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वृषभ संक्रांति

Vrishabha Sankranti

सूर्य देव के एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने की घटना को संक्रांति के नाम से जाना जाता है। सूर्य देव एक वर्ष में सभी 12 राशियों में भ्रमण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य भगवान को जगत की आत्मा भी कहा गया है। इसी के मध्य सूर्य कर रहें हैं वृषभ राशि में प्रवेश जिस वजह से वृषभ संक्रांति आ रही है निकट।  

वृषभ संक्रांति के दिन जगन्नाथ मंदिर, पुरी में भी विशिष्ट धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजनों होता है। ज्योतिषी मान्यताओं के आधार पर माना जाता है कि ग्रहों के राशि परिवर्तन का प्रभाव मनुष्य पर भी पड़ता है। ग्रहों की गतिविधियों का प्रत्यक्ष प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य, लाभ-हानि से लेकर अच्छे समय, उन्नति और अवनति तक पर पड़ता है।

तो आइये जानते है इस वर्ष कब है वृषभ संक्रांति, पूजन विधि एवं शुभ मुहूर्त।

वृषभ संक्रांति 2021 तिथि एवं मुहूर्त

हिन्दू मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार ग्रहों में प्रमुख सूर्य देव 14 मई 2021 को राशि परिवर्तन कर मेष राशि से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे, इस कारण इसे वृषभ संक्रांति के नाम से जाना जाएगा।

14 मई को होने वाली इस वृषभ संक्रांति में प्रातः 10 बजकर 36 मिनट से सांय 05 बजकर 33 मिनट तक वृषभ संक्रांति पुण्यकाल रहेगा। इसी के साथ दोपहर बाद 03 बजकर 22 मिनट से सांय 05 बजकर 33 मिनट तक वृषभ संक्रांति महा पुण्यकाल रहेगा।

14 मई को वृषभ संक्रांति के दौरान सूर्य देव वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे और 15 जून 2021 तक वृषभ राशि में ही विराजमान रहेंगे। इस कालखंड में सूर्य देव के राशि परिवर्तन के कारण मौसम में भी परिवर्तन होगा जोकि स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक सिद्ध होगा।

वृषभ संक्रांति के दिन पूजन का होता है विशेष महत्त्व

वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा अर्चना का खास महत्व है। इस दिन किसी भी पवित्र नदी या जलस्त्रोत में स्नान कर तांबे के लौटे से सूर्य भगवान को अर्घ्य देकर चाहिए। इसके बाद अपने पितरों की शांति के लिए जल अर्पित करना शुभ माना जाता है।

सूर्य देव को अर्घ्य देने से आरोग्य की भी प्राप्ति होती है। अर्घ्य देने के लिए जल में आप तिल डालकर जलार्पण की क्रिया को पूर्ण कर सकते हैं। परन्तु वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कोरोना महामारी से बचाव के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए अपने घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना उपयुक्त होगा।

स्नान के बाद गंगाजल का आचमन भी करना चाहिए। स्नान के बाद ही पूर्ण व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

वृषभ संक्रांति के दिन भगवान भास्कर के साथ-साथ भगवान शिव के वृषभरुद्र स्वरुप को भी पूजना चाहिए क्योंकि वृषभ का अर्थ होता है बैल, जोकि भगवान शिव के वाहन नंदी का स्वरुप है। भगवान को भोग के रुप में खीर का प्रसाद अर्पित करना चाहिए।

वृषभ संक्रांति से जुड़ी मान्यताएं

वृषभ संक्रांति का दिन अपने आप में बहुत से विशेष महत्व और रहस्य समेटे हुए है। इस माह को पुण्य प्राप्ति के तौर पर भी देखा जाता है। खास वृषभ संक्रांति के दिन विधि-विधान से पूजा-पाठ करने और साथ ही गौ दान करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। गौ दान करने के विषय में आम जनमानस में ऐसी धारणा है कि गौ दान करने से जीवन में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता।

वृषभ संक्रांति के दिन किसी ब्राह्मण को जल से भरा घड़ा दान करना भी लाभदायक होता है। संक्रांति के दिन पशु-पक्षियों सहित अन्य जीव-जंतुओं के लिए पीने के पानी की व्यवस्था करना भी पुण्य प्राप्ति का मार्ग बन जाता है।

कुछ लोग वृषभ संक्रांति के दिन खाने-पीने की सामग्री का भी दान देते हैं। इस दिन आप अपने मित्रों, परिवारजनों आदि के साथ मिलकर शीतल जल का पियाऊ भी लगा सकते हैं। हालाँकि वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए आप पूर्ण सावधानी, स्वच्छता और जानकारी के अनुसार स्वास्थयवर्धक काढ़ा भी वितरित कर सकते हैं।

पितृ तर्पण के लिए भी वृषभ संक्रांति के दिन को शुभ माना गया है। वृषभ संक्रांति के दिन होने वाला पवित्र स्नान, संक्रमन स्नान के नाम से जाना जाता है। यह स्नान पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इस दिन विशेष फल प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु की आराधना कर नीर-क्षीर विवेक जैसे गुण का वर हमें मांगना चाहिए।

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वृषभ संक्रांति के दौरान सुबह को सूर्योदय से पूर्व स्नान कर पूरे दिन व्रत रखकर सांय काल में फलाहार से व्रत खोलना चाहिए और जातक को रात्रि विश्राम धरती पर ही करना चाहिए। शांति के लिए सांय काल में शान्ति पूजा कराना भी सही रहता है।

शास्त्रों के आधार पर वृषभ संक्रांति को भी मकर संक्रांति के जितना ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूजा-अर्चना, दान, कर्म, तप आदि करना अत्यंत लाभकारी होता है।

वृषभ संक्रांति के दिन पूजा करते समय "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र के जाप को विशेष महत्व वाला बताया गया है।

वृषभ संक्रांति के विषय में ऐसी मान्यता है कि यह जिस माह में आती है, उस माह की दोपहर में वर्ष की सबसे अधिक गर्मी पड़ती है। वृषभ राशि में सूर्य देव के गोचर करने के साथ ही वृषभ संक्रांति के कारण गर्मी भी अपने चरम पर होती है।

इस महीने में सूर्य देव वृषभ राशि के साथ-साथ नौ दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में भी आते हैं जिस कारण इस माह के दौरान नौतपा पड़ता है। इन नौ दिनों में अत्यधिक गर्मी पड़ती है, इसलिए इस माह में गरीबों और जिसे भी आवश्यकता हो, उसे अन्न और जल दान करना चाहिए।

इस माह में अन्न और जल का दान करने पर यज्ञ कराने के समान ही लाभ प्राप्त होता है। वृषभ संक्रांति के माह में पड़ने वाले नौतपा के विषय में ऐसा भी माना जाता है कि यदि इन नौ दिनों में बहुत गर्मी पड़े और बारिश ना हो तो आने वाले दिनों में अच्छी बारिश की संभावना बढ़ जाती है।