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भाद्रपद अमावस्या (Bhado Amavasya)

Bhadrapada Amavasya date, significance and time

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को भाद्रपद की अमावस्या कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भाद्र मास की अमावस्या तिथि मुरली मनोहर बंसी बजैया कृष्ण जी को समर्पित मानी गयी है। हिंदु धर्म में अमावस्या के दिन दान-पुण्य, पितरों के आत्मा की शांति व काल सर्प दोष आदि के निवारण हेतु महत्वपूर्ण माना गया है।

जन्माष्टमी के पावन पर्व के कारण यह सर्वविदित है कि भाद्रपद मास श्री कृष्ण के जन्म, भक्ति, पूजा-अर्चना का माह होता है। यही कारण है कि भाद्रपद के अमावस्या की तिथि का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन होने वाले धार्मिक कार्यों के लिए कुश (एक विशेष प्रकार की घास) एकत्रित की जाता है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, दोषों के निवारण व श्राद्ध कर्म आदि में प्रयोग की जाने वाली घास यदि भाद्रपद अमावस्या के दिन एकत्रित की जाए, तो उससे मिलने वाला पुण्य अत्यंत गुणकारी एवं फलदायी होगा। इसीलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं। जब भाद्रपद अमावस्या के दिन सोमवार पड़ती हो, और साथ में सूर्यग्रहण भी लगता हो तो इस अमावस्या का महत्व कोई गुना ज्यादा ओर बढ़ जाता है।

  • कुछ लोग इसे आम बोलचाल की भाषा में भादो अमावस्या भी कहते हैं।
  • भाद्रपद अमावस्या को कहीं-कहीं पौथोरा/पिठौरी अमावस्या भी कहा जाता है।
  • दक्षिण भारत में भाद्रपद अमावस्या को पोलार्ड अमावस्या भी कहा जाता है।

भादो तिथि और समय

ऐसे में इस महत्वपूर्ण तिथि के संबंध यह जानना रोचक है कि इस वर्ष 2020 में कब है भाद्रपद की अमावस्या, किस तिथि व काल मे होगा भाद्रपद अमावस्या का आरंभ व  समापन।

भाद्रपद अमावस्या आरंभ:- 18 अगस्त 2020, प्रातः 10:41:11 से
भाद्रपद अमावस्या समाप्त:- 19 अगस्त 2020, प्रातः 08:12:40 पर

भाद्रपद अमावस्या के महत्व, व्रत और धार्मिक कार्य

भाद्रपद अमावस्या की तिथि का विशेष महत्व स्नान, दान और तर्पण के लिए होता है। शास्त्रानुसार ऐसा करने से हमारे जीवन में धन-धान्यों, सुख-संपत्ति, वैभव,यश और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की मंगलकामना और उज्जवल भविष्य के लिए व्रत रखती है। भाद्रपद अमावस्या को हिंदू मान्यताओं के अनुसार अत्यंत मंगलकारी, शुभदायक और लाभदायक माना जाता है। भाद्रपद अमावस्या में तर्पण के महत्व के सम्बंध में ऐसा कहा जाता है कि भाद्रपद अमावस्या की तिथि को पितरों को प्रसन्न करने से जातकों के जीवन में आजीवन सुख, शांति और समृद्धि बरकरार रहती है।

पितरों की शांति के लिए उपाय

भाद्रपद अमावस्या के दिन सुबह उठकर गंगा स्नान करें। यदि गंगा किनारे जाना संभव ना हो, तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिला लें। स्नान के बाद पुरुष सफेद वस्त्र धारण कर, उचित मुहूर्त में पूरे विधि विधान से पितरों का तर्पण करें। अपने पूर्वजों के नाम से पके हुए भोजन जैसे- चावल, दाल, सब्जी और कुछ पैसों का दान करें। ऐसा करने से आपके जीवन में खुशियों का आगमन होगा।

