हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को बहुत ही अधिक महत्वकारी व्रत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के संबंध में संपूर्ण वेद साहित्य के सार गीता में भी सदवाक्य कहे गए हैं। गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण पांचों पांडवों को एकादशी व्रत करने हेतु उपदेश देते हैं। भगवान श्री कृष्ण के मुताबिक जो जातक एकादशी का व्रत करता है, वह सीधे मोक्ष की प्राप्ति करता है।
हिंदू धर्म में कुल 24 एकादशी के व्रत मनाए जाते हैं किंतु जिस वर्ष मलमास पड़ता है, उस वर्ष कुल 26 एकादशी के व्रत धारण किए जाते हैं। इन्हीं 26 सदस्यों में से एक उत्पन्ना एकादशी व्रत है जिसका बहुत ही अत्यधिक महत्व माना जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक हर वर्ष के मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी की तिथि 11 दिसंबर अर्थात कल की है। उत्पन्ना एकादशी के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि जो भी जातक उत्पन्ना एकादशी का व्रत श्रद्धा पूर्वक विधिवत धारण करता है, उनके ऊपर भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा दृष्टि सदैव बरकरार रहती हैं।
आइये आज हम जानते हैं एकादशी व्रत हेतु शुभ मुहूर्त, तिथि, समय आदि के साथ-साथ व्रत के लिए पूजा विधि व व्रत से जुड़ी कथाओं के संबंध में।
उत्पन्ना एकादशी हेतु तिथि व शुभ मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी व्रत हेतु वर्ष 2020 में 11 दिसंबर की तिथि निर्धारित है। 11 दिसंबर अर्थात शुक्रवार को एकादशी के व्रत की पूजन हेतु सुबह का मुहूर्त प्रातः 5 बजकर 15 मिनट से लेकर 6 बजकर 05 मिनट तक के मध्य का है, तो वही संध्या पूजन के समय हेतु शुभ मुहूर्त 11 दिसंबर की शाम अर्थात शुक्रवार को 5 बजकर 43 मिनट से शाम 7 बजकर 03 मिनट तक है।
उत्पन्ना एकादशी व्रत धारण करने वाले सभी जातक दूसरे दिन अर्थात 12 दिसंबर की तिथि शनिवार के दिन को अपने व्रत का विधिवत पालन करेंगे। व्रत के पारण हेतु सुबह 6 बजकर 58 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 02 मिनट तक के मध्य का समय हिंदू पंचांग मुताबिक निर्धारित किया गया है। अतः जातक उचित काल के दौरान ही अपने व्रत के नियम आदि का पालन करें ताकि आप व्रत का संपूर्ण लाभ एवं भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि ग्रहण कर सकें।
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उत्पन्ना एकादशी व्रत हेतु पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी व्रत में अपने व्रत की पूर्ति हेतु भगवान विष्णु के श्री कृष्ण स्वरूप की पूजा आराधना की जाती है। अतः इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा हेतु सभी प्रकार की तैयारियां पूर्ण कर ले एवं उत्पन्ना एकादशी व्रत की तिथि को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करें। अगर संभव हो तो स्नान की क्रिया किसी पवित्र नदी आदि में जाकर करें। तत्पश्चात व्रत हेतु मन ही मन संकल्प का धारण करें और भगवान सूर्य की पूजा आराधना करें।
भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें और अर्घ्य के साथ साथ उन्हें लाल पुष्प भी अर्पित करें।
तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण के पूजन हेतु 16 प्रकार के सामग्रियों को एकत्रित कर लें और अक्षत, पुष्प, पान, सुपारी धूप दीप नैवेद्य आदि के साथ भगवान श्री कृष्ण का पूजन करें। अगर संभव हो तो पंचामृत घी, शहद, दूध, दही, मिश्री आदि से श्री कृष्ण का स्नान कराएं। तत्पश्चात उन्हें साफ कर नए वस्त्र पहनाए और पूजन की प्रक्रिया को पूर्ण करें।
एकादशी व्रत वाले रात्रि को व्रत धारियों को रात्रि में भगवान श्री हरि विष्णु एवं श्री कृष्ण के भजन कीर्तन के साथ जागरण करना चाहिए। तत्पश्चात प्रातः काल स्नानादि कर भगवान श्री कृष्ण की आरती करें और अंत में क्षमा याचना कर द्वादशी तिथि पर ब्राह्मण अथवा भूखे गरीबों के मध्य भोजन करवाकर अपने व्रत का पारण करें।
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उत्पन्ना एकादशी की व्रत कथा
एकादशी का व्रत माँ एकादशी के नाम पर धारण किया जाता है जिसके संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता में युधिष्ठिर को कथा सुनाई थी। कथा के अनुसार सतयुग में एक राक्षस हुआ करता था जिसका नाम मूर था। वह अत्यंत ही शक्तिशाली था। वह देव लोक पर अपना विजय हासिल कर स्वर्ग पर अपना अधिकार हथियाना चाहता था। ऐसे में इंद्रदेव काफी व्याकुल व भयभीत हो गए।
इंद्रदेव ने भगवान श्री हरि विष्णु से मुर नामक राक्षस से बचने हेतु मदद मांगी। भगवान श्री कृष्ण ने से युद्ध करना आरंभ कर दिया ताकि वे देवलोक अर्थात स्वर्ग की रक्षा कर सकें। भगवान विष्णु ने कई वर्षों तक लगातार युद्ध किया। युद्ध करते करते उन्हें तीव्र निंद्रा आने लगी, तत्पश्चात श्रीहरि विष्णु निद्रा हेतु बद्रिका आश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने चले गए। भगवान विष्णु के पीछे-पीछे वहां वह राक्षस भी पहुंचा और उसने भगवान श्री हरि विष्णु को विश्राम करते देख उन पर प्रहार हेतु प्रयास किया। इतने में एक कन्या, जो उसी गुफा में उस समय विद्यमान थी, उन्होंने मूर से युद्ध किया और उस कन्या तथा मुर के मध्य घमासान युद्ध चला जिसमें कन्या ने मुर नामक दैत्य का वध कर उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया।
मुर दैत्य की चीख सुनकर भगवान श्री हरि विष्णु की नींद खुली। नींद खुलते ही उन्होंने जो परिदृश्य देखा वह देखकर वे तत्काल के लिए अचंभित रह गए। उन्होंने उस कन्या का आभार व्यक्त किया और उन्हें देवी की उपाधि प्रदान की और कहा कि - हे देवी आप जो भी वर प्राप्त करना चाहते हैं, वह हमसे मांग सकती हैं।
उस कन्या ने कहा हे प्रभु मैं चाहती हूँ कि संपूर्ण सृष्टि के जन आपकी पूजा आराधना हेतु जो व्रत धारण करें, वह व्रत मेरे नाम से जाना जाए। भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें तथास्तु कहते हुए उस कन्या का नाम एकादशी रखने के साथ-साथ एकादशी नामक व्रत का भी वर्णन किया और कहा कि एकादशी व्रत का जो भी जातक पूरे मन व श्रद्धा से पालन कर व्रत धारण करेगा, उसे सीधे मोक्ष की प्राप्ति होगी एवं उसके सभी पाप आदि का नाश हो जाएगा। तब से ही एकादशी व्रत का प्रचलन माँ एकादशी व्रत के नाम से आरंभ हो गया। उत्पन्ना एकादशी व्रत इन्हीं व्रतों में से एक है।