिए।

धागे का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिष शास्त्रों में ग्रह गोचरों की स्थिति, दशा-दिशा आदि के अनुसार ही धागा बांधने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार धागा व्यक्ति के जीवन में भिन्न-भिन्न प्रकार के कई प्रभाव दर्शाता है। यह ग्रहों के संतुलन बनाने हेतु मददगार सिद्ध होता है। वहीं कई बार गलत रंग के धागा का अथवा किसी अशुभ मुहूर्त में कलावा धारण करने से यह आपके ऊपर अपने दुष्परिणाम भी प्रदर्शित करने का कार्य करता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन जातकों का मंगल ग्रह कमजोर होता है, उन्हें लाल रंग का कलावा ज्योतिषीय परामर्श से धारण करना चाहिए। लाल रंग मंगल का रंग माना जाता है जो मंगल ग्रह को प्रसन्न करने का कार्य करता है। यदि व्यक्ति का गुरु अर्थात बृहस्पति कमजोर हो, तो उसे पीले रंग के धागे का वरण करना चाहिए। जबकि शनि के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु काले रंग के धागे को पहना जाता है।