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कल्कि जयंती

Kalki Jayanti

हिन्दू धर्म में अनेक मान्यताओं और प्रथाओं के पीछे कोई न कोई अमूल कारण अवश्य निहित होता है। इस प्रकार श्रवण माह के शुक्ल पक्ष की षष्टी को हिन्दू धर्म में भगवान् विष्णु के इस धरा पर 10 वे व अंतिम अवतार कल्कि रूप में पूजा जाता है।

भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की मान्यता

यह मान्यता है कि इस धरा पर जब असुरों व् दुष्टों का आतंक बढ़ जाता है, तब स्वयं ईश्वर इस धरा पर अनेकों रूपों में जन्म लेकर धरा को दुष्टों व् असुरों से विहीन करते हैं। असत्य पर सत्य की विजय, अधर्म पर धर्म की विजय, बुराई पर सच्चाई की विजय, असफलता पर सफलता की विजय, अशांति पर शांति की विजय, कुकर्म पर सत्कर्म की विजय आदि प्राप्त कर इस धरा पुनः धर्म, शांति सच्चाई, सत्कर्म को स्थापित करते हैं। अब तक ईश्वर ने  9 अवतारों में अवतरित होकर इस सृष्टि को असुरों  विहीन किया है।

यह  मान्यता है कि सिर्फ ईश्वर का 10वां व् अन्तिंम अवतार इस धरा पर बाकी है। यह भी कहा जाता है कि कलयुग काल के अंत में जब कुकर्म की अधिकता होगी, तब उस कुकर्म पर सत्कर्म को स्थापित कर, अधर्म पर धर्म की स्थापना के उपरांत ही  सतयुग काल आगमन होगा। इसी प्रकार इस धरती पर इंसानियत, सत्कर्म व् उज्ज्वलता का वास होता है तथा पूरी सृष्टि ईश्वर की कृपा से प्रकाशित होकर महकने लगती हैं। इसलिए हर वर्ष समस्त जगत के देवी-देवता, ऋषि-मुनि गण, धरा पर अनेक मानव गण आदि इस आस में ईश्वर की प्रतीक्षा करते हैं कि वे इस दिन अपने अंतिम अवतार कल्कि रूप में अवतरित होंगे। इसीलिए सम्पूर्ण जगत में इस दिन को कल्कि जयंती के रूप में माया जाता है।

इस धरा पर भगवन विष्णु अवतार में अपने नाम कल्कि के अर्थ स्वरूप  ही कार्य करेंगे।  ''कल्कि'' शब्द की उत्त्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द "कालका" से हुई है। संस्कृत शब्द कल्कि का अर्थ उस महान, कृपानिधान, सर्वशक्तिशाली, पालन हार, कल्याणकरता उज्जवल व् विशाल व्यक्तित्व से है जो इस ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार की बुराईयों, अन्याय, कुकर्म आदि गन्दगी को समाप्त करता है एवं पुनः इस धरा पर धर्म की स्थापना करता है। इसलिए यह मान्यता है कि कुकर्मों के घड़े में जब जब मनुष के द्वारा किये गए बुरे व् दुर्लभ कृत्यों से उस घड़े की स्तिथि दयनीय हो जायेगी, तत्पश्चात स्वयं चक्रधारी भगवन विष्णु इस धरा को सन्मार्ग पर चलाने हेतु मार्गदर्शन देने अवतरित होंगे। इसी प्रकार इस धरा पर जन-जन में हर्षोउल्लास, आनंद व् उमंग की लहर से सृष्टि पुनः महक उठेगी।

पौराणिक कथाओं के आधारभूत भगवान् विष्णु जी  का यह अवतार कलयुग के अंत व् सतयुग काल के आरम्भ में होगा। यह कहा जाता है कि इस अवतार में वे जगत की समस्त विद्याओं के ज्ञाता होंगे। इस अवतार में भगवान् कल्कि उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद जिले में संभल नमक नगर में अवतरित होंगे। अपने मूल नाम विष्णु के समान एक सेवक विष्णुयशा ब्राह्मण व् उसके परिवार को यह सौभाग्य प्राप्त होगा कि उनके घर में स्वयं ईश्वर जन्म लेंगे। यह कहा जाता है की भगवन इस धरा पर एक श्वेत अश्व पर सवार होकर इस धरा से दुष्टों व् कुकर्मों का अंत करेंगे।

इन त्योहारों और व्रतों को भी जानें :

  1. गोवर्धन पूजा
  2. बसंत पंचमी
  3. दिवाली
  4. करवा चौथ

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में यह निहित है कि जब सूर्य, गुरु व् चन्द्रमा एक साथ एक ही नक्षत्र पुष्य में शोभायमान होंगे, तब इस धरा पर भगवन विष्णु के 10 वे व अंतिम अवतार भगवन कल्कि का अवतरण होगा।

जिस प्रकार त्रेता युग में भगवान राम के रूप में, द्वापर युग में भगवान् कृष्ण के रूप में भगवान् विष्णु ने इस धरा पर अवतरित होकर अधर्म सहित एक युग का अंत कर दूसरे युग की स्थापना की, इसी प्रकार कलियुग में कल्कि रूप में अवतरित होकर भगवान् विष्णु नन्द वंशज के रूप में आरम्भ हुए कलियुग में  कुकर्म् का अंत कर कर, एक नवीन युग सतयुग की स्थापना करेंगे।

इस तरह करें कल्कि जयंती पर पूजन

1) शुभ अवसर पर जातक को  प्रातः कल उठकर सर्वप्रथम अपने ईष्ट देव का स्मरण करना चाहिए।

2) सुबह उठकर अपने घर को पूर्णतः स्वच्छ कर, पूजा घर में पवित्र  गंगा जल का अभिसिंचन करें।

3) अपने शरीर, मन आदि को स्वच्छ कर, ईश्वर के समक्ष बैठकर  व्रत का अनुसरण करने हेतु संकल्प लेना चाहिए।

4) पूजा स्थल को स्वच्छ कर जातक को नए पीले व् लाल कपडे से पवित्र स्थल को सुशोभित करना चाहिए।

5) भगवान कल्कि रूप भगवान विष्णु जी की प्रतिमा व् चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करना चाहिए।

6) जातक को भगवान कल्कि को स्थापित कर सर्वप्रथम उन्हें गंगा जल से स्नान कराना चाहिए।  

7) तत्पश्चात उन्हें पीले व लाल वस्त्र को पहना कर एक चौकी पर स्थापित करें।

8) इसके उपरांत उन्हें अर्घ्य अर्पित कर, पूजा को विधिवत रूप से आरम्भ करना चाहिए।

9) अक्षत, पुष्प , चन्दन, फल, हल्दी, तुलसी, धुप आदि सामग्री को एकत्र कर विधि पूर्वक अर्पित करना चाहिए।

10) अंततः  भगवान् कल्कि जी की आरती का अनुसरण कर पूजा को संपन्न करना चाहिए।

11) पूजन के पश्चात ईश्वर से यह कामना करनी चाहिए कि वह हमें बुध्दि विवेक व आरोग्यता प्रदान करें।

12) इसी प्रकार सायं काल भगवान् विष्णु की कथा का अनुसरण अवश्य करना चाहिए।

कल्कि जयंती की तिथि एवं शुभ मुहूर्त

जुलाई 25, 2020 शनिवार के दिन कल्कि जयंती का आगमन होगा। इस सृष्टि के रचयिता, पालन करता, मंगलकर्ता भगवान् विष्णु इस धरा पर दुष्टों के संहार हेतु भगवान् कल्कि के रूप में कलियुग में अवतरित होंगे।

शुभ तिथि आरम्भ:- जुलाई 25, 2020, दिन शनिवार रात्रिकाल 12:02 pm
शुभ तिथि समाप्त:- जुलाई 26, 2020, दिन रविवार प्रातः काल - 09:32 am  

शुभ मुहूर्त आरम्भ:-  सायं काल - 04:33 pm
शुभ मुहूर्त सामप्त:- सायं काल - 07:16 pm
शुभ मुहूर्त की कुल अवधी:- 02 घंटे 44 मिनट (सायंकाल)