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लक्ष्मण से ही क्यों संभव थी मेघनाथ की मृत्यु?

Why only lakshman could kill Meghnath?

भारतीय संस्कृति के मार्गदर्शक स्वरूप महाग्रंथों में वाल्मीकि द्वारा रचित, रामायण एक अनुपम महाकाव्य व स्मृति का अंग है। शास्त्रों के अनुसार यह अधर्म पर धर्म की विजय व धर्म के पुनर्स्थापना की गाथा के रूप में वर्णित की गई है।

पृथ्वी लोक में श्री राम के रूप में अवतरित, श्री हरि विष्णु के जीवन में घटित अनेकों घटनाओं का वर्णन, संपूर्ण जगत को सशक्त मार्गदर्शन प्रदान कर एक आदर्श स्थापित करता है जिसे परिपूर्ण करने हेतु प्रत्येक पात्र व प्रत्येक घटना अहम भूमिका रखती है।

जिस प्रकार भगवान श्री राम के आदर्श, भरत का त्याग, हनुमान की भक्ति, सीता का पतिव्रता धर्म, रावण का अहंकार, विभीषण का स्वामी के प्रति अनुराग प्रसिद्ध है, उन्हीं के मध्य लक्ष्मण अपनी भ्रात भक्ति व असुर दशराज रावण का पुत्र मेघनाथ अपनी पितृ भक्ति हेतु संपूर्ण जगत में अत्यंत लोकप्रिय है। दोनों ही अपनी अनंत भक्ति समर्पण भाव, त्याग एवं अनुराग के स्वामी थे। इनके अतिरिक्त भी ना जाने कितने पात्र हैं, जो जगत को कर्म सिखाते हैं।

रामायण में ऐसी कई कहानियों का उल्लेख मिलता है, जिनको जानकर यह प्रतीत होता है कि संसार में घटित होने वाली प्रत्येक घटना के होने का एक विशेष कारण होता है। हम बेशक उस घटना को छोटा- बड़ा या अनहोनी समझे किंतु कुछ समय के पश्चात उसके पीछे का मर्म हम समझ पाते हैं। जैसे भूतकाल में एक बार महारानी कैकई ने अयोध्या के महाराजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी, उस समय महाराज ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें दो वरदान मांगने की आज्ञा दी, किंतु उस समय रानी ने वरदान मांगने से इनकार कर दिया और उत्तम समय की छाया में वरदान मांगने के लिए महाराज की बात को टाल दिया। इसी कारण महारानी कैकेई ने अपने पुत्र मोह का रसपान कर भविष्य में श्री राम के 14 वर्षों का वनवास व अपने त्यागी पुत्र भरत के लिए सिंहासन की मांग की। अपनी प्रसन्नता में वरदान मांगने की बात उस समय राजा दशरथ को भी छोटी सी लगी होगी, किंतु उनके वचनबद्धता से संपूर्ण अयोध्या की पृष्ठभूमि परिवर्तित हो गई है।

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रामायण में वर्णित राम का वनवास, सीता हरण और सीता की वापसी हेतु राम व रावण का धर्म युद्ध क्रमशः मेघनाथ वध भी स्वर्ण रूप से सुशोभित है। कहते हैं कि मेघनाथ और लक्ष्मण का युद्ध अत्यंत दर्शनीय था क्योंकि मेघनाथ बहुत ही प्रबल योद्धा था। उसके जन्मोपरांत ही सृष्टि के संपूर्ण मेघों ने रोते हुए एक समान नाद किया था, तत्पश्चात उसका नामकरण मेघनाथ हुआ।

एक बार देवासुर संग्राम में रावण को इंद्र द्वारा बंदी बना लिया गया, तब मेघनाथ ने अपने पिता की रक्षा हेतु इंद्र को ही बंदी बना लिया और उन्हें लंका ले आया। जब इंद्र को मुक्त कराने ब्रह्मा जी उसके द्वार पर पधारे, तो ब्रह्मा से उसने एक वरदान रूपी अपेक्षा पूर्ण करने को कहा, अपने प्राणों की रक्षा व अमर रहने हेतु उसने यह वरदान मांगा कि मुझे वही मार सकेगा जिसने 14 वर्षों तक ना तो भोजन ग्रहण किया हो, ना ही किसी स्त्री का मुख देखा हो, और ना ही निद्रा का आहार ग्रहण किया हो। उसके वरदान की मांग को पूर्ण कर ब्रह्मा जी ने इंद्र देव को मेघनाथ की गिरफ्त से मुक्ति प्रदान की।

