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देवउठनी एकादशी

Dev Uthani Ekadashi

हिंदू धर्म में अनेकों प्रकार के व्रत-त्योहार आदि निहित है जिसमें एकादशी व्रत को बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण एवं लाभकारी माना जाता है। एकादशी व्रत के संबंध में गीता में वर्णन करते हुए इसे मोक्षदायिनी बताया गया है। जो भी जातक जीवन में एकादशी व्रत का पालन करता है और उसके नियमों व अनुशासन को अपने जीवन में शिरोधार्य करता है, उसे बिना किसी व्यवधान के मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिंदू पंचांग के मुताबिक पूरे वर्ष भर में 24 एकादशी का पर्व होते है जिसमें से मलमास लगने वाले वर्ष में 26 एकादशी व्रत मनाए जाते हैं। एकादशी के व्रतों में से कुछ व्रतों को बहुत ही अधिक महत्वकारी और विशेष माना जाता है।

इस वर्ष 2020 में मलमास पड़ने के कारण 26 एकादशी पूर्ण हो रहे है जिसमें से महत्वपूर्ण एकादशी में से एक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भी माना जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक यह एकादशी इस वर्ष के 25 नवंबर बुधवार की तिथि को मनाया जाना है। देवउठनी एकादशी को हरि प्रबोधिनी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

इस एकादशी से जुड़ी हुई मान्यता यह है कि भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी के बीच क्षीर सागर में शयन कर रहे होते हैं। तत्पश्चात वे भादो शुक्ल एकादशी को करवट बदलते हैं। मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु कार्तिक शुक्ल की एकादशी की तिथि को अपने निद्रा से जागते हैं, यही कारण है कि सभी शास्त्रों व ग्रंथों में इस एकादशी को अमोघ पुण्य फलदाई व्रत बताया गया है।

हर वर्ष देवउठनी एकादशी दिवाली के बाद ही मनाई जाती है जिसमें भगवान श्री हरि विष्णु अपनी निद्रा से जागृत होते हैं। इस वजह से इस एकादशी का नाम देवोत्थान एकादशी भी रखा गया है।

भगवान श्री हरि विष्णु के चतुर्मास अर्थात 4 माह के दौरान निद्रा में होने की वजह से ही मांगलिक कार्यों को भी 4 माह तक विराम दे दिया जाता है। वहीं देवोत्थान एकादशी के पश्चात भगवान श्री हरि विष्णु के जागृत हो जाने से पुनः सभी शुभ व मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, जनेऊ संस्कार, मुंडन आदि होना पुनः आरंभ हो जाता है। इसके अतिरिक्त देवोत्थान एकादशी की तिथि को भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह का धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है, इस वजह से भी इस एकादशी व्रत की मान्यता सर्वाधिक होती है। तो आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण एकादशी व्रत हेतु शुभ मुहूर्त तिथि आदि।

देवउठनी एकादशी हेतु शुभ मुहूर्त व तिथि

इस वर्ष मलमास पड़ने की वजह से हर व्रत त्यौहार आदि एक माह की देरी से आए हैं, इसी वजह से देवोत्थान एकादशी भी इस वर्ष अन्य वर्षो की तुलना में 1 माह की देरी से अर्थात 25 नवंबर को पड़ रहा है। इस वर्ष के 25 नवंबर 2020 बुधवार की तिथि को देवोत्थान एकादशी मनाया जाना है। हिंदू पंचांग के मुताबिक देवोत्थान एकादशी 25 नवंबर की तिथि को प्रातः कालीन वेला में 2 बजकर 42 मिनट पर अर्थात 24 नवंबर की अर्धरात्रि के पश्चात 2 बजकर 44 मिनट पर एकादशी तिथि का आरंभ हो जाएगा जो अगले दिन अर्थात 25 नवंबर की तिथि को पूरा दिन बना रहेगा और 26 नवंबर के प्रातः 5 बजकर 08 मिनट पर समाप्त हो जाएगा जिस कारण से देवोत्थान एकादशी का पारण 26 नवंबर की तिथि को किया जाएगा और व्रत 25 नवंबर को धारण किया जाना है।

देवोत्थान एकादशी पर भूलकर भी ना करें यह क्रियाकलाप

  • देवोत्थान एकादशी के दिन किसी भी पेड़-पौधे की पत्तियों को भूलकर भी ना तोड़े।
  • एकादशी वाले दिन बाल व नाखून नहीं कटवाने चाहिए।
  • इस दिन लोगों को संयम व शालीनता बरतने का प्रयत्न करना चाहिए, स्वयं को कामुकता से दूर रखें।
  • अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें और सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें।
  • भूल कर भी किसी से ऐसी बातें ना करें जो नकारात्मकता फैलाने का कार्य करती हो।
  • भारतीय हिंदू धर्म में शास्त्रों के मुताबिक एकादशी की तिथि पर चावल का सेवन नहीं किया जाता है
  • एकादशी के पर्व पर किसी अन्य के द्वारा दिए गए भोजन का भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • इस दिन अपने मन में सभी के प्रति सकारात्मक विचार रखें, किसी के बारे में भी अनर्गल बातें अपने दिमाग में ना आने दे।
  • अपने मन में ईर्ष्या द्वेष जलन आदि की भावना को पनपने ना दें।
  • इस दिन जातकों को गोभी, पालक, शलगम आदि का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
  • देव उत्थान एकादशी का व्रत धारण करने वाले व्यक्तियों को व्रत वाले दिन बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए।

देवउठनी एकादशी व्रत पर अवश्य ही करें ये क्रियाकलाप

  • देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा आराधना करें।
  • उन्हें पीले वस्त्र पहनाए और उनके समक्ष संध्या कालीन बेला में एक दीपक अवश्य ही जलाएं ।
  • इस दिन आप भगवान श्री हरि विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा आराधना करें
  • देवोत्थान एकादशी के व्रत वाले दिन जातकों को अपने घर के तुलसी के पेड़ के समीप एक घी का दीपक संध्या कालीन बेला में अवश्य ही जलाना चाहिए।
  • इस दिन आप भगवान सूर्य उदय से पूर्व ही जगने का प्रयास करें, साथ ही रात्रि में बिस्तर पर सोने की जगह जमीन पर सोएं।
  • इस दिन भगवान विष्णु के नाम का पाठ कीर्तन आदि करें।
  • देवोत्थान एकादशी के दिन अगर संभव हो तो जातकों को निर्जला व्रत धारण करना चाहिए।
  • इस दिन गाय को भोजन कराएं साथ ही गरीबों तथा जरूरतमंदों में भी अन्य वस्त्र धन आदि का दान करें।