पिठौरी अमावस्या

पितरों की शांति के अलावा इस दिन महिलाएं अपने पुत्र/पुत्रियों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य व उज्जवल भविष्य के लिए व्रत रखती है। इस दिन पुजा-अर्चना करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। साथ की जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती है, उन महिलाओं के लिए भी भाद्रपद अमावस्या के दिन संतान प्राप्ति के लिए  माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना करना मंगलकारी सिद्ध होता है।

संतान हेतु पूजन कर्म

पूजा करने के लिए भद्र अमावस्या के दिन 64 देवियों की छोटी-छोटी प्रतिमा बनाएं और उन्हें सुंदर नए वस्त्र धारण कराएं। साथ ही पूजा के स्थान को सुगंधित एवं ताज़े पुष्पों से सजा ले। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद अमावस्या के दिन ही भगवान इंद्र की पत्नी ने  माता पार्वती को कथा सुनाई थी। पूजा-अर्चना के समय माँ दुर्गा को सुहाग की सभी वस्तुएं जैसे- साड़ी, सिंदूर, नई चूड़ी, बिंदी आदि चढ़ाएं। ऐसा करने से आपके बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा व वे दीर्घायु होंगे।

पोलाला अमावस्या

दक्षिण भारत में पोलाला अमावस्या के दिन देवी पोलेरम्मा की पूजा होती है। माता पार्वती का ही एक और रुप पोलेरम्मा को माना जाता है। इनकी पुजा-अर्चना करने से जातक के जीवन में सुख-सम्रद्धि आती है।

भाद्रपद अमावस्या के उपाय

  • प्रातः काल उठकर किसी नदी जलाशय या कुंड में स्नान करना शुभ व फलदायक माना जाता है।
  • नदी के तट पर पितरों की आत्मा शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को अपनी सामर्थ्य अनुसार अनाज दान करें और कुछ पैसे भी।
  • भाद्रपद अमावस्या के दिन काल सर्प दोष निवारण के लिए पूजा अर्चना करना उचित मानी जाती है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि भाद्रपद महीना भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना का होता है और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने सबसे विषैले सर्प कालिया नाग का दमन किया था। अतः भाद्रपद अमावस्या के दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए आराधना करना उचित माना जाता है।
  • भाद्रपद अमावस्या के दिन शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों का दीपक जलाना शुभ माना जाता हैम साथ ही अपने पितरों का स्मरण करना फलदाई माना जाता है। दिया जलाने के बाद आप पीपल के वृक्ष के नीचे 7 परिक्रमा लगाएं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता लक्ष्मी जी और उसकी छोटी बहन दरिद्रा विष्णु के पास गई और प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभु हम कहां रहे? इस पर भगवान विष्णु ने दरिद्र और माता लक्ष्मी को पीपल के वृक्ष पर रहने की अनुमति प्रदान की। तत्पश्चात माता लक्ष्मी और दरिद्रा पीपल के वृक्ष पर निवास करने लगे। साथ ही भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया कि जो भी जातक पीपल के वृक्ष की पूजा-अर्चना करेगा, उससे जातक पर माता लक्ष्मी की असीम कृपा बरसेगी और उनके जीवन से सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। साथ ही पीपल के वृक्ष पर त्रिदेव का वास भी माना जाता है। साथ ही तुलसीदास जी ने मन की चंचलता की तुलना पीपल के पत्ते के हिलने की गति से की है।
  • अमावस्या को शनिदेव का भी दिन माना जाता है, इसीलिए भाद्रपद अमावस्या को शनिदेव की पूजा अर्चना अवश्य करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि शनि के कोप/क्रोध से ही हमारे घर का ऐश्वर्य नष्ट होता है। अत: इस दिन हमें शनिदेव की पुजा अवश्य करनी चाहिए ताकि हमारे जीवन से शनि ग्रह के जो भी बुरे प्रभाव है उससे मुक्ति मिल जाएं। शनिदेव की पुजा हमेशा पश्चिम की ओर मुख करके शांत मन से करनी चाहिए। पुजा करते समय जातक को काले या नीले रंग का वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। शनिदेव की पुजा हमेशा सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए।