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रक्षाबंधन पर्व पर राखी बांधने हेतु कौन सा समय है शुभकारी और कौन सा है अशुभकारी

हर वर्ष सावन के महीने में पूर्णिमा की तिथि बहुत ही महत्वकारी होती है। इस दिन को सभी जातक रक्षाबंधन त्योहार के रूप में मनाते हैं। रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहनों के प्रेम व स्नेह का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन में बहने अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं एवं सदैव अपनी रक्षा का वचन अपने भाई से मांगती है। किंतु रक्षाबंधन के अवसर पर रक्षा सूत्र यानी राखी बांधने के लिए उचित तिथि समय मुहूर्त का होना भी अत्यंत ही आवश्यक माना जाता है। अशुभ मुहूर्त व अशुभ समय में बांधी गई राखी शुभ प्रभाव की जगह अशुभकारी परिणाम दर्शाने लगते हैं। इस वर्ष के रक्षाबंधन की तिथि यानी 3 अगस्त की तिथि को भी कुछ समय हेतु ऐसे ही अशुभकारी योग बन रहे हैं जो जातकों के जीवन पर अपने बुरे प्रभाव दर्शाएते है।

तो आइए जानते हैं 3 अगस्त को मनाए जाने वाले रक्षाबंधन पर्व हेतु शुभ मुहूर्त, तिथि, योग, पूजन विधि व इनसे जुड़ी कथा के संबंध में-

ग्रह- गोचर व योग

किसी भी जातक के लिए ग्रह गोचर की स्थिति व चाल बहुत मायने रखती हैं। इस वर्ष रक्षा बंधन के पर्व पर ग्रह गोचरों की स्थितियों का अगर हम अवलोकन करें तो पाते हैं कि रक्षाबंधन की तिथि यानी सावन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु बृहस्पति अपनी राशि धनु में गोचर करने वाला है, जबकि शनि मकर में अपनी वक्री चाल में रहने वाला है। वहीं चंद्रमा अपनी राशि परिवर्तित कर शनि के साथ मकर राशि में रहने वाला है। चूँकि चंद्रमा ढाई दिन में अपनी राशि का परिवर्तन करता है, अतः रक्षाबंधन के इस पावन पर्व के दिन ग्रह गोचरों की स्थिति व ब्रह्मांडीय योग कुछ इसी प्रकार की स्थिति में रहने वाला है।

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शुभ मुहूर्त व राहु काल

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 3 अगस्त 2020 की तिथि यानी रक्षा बंधन के पावन अवसर पर भद्रा योग का भी साया पड़ने वाला है, हालांकि इस बार रक्षा बंधन के अवसर पर भद्रा का साया अधिक देर तक नहीं रहने वाला है। इस दिन राहुकाल सुबह 7 बजकर 30 मिनट से लेकर 9 बजकर 02 मिनट तक रहने वाला है। आज के दिन भद्रा का साया प्रातः 9 बजकर 29 मिनट तक समाप्त हो जाएगा। भद्रा की समाप्ति के पश्चात आप पूरे दिन राखी बांध सकते हैं। वहीं अगर नक्षत्रों के फेरबदल की बात की जाए, तो सावन मास की पूर्णिमा तिथि का शुभारंभ नक्षत्रों के अनुसार 7 बजकर 30 मिनट से आरंभ होगा, अर्थात 3 अगस्त की तिथि को सुबह 7 बजकर 30 बजे से श्रावण नक्षत्र का आरंभ हो जाएगा।

रक्षा बंधन पर्व पर पूजन विशेष

रक्षाबंधन का त्योहार हर बहन के लिए बहुत ही खास होता है। इस दिन सभी जातकों को प्रात काल ब्रह्म मुहूर्त में जग कर घर में भगवान की पूजा तत्पश्चात आरती करनी चाहिए। आप अपने इष्ट की आराधना करें एवं अपने भाई के दीर्घायु की कामना करें। तत्पश्चात रक्षाबंधन के त्यौहार के पूजन की थाली सजाये जिसमें राखी, चंदन, चावल, मिठाई, दिया, फूल आदि रख लें। फिर सर्वप्रथम अपने कुल देवता को राखी बांधे, तत्पश्चात अपने इष्ट देवों को राखी बांधे, फिर बहनें अपने भाइयों के मस्तक पर तिलक लगाएं और यह भावना करें कि आपके भाई का सर सदैव गर्व से ऊंचा रहे। अपने भाइयों की आरती उतारे और मन ही मन यह कामना करें कि उनके भाई के यश-कीर्ति इसी प्रकार से दीपक की प्रकाश की भांति चहुँ लोक में फैलती रहे। अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधते हुए भाई से यह वचन लें कि वो आजीवन आप की रक्षा हेतु तत्पर रहेंगे। उनके दीर्घायु जीवन के साथ सुखी जीवन की कामना करें, अंत में अपने भाई को मिठाई खिलाते हुए अपने रिश्ते में मधुरता एवं भाई के जीवन में सदैव खुशहाल बनाए रखने की कामना करें। ध्यान रहे कि राखियां सदैव पुरुषों के दाहिनी कलाई में बांधी जाती है।

राखी बांधने हेतु शुभ मुहूर्त

3 अगस्त 2020 की प्रातः काल में आप रक्षा बंधन पर्व को पूर्ण करने हेतु शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधे। ग्रह नक्षत्रों व ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस वर्ष रक्षाबंधन पर अर्थात राखी बांधने हेतु शुभ मुहूर्त 9 बजकर 30 मिनट से लेकर रात्रि 9 बजकर 11 मिनट तक का बना हुआ है, अर्थात रक्षाबंधन पर्व हेतु शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 11 घंटे 10 मिनट की रहेगी जिसमें आप अपने भाइयों व स्वजनों को राखी बांधकर मंगलमय जीवन की कामना कर सकते हैं।

क्या है रक्षाबन्धन से जुड़े कथात्मक तथ्य

वैसे तो रक्षाबंधन पर्व के संबंध में अनेकानेक प्रकार की कथाएं और प्रचलित है, किंतु अगर हम पुराणों में रक्षाबंधन पर्व के उल्लेखन की बात करें तो रक्षाबंधन पर्व के संबंध में पुराणों में यह वर्णित है कि एक बार जब असुरों द्वारा संपूर्ण सृष्टि पर अपना आधिपत्य जमा लिया गया था। तब चहुँ ओर हाहाकार मच गया था। सभी देवी-देवता उनसे त्रस्त हो गए थे।

असुरों का संहार कर पाना देवताओं को भारी पड़ रहा था। तब सभी देवतागण अपनी इस समस्या के समाधान एवं सृष्टि के बचाव व सुचारू रूप से पालन पोषण हेतु देवताओं के गुरु अर्थात गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे एवं उनसे यह याचना की कि - हे बृहस्पति देव, हमें कोई ऐसा मंत्र व उपाय बताएं जिसके माध्यम से हम असुरों से विजय प्राप्त करें और सृष्टि का सुचारू रूप से संचालन कर असत्य पर सत्य की विजय प्राप्त कर सके।

गुरु बृहस्पति ने देवताओं को समस्या का हल सुझाते हुए यह कहा कि असुरों से संघार में विजय प्राप्त कर पाना एक ही आधार पर संभव है। यदि देवराज इंद्र को सभी देवी-देवताओं का रक्षा कवच प्रदान किया जाए। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को स्वयं की शक्तियों से अभिमंत्रित कर एक रक्षा कवच स्वयं की ओर से बनाकर इंद्राणी को सौंपने का आदेश दिया। तत्पश्चात इंद्राणी ने सभी देवी-देवताओं की शक्तियों के कुंज अर्थात रक्षा कवच को इंद्रदेव की कलाई पर बांधा एवं इंद्रदेव के साथ सभी देवी देवताओं की शक्तियां जुड़ गई एवं उनके रक्षा का दायित्व भी। तत्पश्चात देवराज इंद्र ने असुरों से संघर्ष किया एवं विजयी हुए। जिस दिन इंद्राणी ने देवराज इंद्र की कलाई पर राखी बांधी थी, यह तिथि सावन मास की पूर्णिमा की तिथि थी। अतः इसी दिन से रक्षा हेतु रक्षा सूत्र को सर्वोपरि माना जाने लगा एवं रक्षा सूत्र  बांधने वाले त्योहार अर्थात रक्षाबंधन के त्यौहार की परंपरा का आरंभ हुआ।