नवरात्र है आधुनिक विज्ञान का विस्तृत विधान, जांनिये वैज्ञानिक महत्व के साथ-साथ प्रचलित पौराणिक कथाओं को भी

Scientific significance of Navratri and stories

हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया जाता है। शारदीय नवरात्र में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना की जाती है जिसमें नवरात्र का प्रकरण चलता है, अर्थात नवरात्रों तक पूजा आराधना की जाती है जिसका दशमी के दिन अर्थात दशहरे के दिन विसर्जन होता है।

वैसे तो नवरात्र हर वर्ष 4 बार आती है जिसमें से दो नवरात्र गुप्त नवरात्र होते हैं, जो कुछ विशेष ऋषि, महर्षि, ब्राह्मण पंडित आदि द्वारा किया जाता है, जबकि अन्य दो नवरात्र चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र को सभी लोगों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है। किंतु इन दो नवरात्रों में भी अगर महत्व और धूमधाम से मनाने की बात करें, तो शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व माना जाता है। शारदीय नवरात्र को देशभर में धूमधाम से और अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

इसमें माता दुर्गा आदिशक्ति की स्थापना कर नों दिनों तक पूजा आराधना की जाती है और माता से सुख-समृद्धि, सौभाग्य आदि की कामना की जाती है। हर वर्ष धूमधाम से मनाया जाने वाला नवरात्र इस वर्ष 17 अक्टूबर की तिथि से आरंभ होकर 25 अक्टूबर की तिथि को समाप्त होने वाला है। इस वर्ष नवरात्र,  शारदीय अधिक मास ( जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहकर भी संबोधित किया जाता है ) के कारण 1 माह विलंब से मनाई जाने वाली है। अन्य वर्ष प्रायः नवरात्र सितंबर माह में ही संपन्न हो जाया करता था जबकि इस वर्ष नवरात्रि 17 अक्टूबर से आरंभ को चूका रहा है। नवरात्र के संबंध में कुछ वैज्ञानिक तथ्य है तो कुछ धार्मिक कथाएं व पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं सर्वप्रथम नवरात्र से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों के संबंध में।

माता दुर्गा आदि शक्ति जगदंबा है जिसकी पूजा अर्चना, हर प्रहर, हर दिन, हर वर्ष हर माह की जाती है। इसके लिए किसी व्रत उपवास त्योहार आदि के विधान की आवश्यकता नहीं होती। किंतु हिंदू धर्म में नवरात्र पर्व की तिथि का निर्धारण प्रकृति के अनुकूल किया जाता है जिसमें प्रकृति एक मौसम से दूसरे मौसम में परिवर्तित हो रही होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर हम इस तथ्य का विश्लेषण करें तो नवरात्र के समय अर्थात उन 9 दिनों के कालखंड की अवधि के दौरान प्रकृति परिवर्तन की क्रिया का चरण दौर होता है जिसमें मौसम अपनी एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होता है और शरद ऋतु का आगमन होता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस कालखंड में भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग काफी सक्रिय हो जाते हैं और अनेक-अनेक प्रकार के जीवाणु, विषाणु, कीटाणु आदि प्रकृति में इर्द-गिर्द मंडराते हुए काफी क्रियाशील हो जाते हैं। ऐसे में हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले नवरात्र के पर्व के माध्यम से सभी व्यक्ति अपने घर के आस-पास की साफ सफाई रखते हैं एवं घर की स्वच्छता का विशेष ख्याल रखते हैं।

नवरात्रि के पर्व पर हम घर में पूजा आदि की प्रक्रिया करते हैं, हवन-यज्ञ आदि करवाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध होता है। साथ ही नवरात्र के अवसर पर सभी जातक 9 दिनों तक संतुलित भोजन ग्रहण करते हैं। जातक फलाहार, किसी एक अन्न आहार उपवास आदि करते हैं जिससे शारीरिक तौर पर भी संतुलन बरकरार रहता है और आंतरिक तौर पर शुद्धता हो जाती है जो स्वास्थ्य और प्रकृति की शुद्धता के दृष्टिकोण से अत्यंत ही प्रभावकारी माना जाता है। इस मुताबिक हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला नवरात्र का पर्व वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यधिक प्रभावी और आधुनिक वैज्ञानिक विधान है।

नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथाएं व मान्यताएं

यदि हम नवरात्र के संबंध में पौराणिक कथाओं पर दृष्टि डालें तो दो कथाएं अत्यधिक प्रचलित भान पड़ती है जिसमें से एक कथा रामनवमी से संबंधित अर्थात राम रावण के मध्य के युद्ध और विजय से संबंधित दशहरा से जुड़ा है। तो दूसरी कथा माँ आदिशक्ति द्वारा महिषासुर के वध से संबंधित है।

इन दोनों प्रचलित कथाओं में से महिषासुर के संबंध में यह वाक्यांश प्रचलित है कि महिषासुर अत्यंत ही प्रबल शक्तिमान व तपस्वी दानव था जो ब्रह्मा जी के अनन्य उपासकों में से श्रेष्ठ माना जाता था। महिषासुर ने अपने तप के बलबूते पर ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया कि महिषासुर का वध ना तो कोई मनुष्य ना देवता ना ही दानव कर पाए।

इस वरदान की प्राप्ति के पश्चात धीरे-धीरे महिषासुर के अंदर निर्दयता, क्रूरता व घमंड आ गया। अपने आपको वह अजर-अमर मानकर तीनो लोक में कोहराम मचाने लगा और सभी लोगों को परेशान करता फिरता था। वह साधु-संत व धर्म कर्म से जुड़े लोगों की निर्मम हत्या करने में बिल्कुल भी नहीं हिचकता था।

महिषासुर के आतंक से आतंकित होकर सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी पालन पोषण करता विष्णु जी और देवों के देव महादेव ने अपनी शक्तियों को एकत्रित कर एक नए अस्तित्व को जागृत किया जो माँ आदि शक्ति जगदंबा के रूप में सर्वव्यापक हुई। आदि शक्ति जगदंबा ना पुरुष थी ना देवता ना दानव आदिशक्ति जगदंबा का प्रादुर्भाव एक स्त्री के स्वरूप में हुआ जिसने महिषासुर से लगातार नौ दिनों तक युद्ध कर उसका अंत किया। तत्पश्चात युद्ध के अंत पर सत्य की विजय हेतु नवरात्र का पर्व मनाया जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि महिषासुर के साथ 9 दिनों तक युद्ध के दौरान माता ने नौ रूपों के दर्शन दिए और नौ रूपों में युद्ध की प्रक्रिया  का समापन किया, इस वजह से नवरात्रि के पर्व पर माता के नौ रूपों की पूजा आराधना की जाती है।

वहीं नवरात्र अर्थात विजयादशमी से जुड़े अन्य कथा के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि जब त्रेता काल में भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने हेतु आक्रमण करने लंका नगरी पहुंचे थे। तो उन्होंने युद्ध के विजय प्राप्ति हेतु युद्ध से पूर्व माता भगवती के आशीर्वाद के लिए रामेश्वरम में लगातार नौ दिनों तक माता के नौ रूपों की पूजा आराधना की थी। तत्पश्चात उन्होंने रावण से युद्ध किया और विजय की प्राप्ति की। इस वजह से नवरात्र का पर्व 9 दिनों तक माता की पूजा आराधना से जुड़ा है एवं विजय प्राप्ति वाले दिन को दशहरा अर्थात विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है जिसे असत्य पर सत्य की जीत बुराई पर अच्छाई की जीत मानी जाती है।