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पूजन व मंदिर का ऐंसे रखें ध्यान, मिलेंगे शुभ फल

हम नित्य प्रतिदिन अपने घर में सभी देवी-देवताओं की पूजा-आराधना करते हैं, अपने घर में अपने इष्ट देव की स्थापना करते हैं, किंतु इन सब के मध्य हमसे कई बार कुछ ऐसी छोटी-मोटी भूल हो जाती हैं जो हमारे लिए अशुभकारी साबित होती हैं। प्रायः हमें इन छोटी-छोटी बातों का ख्याल नहीं रहता अथवा जानकारी नहीं रहती है,

तो आइए आज हम आपको आपके घर में पूजन स्थल अथवा पूजन की प्रक्रिया के दौरान अपनाई जाने वाली कुछ विशेष तथ्यों की जानकारी देते हैं, ताकि आप विधिवत तौर से सही विधि-विधान अनुसार पूजन की प्रक्रिया को पूर्ण कर ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त कर पाए। फिर देर किस बात की आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही साधारण से  किंतु महत्वकारी तथ्यों के संबंध में।

मूर्ति व शिवलिंग का आकार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर के मंदिरों में अथवा पूजन स्थलों पर बड़ी मूर्तियां रखना उपयुक्त नहीं माना जाता है। घर में छोटा मंदिर होता है, अतएव घर के मंदिरों में अथवा पूजन स्थलों पर छोटी मूर्तियां ही रखनी चाहिए। यही उपयुक्त होता है। जबकि बड़े मंदिरों में जो सामान्य रूप से किसी देवी-देवताओं के लिए विशेष रूप से बनाए जाते हैं, ऐसे मंदिरों में ही भगवान की बड़ी प्रतिमा अथवा मूर्ति रखने का विधान है।

शिवलिंग के संबंध में यह कहा जाता है कि किसी भी जातक को अपने घर के मंदिर अथवा पूजन स्थल पर अपने अंगूठे के आकार से बड़ा शिवलिंग कभी भी स्थापित नहीं करना चाहिए।। शिवलिंग का आकार अंगूठे के बराबर अथवा अंगूठे से छोटा होना चाहिए। शिवलिंग को अत्यंत ही संवेदनशील माना जाता है, जिस कारण इसकी स्थापना पवित्र स्थान पर की जाती है, अतएव इन तथ्यों का विशेष ख्याल रखें।

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पूजन कर्म में दिशा

संसार की सभी चलायमान क्रियाएं दिशाओं पर निर्भर करती है। दिशा धर्म, ज्योतिष, लाल किताब, वास्तु आदि में हेतु भी बहुत महत्वकारी है। विज्ञान ने चार दिशाओं की मान्यता दी है तो वही धर्म 10 दिशाओं का विवरण देता है। ज्योतिष शास्त्र में पूजन कर्म हेतु ना सिर्फ भगवान की दिशा अपितु छोटी-छोटी वस्तुओं की भी दिशाओं का विशेष महत्व है। वास्तु शास्त्र में इसका विस्तृत विवरण मिलता है।

अगर पूजन क्रिया के संबंध में बात की जाए तो किसी भी जातक को पूजन करते समय अपने मुख की दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पूजन करते समय जातक का मुख सदैव पश्चिम की दिशा की ओर होना ही शुभकारी माना जाता है, तब ही पूजा सफल एवं सार्थक होती है।

पूजन स्थल के मुख्य द्वार की दिशा का भी आप विशेष ख्याल रखें, पूजा स्थल के मुख्य द्वार की दिशा हमेशा पूर्व की होनी चाहिए। पूजन के दौरान पश्चिम दिशा में मुख कर पाना संभव ना हो तो पूर्व की दिशा में मुख कर भी विराजित हो सकते हैं, यह भी शुभ माना जाता है।

प्रकृति से करें मंदिर प्रकाशित

प्रकृति ईश्वर की दृश्यमान छटा है, जो अपने आंचल तले सभी व्यक्तियों को संवर्धित करती हैं। अतएव आप अपने पूजन कर्म में प्रकृति का आशीष अवश्य आने दे। अर्थात पूजन स्थल भगवान सूर्य की रोशनी आने योग्य स्थान पर रखें। आप अपने घर में पूजन स्थल की दिशा को इस प्रकार निर्धारित करें कि वहां पर 24 घंटे में कम से कम एक बार सूर्य की रोशनी अवश्य ही पड़े। इसके अतिरिक्त पूजन स्थल अथवा घर का मंदिर खुले स्थानों पर होना शुभकारी माना जाता है।

ऐसे स्थान पर पूजन हेतु मंदिर बनाये जहाँ प्रकृति की हवाओं का सराबोर हो, आसपास से ताजी हवा मंदिर तक आती हो। इससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है एवं सकारात्मकता बढ़ती है। सूर्य की रोशनी को विशेष तौर पर लाभकारी माना जाता है। इससे वातावरण की भी स्वच्छता बनी रहती है।

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घंटी बजायें, नकारात्मकता भगायें

सभी जातक को अपने घर में पूजन की क्रिया हेतु एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए। अगर आपके घर में कोई छोटा मंदिर ना हो तो पूजन की क्रिया हेतु किसी विशेष खुले स्थल एवं स्वच्छ वातावरण युक्त परिवेश को चयनित कर ले। तत्पश्चात वहां प्रतिदिन सुबह-शाम पूजन करें। पूजन की क्रिया के दौरान घंटी अवश्य बजाएं।

पूजन स्थल के समीप घंटी बजाने के साथ एक बार पूरे घर के हर क्षेत्र हर एक कोने में भी घंटी अवश्य बजाएं। माना जाता है कि घंटी बजाने से नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है एवं सकारात्मकतायें संवर्धित होती हैं। घंटी बजाना विज्ञान की दृष्टि से भी शुभकारी माना जाता है। इससे कीटाणु-जीवाणुओं का नाश होता है एवं शुभ, स्वच्छ एवं पवित्र वातावरण उत्पन्न होता है।

इन बातों का भी रखें ध्यान

पूजन की क्रिया में स्वच्छ तथा शुद्ध वस्तुओं का ही प्रयोग करें। बांसी फूल को पूजन की क्रिया हेतु उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसलिए इस तरह के फूल का प्रयोग बिल्कुल ना करें, हालांकि बासी पदार्थों में से तुलसी के पत्ते एवं गंगाजल के संबंध में यह मान्यता है कि यह कभी भी बासी नहीं होते।

तुलसी के पत्र एवं गंगा जल का प्रयोग आप कभी भी कर सकते हैं। किंतु अन्य शेष सामग्रियों का ध्यान रखें कि यह पुराने अथवा अशुद्ध ना हो। सूंघे हुए फूल का प्रयोग भी पूजन क्रिया हेतु वर्जित माना जाता है। दीप जलाए बाती से दोबारा दीपक भी नहीं चलाना चाहिए, चूँकि वह जलाया हुआ बाती दोबारा आरती हेतु उपयुक्त व शुद्ध नहीं माना जाता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के दीए में भी दोबारा आरती नहीं करनी चाहिए।

पूजन कक्ष हेतु वर्जित

घर के मंदिर में कभी भी मृतक जातकों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए, यह अशुभ प्रभाव दर्शाता है। इससे आपके पितरों का आपके ऊपर बुरा प्रभाव परिलक्षित होता है। पूजन स्थल पर चमड़े की वस्तुओं का भी प्रयोग नहीं किया जाता है ना ही चमड़े की वस्तुओं को पहनकर पूजन की क्रिया में सम्मिलित हुआ जा सकता है। अतः चमड़े के जूते, चप्पल, बेल्ट आदि का पूजन की क्रिया के दौरान प्रयोग ना करें। मंदिर से इन वस्तुओं को दूर रखें एवं स्वयं को पूर्णरूपेण स्वच्छ व पवित्र कर ही मंदिर में प्रवेश करें। जहां तक बात घर में पूर्वजों की तस्वीर लगाने की है, तो घर में मृत पूर्वजों की तस्वीर लगाने हेतु दक्षिण की दिशा को उपयुक्त माना जाता है। अतः आप अपने घर की दक्षिण की दीवारों पर अपने मृत पूर्वजों की तस्वीर लगा सकते हैं ना कि मंदिर में।

वास्तु के अनुसार घर में पूजन स्थल

आप अपने पूजन स्थल का चयन आसपास की वस्तु एवं वास्तु दोनों को देख कर निर्धारित करें। पूजन स्थल के समीप शौचालय का होना अशुभकारी माना जाता है। इससे अपवित्र एवं अशुद्ध वातावरण बना रहता है।

कोशिश करें आप अपने पूजन स्थल अथवा मंदिर से घर की रसोई घर को भी दूर ही रखें। आपके घर का मंदिर अथवा पूजन स्थल किसी खुले स्थान पर एवं चारों ओर से स्वच्छता पूर्ण वातावरण में बनवायें तो यह बेहतर है।

आप अपने घर के छोटे मंदिर अथवा पूजन स्थल में बैठने के लिए भी एक स्थान बनाएं जहां पर आप जप, तप, ध्यान आदि सुगमता व शांति पूर्वक कर सकते हैं। जप तप आदि हेतु आसन का प्रयोग अवश्य करें। बिना आसन पर विराजमान हुए किया गया पूजन कर्म, जप आदि सार्थक नहीं माना जाता है। बिना आसान के जातक द्वारा की जा रही जप की सभी सकारात्मक ऊर्जाएं पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।

रात्रि में ढकें मंदिरों पर पर्दा

प्रतिदिन रात्रि कालीन वेला में आप अपने घर के मंदिर के पर्दे को व्यवस्थित तरीके से ढक दें एवं ऐसी भावना करें कि आपके इष्ट आराध्य अभी सो रहे हैं। अतः उन्हें किसी भी प्रकार का व्यवधान ना पहुंचे। इस बात का ख्याल रखें जिस प्रकार हमें सोते वक्त किसी भी प्रकार की अड़चन समस्याओं के आ जाने से परेशान व क्रोधित होते है, उसी प्रकार भगवान को भी विश्राम के समय में बाधाओं का उत्पन्न होना पसंद नहीं है।