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सोमवती अमावस्या

सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। ये साल में लगभग दो से चार बार तक पड़ती है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं, और इस दिन पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत तथा चंदन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा की जाती है। इस दिन यदि मौन व्रत रखा जाए तो सहस्त्र गोदान के फल की प्राप्ति होती है।

सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान तथा साबुत हल्दी को मिलाकर उसे विधिपूर्वक तुलसी के पेड़ पर चढ़ाने की मान्यता है। इस दिन दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व है तथा इस दिन गरीबों व असहायों को भोजन कराकर तथा उनकी सहायता करनी चाहिए और उनकी आवश्यकता के अनुसार उन्हें सारी वस्तुएं देनी चाहिए। कहा जाता है कि महाभारत में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन के बारे में बताते हुए कहा था कि इस दिन जो मनुष्य पवित्र नदियों में स्नान करेगा, वह सुख-समृद्धि व अच्छे स्वास्थ्य को प्राप्त करेगा और वह अपने सभी दुखों से भी छुटकारा पाएगा। ऐसा भी माना जाता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सर्वकामना पूर्ति है।

सोमवती अमावस्या की कथा

एक गरीब ब्राह्मण परिवार में एक व्यक्ति अपनी पत्नी और एक पुत्री के साथ रहता था। उसकी पुत्री धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। जैसे-जैसे वह बड़ी होती जा रही थी, उसकी सुंदरता बढ़ती जा रही थी। वह बहुत ही संस्कारवान व गुणवती थी, परंतु गरीब होने के कारण उसके पिता उसका विवाह नहीं कर पा रहे थे।

एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु पधारे, वह उस कन्या द्वारा किए गए द्वारा किए गए सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देकर साधु बोले कि कन्या के हाथ में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दंपति साधु से उपाय पूछने लगे कि ऐसा क्या किया जाए, जो हमारी पुत्री के हाथ में विवाह योग्य रेखा बन जाए। साधु ने कुछ देर अपनी अंतर्दृष्टि में ध्यान लगाकर बताया कि यहां से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में धोबी जाति की एक महिला रहती है  जिसका नाम सोना है। वह अपने बेटे व बहू के साथ वहाँ रहती है। वह बहुत ही संस्कारी व पति परायण स्त्री है। यदि तुम्हारी कन्या की मांग में उस महिला की मांग का सिंदूर लग जाये, तो तुम्हारी पुत्री का वैधव्य योग मिटाया जा सकता है। पर इसके लिए तुम्हारी पुत्री को उस महिला की सेवा करनी पड़ेगी। यह बात सुनकर ब्राह्मण दम्पत्ति ने अपनी पुत्री से उस धोबिन महिला की अच्छे से सेवा करने को कहा।

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अगले दिन वह कन्या सुबह होते ही धोबिन के घर गयी और वहां पर साफ-सफाई, घर के अन्य काम करके वापस घर चली आयी। उस कन्या ने कई दिनों तक ऐसा ही किया। जब धोबिन ने यह देखा तो उसने सोचा कि उसकी बहू ने सुबह उठकर सारा काम कर दिया है। पर जब उसने अपनी बहू से पूछा तो बहू बोली- मुझे लगा कि आपने सुबह उठकर सारा काम किया है। जब दोनों को ये बात समझ आयी कि उन दोनों में से किसी ने काम नहीं किया तो फिर कौन आकर उनके घर का सारा काम कर गया, तब सोना ने एक सुबह उस कन्या को अपने घर का सारा काम करके वापस जाते हुए देखा, तभी सोना ने उसके पैर पकड़ लिए और बोली, कि आप इस तरह छिपकर मेरे घर का सारा कार्य क्यों करती हैं।

तब उस कन्या ने सोना को साधु द्वारा कही पूरी बात बताई। सोना जो कि एक पति परायण स्त्री थी, इसलिए वह तुरंत ही उस कन्या के साथ जाने को तैयार हो गयी। सोना के पति का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था। इसलिए वह अपनी बहू को उनका ख्याल रखने को कहकर उस कन्या के साथ चली गयी। सोना धोबिन ने जब अपनी मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया तभी उसका पति चल बसा और सोना को इस बात का पता भी चल गया क्योंकि वह घर से निर्जल ही चली थी, यह सोचकर कि रास्ते में यदि पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसको भंवरी देकर व उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी। उस दिन सोमवती अमावस्या थी।

धोबिन ने ब्राह्मण के घर से मिले पकवानों की बजाय ईंट के टुकड़ों से ही 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ के चारों ओर परिक्रमा की। और फिर जल ग्रहण किया। ऐसा करने के तुरंत बाद ही उसके पति के शव में प्राण वापस आ गए।

क्यों होती हैं ये अमावस्या विशेष?

  • पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि अमावस्या का सोमवार के दिन पड़ना बहुत ही सौभाग्यशाली माना गया है। इस दिन स्नान, दान व ध्यान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पांडव अपने पूरे जीवन में सोमवती अमावस्या को तरसते रहे, परंतु उन्हें एक भी सोमवती अमावस्या नहीं मिल पायी।
  • सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा व उपासना करने का विशेष महत्व है। इसलिए सोमवती अमावस्या के दिन दान-पुण्य व व्रत करने के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा करना बहुत ही शुभ होता है।
  • इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं और इस दिन पीपल के वृक्ष में भगवान शिव का वास मानकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है।
  • सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र गंगा नदी, किसी भी नदी में स्नान करने या घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने का विशेष महत्व है।
  • इस दिन स्नान के पश्चात तिल से बनी वस्तुएं, तिल का तेल, आंवला, वस्त्र व काजल तथा दर्पण आदि का दान किया जाता है।
  • सोमवती अमावस्या के दिन पितरों की पूजा तथा कुछ स्थानों पर तो पिंडदान करने की भी परंपरा है।
  • जिनकी भी कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, उनको सोमवती अमावस्या के दिन गाय को दही व चावल खिलाने से उनकी कुंडली के चंद्रमा सम्बन्धी विकार धीरे-धीरे कम होते हैं।

सोमवती अमावस्या की तिथि व मुहूर्त

तिथि:-
इस बार सोमवती अमावस्या 20 जुलाई 2020 को सोमवार के दिन है।

मुहूर्त:
अमावस्या का आरंभ- 19 जुलाई अर्धरात्रि 12 बजकर 10 मिनट बजे (20 जुलाई 12:10am) से
अमावस्या समाप्त- 20 जुलाई की रात 11:02 बजे तक