हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पूरे देश भर में गोवर्धन पूजन का त्योहार मनाया जाता है। कई जगह इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन गौ माता यानी गाय की पूजा के साथ-साथ पर्वतराज गोवर्धन की भी पूजा की जाती है, इसलिए इसे गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व प्रकृति के साथ हमारे अंतर्मन के बीच संबंध स्थापित करता है।
गाय की पवित्रता, पर्वत का प्रहरी के समान हमारी रक्षा हेतु डटे रहना, खेतों में लहलहाते फसलों का हमारे प्रति समर्पण, आसमान में गरजते बादलों का जन कल्याण हेतु स्नेह वर्षा करना, इन सभी के महत्वता एवं समर्पण को एक सूत्र में पिरोता हुआ, गोवर्धन पर्व हमें भक्ति के गूढ़ तत्वों से जोड़ने का कार्य करता है। इसके पीछे अत्यंत ही रोचक कथा प्रचलित है। आइए जानते हैं-
बात द्वापर युग की है जब भूलोक पर स्वयं जगतपति भगवान श्री हरि विष्णु का कृष्ण रूप में गोकुल में अवतरण हुआ था। श्री कृष्ण के पिता नंद गांव के संचालक थे। खेत में लहराती फसल की पैदावार होने पर नंद गांव में एक विधा प्रचलित थी जिसमें लहराती फसल के लिए एवं गांव की सुख-समृद्धि के लिए छप्पन भोग, यज्ञ आदि कर देवराज इंद्र अर्थात वर्षा के देवता का आभार व्यक्त किया जाता था। इसके माध्यम से प्रकृति से प्राप्त सभी सुखों, किसानों की मेहनत, धरा की उपजाऊ क्षमता आदि सबका का श्रेय केवल देवराज इंद्र को दिया जाता था जिससे देवराज इंद्र प्रसन्नचित एवं गर्व के मारे घमंड के आगोश में रहा करते थे। वहीं जब भगवान श्री कृष्ण का नंद के आंगन में जन्म हुआ, उसके पश्चात भी यही परंपरा निरंतर थी।
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श्री कृष्ण जब इंद्रदेव के घमंड को भांप गए तो उन्होंने इसे दूर करने की योजना बनाई जिसके लिए बाद श्री कृष्ण ने अपने पिता तथा गांव वालों को प्रकृति के सभी तत्वों के सुखों के लिए केवल इंद्र का आभार व्यक्त करने एवं श्रेय देने से रोका एवं इंद्र हेतु यज्ञ, भोग आदि को रुकवा दिया। साथ ही गौ पूजन, पृथ्वी पूजन, गोवर्धन पर्वत एवं प्रकृति के अन्य सभी तत्व के पूजन हेतु प्रेरित किया जिससे देवराज इंद्र कुपित हो गए एवं उन्होंने अपनी मूसलाधार वर्षा से नंद गांव को तबाह करने की ठानी।
घनघोर वर्षा एवं बादल की गर्जना से नंदगांव की स्थिति दयनीय होती जा रही थी। तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथ की सबसे आखरी यानी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा कर संपूर्ण गांव की मूलाधार बारिश एवं बिजली आदि के प्रकोप से रक्षा की। तत्पश्चात इस दिन से यह पर्व गोवर्धन पूजन के नाम से जाना जाने लगा और तब से यह पर्व हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण देश भर में मनाया जाता है। इस पर्व की नंद गांव में आज भी अलग ही छटा देखने को मिलती है।
ज्योतिषीय गणनानुसार इस वर्ष 2020 में 15 नवंबर की तिथि दिन रविवार को पूजा का निर्धारण किया गया है। आइये जानते है आज पूजन हेतु शुभ मुहूर्त-
सायं काल गोवर्धन पूजा हेतु शुभ मुहूर्त: दोपहर 3 बजकर 17 मिनट से सायं 5 बजकर 24 मिनट तक।
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: प्रातः 10:36 बजे से (15 नवंबर 2020)
प्रतिपदा तिथि का समापन: प्रातः 07:05 बजे (16 नवंबर 2020)
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