मेघनाथ इस प्रकार सर्वशक्तिशाली असुरों की श्रेणी का प्रबल दावेदार बन गया और उसके पास नागपाश रूपी ऐसा शास्त्र था जिससे वह अदृश्य होकर राम-लखन सहित पूर्ण सेना पर बादलों के पीछे छुप कर वार कर सकता था। वह भली भांति जानता था कि संसार में किसी भी साधारण मनुष्य के हाथों उसका वध संभव नहीं है। वहीं दूसरी ओर श्रीराम के अनुज लक्ष्मण अपने ज्येष्ठ भ्राता के प्रति कर्तव्यपरायण थे। अतएव वे वनवास के दौरान क्षणभर भी सोए नहीं, ना ही उन्होंने अन्न ग्रहण किया और ना ही निद्रा का स्वापान किया।

धर्म और अधर्म के बीच युद्ध की समाप्ति के उपरांत, भगवान श्री राम के राज्याभिषेक में सम्मिलित अनेक तपस्वी, ऋषि-मुनि आदि भगवान राम से मिलने व आशीर्वाद देने वहां पर उपस्थित हुए। उस समय मुनि अगस्त ने प्रभु श्रीराम से कहा - राम आपने रावण व कुंभकरण को मारा जो अति दुर्लभ था, लेकिन अधिक विषाद संग्राम लक्ष्मण ने मेघनाद से किया था। उसका वध सबसे ज्यादा विषम था। गुरु के वचनों को सुन प्रभु श्री राम अचंभित हो गए क्योंकि वे मेघनाथ की प्रबलता व उनके वरदान से अनभिज्ञ थे।

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तभी अगस्त्य मुनि उन्हें पूरी बात विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि मेघनाद विश्व का एकमात्र ऐसा योद्धा था, जिसके पास समस्त दिव्यास्त्र थे। तीनों महास्त्र- ब्रह्मा, नारायणास्त्र व महादेव का पाशुपतास्त्र भी था। उसे वरदान था कि उसके रथ पर रहते हुए कोई उसे परास्त नहीं कर सकता। इसी कारण उस समय केवल संसार में वही एक योद्धा था, जिसने अतिमहारथी होने का स्तर प्राप्त किया था। उसने स्वयं भगवान रूद्र से युद्ध की शिक्षा प्राप्त की और समस्त शस्त्र प्राप्त किए। उसकी शिक्षा प्राप्त होते ही, रुद्र ने स्वयं ही कहा कि उसे इस संसार में कोई पराजित नहीं कर सकता, किंतु उनका वध केवल लक्ष्मण के ही हाथों संभव था। महर्षि के मुख वाणी से मेघनाथ का ऐसा वर्णन सुन भगवान राम विस्मयित रह गए और बोले लक्ष्मण निसंदेह महा प्रचंड योद्धा है और उनके पास भी विश्व के सारे दिव्यास्त्र थे, किंतु उसे पशुपतास्त्र का ज्ञान नहीं था जिसका ज्ञान मेघनाथ को था। फिर भी लक्ष्मण किस प्रकार मेघनाथ का वध करने में सफल रहे, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, कि केवल लक्ष्मण ही उसका वध कर सकते थे।

इस पर अगस्त्य मुनि ने कहा - आपका कथन सत्य है। जितने दिव्यास्त्र मेघनाथ के पास थे, उतने ही लक्ष्मण के पास थे, किंतु मेघनाथ को एक वरदान प्राप्त था, कि उसकी मृत्यु केवल वह मनुष्य ही कर सकता है, जिसने 14 वर्षों तक अन्न व निद्रा का त्याग किया हो एवं किसी महिला का 14 वर्षों तक मुख नहीं देखा होगा। पूरे विश्व में केवल लक्ष्मण ही ऐसे व्यतित्व थे जो मेघनाथ के वरदान की इन सभी शर्तों को पूर्ण कर रहे थे। इसी कारण लक्ष्मण मेघनाथ पर विजय प्राप्त कर सकते थे।

यह सुनकर श्री राम भाव-विभोर हो गए और संशयपूर्ण वाणी में लक्ष्मण से प्रश्न करते हैं, कि तुमने इस वरदान की सीमाओं को कैसे पार किया।

लक्ष्मण अपनी विनम्रता से कहते हैं कि आप और माता एक कुटिया में सोते थे तो मैं रात भर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए रखवाली में खड़ा रहता था। नींद ने मेरी आंखों पर कब्जा करने का प्रयास किया तो मैंने निंद्रा को अपने बाणों से भेद दिया। तब निंद्रा देवी ने अपनी हार स्वीकार कर मुझे वचन दिया कि मुझे 14 वर्षों तक स्पर्श नहीं करे और जब आपका राज्याभिषेक होने लगे तब मुझे आकर घेर लें। निद्रा देवी को दिये वचन के कारण ही मैं आपका राज्याभिषेक भी नहीं देख पाया क्योंकि उस समय मैं सो गया था।

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इस के संदर्भ में राम कहते हैं कि, सीता तो हमारे साथ ही रहती थी, तो फिर तुमने किसी स्त्री का मुख कैसे नहीं देखा। तो लक्ष्मण विनम्रता से उत्तर देते हैं कि, प्रभु मैंने कभी उनके मुख को नहीं देखा, मैं सिर्फ उनके चरणों को स्पर्श कर आशीर्वाद लिया करता था, इसलिए जब सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण पहचानने को कहा, तो मैं सिर्फ उनकी पायल को पहचान सका क्योंकि मैंने उन्हें चरणों के उपरांत कहीं देखा ही नहीं, और रही बात भोजन की, जब आप मुझे भोजन हेतु कंदमूल फल को सेवन के लिए देते थे, तब आप मुझे उस को ग्रहण करने की आज्ञा प्रदान नहीं करते थे। इसलिए मैं आपके द्वारा दिए गए कंदमूल फल को अपने पास रख लेता था किंतु उसका सेवन नहीं करता था।

श्रीराम ने अचंभित होते हुए कहा, तो सारे वनवास काल के फल वही वन में हैं। तब लक्ष्मण ने कहा - नहीं भ्राता, उनमें से 7 दिन के फल नहीं है, क्योंकि उन 7 दिन आपने भी फलों का सेवन नहीं किया था, इसलिए फल आए ही नहीं थे।

1. पिताश्री के स्वर्गवासी होने के उपरांत,
2. रावण द्वारा माता के हरण के उपरांत,
3. समुद्र से राह मांगने के लिए निराहार आग्रह,
4. नागपाश में बंधकर दिन भर अचेत रहे
5. मायावी सीता का शीश कटने की सूचना के उपरांत,
6. रावण के द्वारा मूर्छित होने पर,
7. रावण के वध की खुशी के उपरांत

यह सुनकर प्रभु श्रीराम गद गद हो गए और लक्ष्मण के जीवन का ऐसा त्याग और सच्चरित्र देख, वहां उपस्थित सभी लोग साधु संत आदि लक्ष्मण के त्याग एवं समर्पण के आगे नतमस्तक हो गए।

इस घटना के उपरांत ही हिंदू धर्म का महा ग्रंथ रामायण हमें यह बोध कराता है कि, भ्रात प्रेम में मोहित, अनुरागी, वैराग्य की मूर्ति, सदाचार के आदर्श, समर्पण भाव, सत्चरित्र व्यक्तित्व, त्यागी व दिव्य आत्मा स्वरुप लक्ष्मण के तप, श्रम व वल के प्रायोजन से ही मेघनाथ पर उन्होंने विजय प्राप्त की। वाल्मीकि जी ने रामायण में यह कथित किया है कि अधर्म पर धर्म की, असुरों पर देवताओं की, नकारात्मकता पर सकारात्मकता की, अहंकार पर विनम्रता की तथा असत्य पर सत्य की विजय एवं संपूर्ण जगत में असुरों का अंत करने में लक्ष्मण ने विष्णु रूप श्री राम के भक्त बन मुख्य भूमिका निभाई और तीनों लोकों में पूजित श्री राम ने इस धरती को असुरों से विहीन कर एक बार पुनः धर्म को संपूर्ण जगत में स्थापित किया।