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अजा एकादशी

Aja Ekadashi Vrat

भौतिकवादी युग में जीवन की पराकाष्ठा को पार करने की होड़ में मानव अपने व्यावहारिक जीवन को भूल बाह्य रूप से प्रबल बनने का सतत प्रयास कर रहा है जिस कारण वह नित अपने निजी स्वार्थ के लिए न जाने  कितने गलत कृत्यों को अंजाम देता है। वह अपनी हर अपेक्षा को पूर्ण करने हेतु कुकर्म का साथ देता है, ना ना प्रकार के कुमार्ग अपनाकर, अपने पाप के घड़े को भरने का सफलतम प्रयास कर रहा है।

वर्तमान परिदृश्य को स्मरण कर पुरातन काल में ही हमारे ऋषि मुनियों ने अपने पापों से भरे घड़े को शून्य की स्तिथि में पुनः लाने हेतु एकादशी व्रत का अनुसरण करने का सुझाव दिया। इसी प्रकार भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसको अजा एकादशी के नाम से जानते हैं, इस दिन भगवान विष्णु सहित माँ लक्ष्मी की आराधना करने से साधक को अपने समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त होती है व सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है,  साथ ही घर में सदा लक्ष्मी जी का वास होता है व कभी भी धन संपदा संबंधी समस्याएं साधक के घर जन्म नहीं लेती है।

अजा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत नामक ग्रंथ में कुंती पुत्र गांडीव धारी अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से ये प्रश्न करते है  कि - हे माधव ! मैने अन्य कई एकादशी के बारे में सुना है किन्तु मुझे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक समझाइए।

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अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए माधव कहते हैं कि - हे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन ! भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जानते है। जो भी साधक इस व्रत का विधिपूर्वक अनुसरण करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि इस व्रत के अनुसरण के समान अन्य कोई भी व्रत से इतनी अपार फल की प्राप्ति नहीं होती ।

अयोध्या नगर में भगवान राम के वंशज सत्यवादी, ईमानदार, दानवीर व पराक्रमी राजा हरिश्चंद्र रहा करते थे जो किसी भी परिस्थिति में अपनी सत्यता व ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ते थे।

एक बार स्वर्गलोक में देवताओं ने राजा हरिश्चंद्र की ईमानदारी व सत्यवादिता की परीक्षा हेतु एक योजना का निर्माण किया। एक दिन राजा ने सोते समय स्वप्न में अपना सम्पूर्ण राजपाठ महर्षि विश्वामित्र को दान में दे दिया। अगले ही दिन उनके द्वार पर महर्षि विश्वामित्र पधारे और राजा हरिश्चंद्र से कहते हैं कि एक रात पहले तुमने मुझे अपना सम्पूर्ण राजपाठ दान दे दिया था, उनकी बात सुनकर राजा ने निसंकोच सत्य व ईमानदारी का साथ देते हुए अपना सम्पूर्ण राज पाठ उन्हें दान दे दिया । दक्षिण देने हेतु राजा हरिश्चंद्र को पूर्व जन्म के कर्मफल के कारण पत्नी, बेटे सहित स्वयं को बेचना पड़ा। राजा हरिश्चंद्र को एक डोम ने खरीद लिया जो शमशान में लोगों के दाह संस्कार करने का कार्य करता है। राजा स्वयं चांडाल का दास बन गया। वह चांडाल के यहां कफन लेने का कार्य किया करता था, किन्तु राजा ने इस स्थिति में अपने गुणों का साथ नहीं छोड़ा और अपने जीवन में इनका रसपान और भी गहरा कर लिया।

इसी प्रकार कई वर्ष बीतने के बाद उसे अपने कृत्यों का ज्ञात लगा कि ये वह किस प्रकार कार्य कर रहा है। वह बहुत ही ज्यादा परेशान हो गया था। वो अपने कृत्यों से मुक्त होने के लिए मार्ग ढूंढने लगा था। वह हमेशा यही सोच में जीता कि मै कैसे इतना बड़ा पाप कैसे कर सकता हूं? कैसे ये नीच कार्य कर रहा हूं? ईश्वर की महिमा अनुसार एक दिन गौतम ऋषि उसके पास पहुंचे। उनको देख राजा हरिश्चंद्र ने उन्हें प्रणाम कर अपनी पूर्ण व्यथा विस्तार पूर्वक बताई। उनकी पूर्ण व्यथा को सुनकर गौतम ऋषि भी बहुत दुखी हुए। तब उन्होंने राजा हरिश्चंद्र को इस मुसीबत से निकलने का एक सुझाव उन्हें हृदय पूर्वक सुझाया। उन्होंने कहा कि भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष एकादशी जिसको हम अजा एकादशी के नाम से जानते हैं, उस एकादशी के अनुसरण मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने उस एकादशी के व्रत का अनुसरण किया, इससे राजा के सभी पापों की मुक्ति हो गई और वह पुनः अपने राज पाठ को प्राप्त कर अपने महल में हँसी-खुशी रहने लगा। एक बार फिर से उसके जीवन के अनमोल रत्न उसकी पत्नी व संतान जीवित हो गए। इसी प्रकार उसके जीवन के स्वर्णिम पलों का आगमन हो गया। उन्होंने अपनी सत्यवदिता व ईमानदारी की बेड़ियां पहन फिर से नए साम्राज्य का निर्माण कर अपनी मान, प्रतिष्ठा को स्थापित किया। अंततः मृत्यु का भोज कर, अपने कर्मों के फलस्वरूप में स्वर्ग लोक में शयन किया ।

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अजा एकादशी व्रत का महत्व

हिन्दू धर्म के महगृंथों में सर्व लिखित है कि जो भी साधक इस व्रत का विधिपूर्वक अनुसरण करता है व भगवान विष्णु सहित माँ लक्ष्मी जी की सहृदय आराधना करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के उपरांत साधक को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत का अनुसरण करने से जो फल की प्राप्ति होती है, उसके समान अन्य कितने ही यज्ञ के माध्यम से फल की प्राप्ति नहीं होती।

अजा एकादशी की पूजन विधि

  • इस दिन साधक को प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम अपने इष्ट देव का आवाहन कर अपने दिन का आरंभ करना चाहिए।
  • प्रातः काल उठकर अपने घर को स्वच्छ करें। अगर साधक का संबंध गांव से है, तो उसे पूरी घर को गाय के गोबर से लीपना चाहिए।
  • पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को कुंभ सहित स्थापित करें ।
  • कुंभ को लाल व पीले वस्त्र से सु सज्जित कर, स्थापना करने के बाद उसका पूजन करें।
  • उसके उपरांत पूजा स्थल पर स्थापित कुंभ में विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित करें ।
  • विधि पूर्वक विष्णु जी का पूजन कर उनके समक्ष व्रत रखने का संकल्प करें ।
  • अक्षत, पुष्प की प्रतिमा पर वर्ष कर ईश्वर का आवाहन करें।
  • इस व्रत के पूर्व साधक को हल्के भोजन का ही आहार ग्रहण करना चाहिए। खाने में दाल, शहद आदि का सेवन निषेद है। मान्यता है कि इस दिन इनका सेवन करना अशुभ होता है।

अजा एकादशी व्रत तिथि एवं शुभ मुहूर्त

हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी की शुभ तिथि का आगमन होता है। इस वर्ष अजा एकादशी के व्रत की तिथि शनिवार 15 अगस्त को है।

अजा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त आरंभ:- शुक्रवार 14 अगस्त 2020, दोपहर 02:05 pm
अजा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त समाप्त:- शनिवार 15 अगस्त 2020, दोपहर 02:22 pm