हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार के पर्व त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें श्री कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी संपूर्ण हिंदुस्तान भर में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जन्माष्टमी का महत्व ना सिर्फ हिंदुस्तान में अपितु, अन्य देशों में भी इसे उतने ही उल्लास व उत्कर्ष के साथ मनाया जाता है। हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है जिसमें नक्षत्र की चाल रोहिणी नक्षत्र में होती है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र यानी कि 12 अगस्त को मनाया जाने वाला है। वहीं कुछ स्थान पर जन्माष्टमी का पर्व 11 अगस्त को भी मनाया जाने वाला है। क्योंकि इस बार 11 अगस्त की तिथि को अष्टमी का आरंभ हो रहा है। किंतु नक्षत्रों की स्थिति रोहिणी की बजाय कृतिका की होती है, अर्थात 11 अगस्त की तिथि को अष्टमी तिथि कृतिका नक्षत्र में चल रहा होता है जिस कारण से इसे पूर्णरूपेण जन्माष्टमी नहीं माना जाता है। हालांकि कुछ स्थानों पर जैसे कि मथुरा वृंदावन आदि में 11 अगस्त तथा 12 अगस्त दोनों तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी के पर्व पर दही हांडी की भी प्रथा है। दही हांडी का कार्यक्रम अत्यंत ही मनोरम व मनमोहक होता है। देश भर में इसके लिए महीनों पूर्व से तैयारियों का दौर शुरू हो जाता है। कई स्थानों पर तो इस दहीहंडी प्रतियोगिता के लिए इनाम आदि भी घोषित किए जाते हैं। अतः जन्माष्टमी के त्योहार पर दही हांडी उत्सव का भी जोश व उत्साह चरम पर होता है। भगवान श्री कृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है, उनका पंचामृत से स्नान कर पूजन किया जाता है एवं अनेकानेक प्रकार के मेवा-मिष्ठान, फल-फूल आदि उन्हें समर्पित किए जाते हैं।
आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने हेतु कुछ ऐसे विशेष वस्तुओं के संबंध में जानकारी देंगे जिन्हें आप पूजन की क्रिया के दौरान भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करें। ऐसा करने से आप से भगवान श्री कृष्ण अति शीघ्र प्रसन्न हो जाएंगे। इस जन्माष्टमी के त्योहार पर आप श्री कृष्ण को उनकी प्रिय वस्तुओं को अर्पित करें जो कि आपके लिए मन को हर्षाने योग्य होगा, साथ ही भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने में भी मददगार साबित होगा। इससे आपके ऊपर जन्माष्टमी के त्योहार पर भगवान श्री कृष्ण की संपूर्ण कृपा दृष्टि बरसेगी।
तो आइए जानते हैं क्या है वे कुछ खास तथ्य जो भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत ही प्रिय है।
मोर पंख
श्री कृष्ण का लालन-पालन वृंदावन में हुआ। वृंदावन की नगरी प्रकृति के सराबोर से फलीभूत है। यमुना का तट और मनोरम पक्षियों का वहां सदैव प्रहर रहता था। भगवान श्री कृष्ण को अपनी नगरी से अत्यंत ही प्रेम था, वे वहां के पशु पक्षियों, ग्वाल बालाओ, वन्यजीवों के साथ खूब क्रीड़ा किया करते थे जिसमें से उन्हें पक्षियों में मोर अत्यंत ही प्रिय था। श्री कृष्णा अपने मस्तक पर मुकुट में मोर पंख को धारण किया करते थे। अतः आप भी भगवान श्री कृष्ण को इस जन्माष्टमी के त्योहार पर उनके श्रृंगार में मोर पंख अवश्य ही अर्पित करें, उनके मुकुट को मोर पंख से सजाएं जो कि उनके श्रृंगार की शोभा को बढ़ाएगा, साथ ही भगवान श्री कृष्ण को भी प्रफुल्लित कर देगा।
परिजात के पुष्प
यह सर्वत्र विज्ञात है कि भगवान श्री कृष्ण श्री हरि विष्णु के अवतार स्वरूप थे और ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री हरि विष्णु को परिजात के पुष्प अत्यंत ही प्रिय है। ना सिर्फ भगवान श्री हरि विष्णु को, बल्कि माता लक्ष्मी को भी परिजात के पुष्प से बेहद प्रेम है। अतः इस जन्माष्टमी के त्योहार पर आप अपनी पूजन में परिजात के पुष्प को शामिल करें एवं पालन पोषण करता श्री हरि विष्णु के कृपा पात्र के साथ-साथ माता लक्ष्मी की धन वर्षा में भी भागीदार बने।
बांसुरी
कृष्ण कन्हैया वृंदावन में यमुना किनारे रोज बंसी बजाया करते थे। उनकी बांसुरी की धुन सुनने के लिए पूरी मथुरा नगरी वृंदावन के सभी लोग, ग्वाल, बाल शाखाएं, गोपियां, पशु, पक्षी, सभी उनके इर्द-गिर्द आकर उस बांसुरी की मधुर धुन में लिफ्त हो जाते थे। आप जहां भी भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा व तस्वीर देखते होंगे, उसमें आप कान्हा के साथ-साथ बांसुरी को अवश्य ही देखते होंगे।
धर्मशास्त्र भी ऐसा मानता है कि श्री कृष्ण की प्रतिमा व प्रतीक चिन्ह बिना बासूरी के अधूरी होती है। अतः आप जन्माष्टमी के त्यौहार पर भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी अवश्य ही अर्पित करें। चेष्टा करें कि आप भगवान श्री कृष्ण को चांदी की बांसुरी समर्पित करें। इससे आपके जीवन में सदैव सुख शांति, समृद्धि व शीतलता बरकरार रहेगी। जब पूजन की क्रिया संपन्न हो जाए तो आप श्री कृष्ण को अर्पित की बांसुरी को अपने तिजोरी अथवा पर्श आदि में रख ले। इससे आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ रहेगी।
राखी
धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अष्टमी की तिथि तक मनाया जाता है, अर्थात रक्षाबंधन से लेकर आप कृष्ण जन्माष्टमी तक अपने भाइयों व स्वजनों को राखी बांध सकते हैं। अतः आप जन्माष्टमी के पर्व पर भगवान श्री कृष्ण और उनके भ्राता बलराम जी को भी राखी अवश्य ही बांधे। इससे वे सदैव आपकी रक्षा हेतु तत्पर रहेंगे एवं आपके जीवन में उनकी कृपा दृष्टि बनी रहेगी।
दुग्ध और शंख
जन्माष्टमी में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का विशेष पूजन किया जाता है। आप भगवान श्री कृष्ण का दुग्ध अभिषेक अवश्य ही करें। भगवान श्री कृष्ण की बाल प्रतिमा को शंख में दूध डालकर नहलाएं, कान्हा जी का अभिषेक करें। वैसे भी भगवान् श्री हरी विष्णु जिनके अवतार कृष्ण जी हैं, उन्हें शंख अत्यंत ही प्रिय है। श्री हरि विष्णु अपने एक हाथ में शंख को भी धारण करते हैं। जन्माष्टमी के पर्व पर बाल गोपाल का विशेष पूजन व दुग्ध अभिषेक करने से संतान संबंधित समस्याओं का भी निदान होता है।
ये भी है फायदेमंद: श्री कृष्ण जी को ग्वाला कहा जाता है। उन्हें अपनी गायों से अत्यंत ही प्रेम व अनुराग है। वह अपनी गायों व उनके बछड़ों को भी सखा समान समझते थे। उनकी लीलाओं के गुण आज भी चहुँलोक गाता है। बाल गोपाल की इन्हीं अनेकों लीलाओं में से किसी एक मुद्रा में आप कृष्ण जी की प्रतिमा व मूर्ति को अपने घर में अथवा कार्य क्षेत्र में जन्माष्टमी के अवसर पर अवश्य ही स्थापित करें। इससे आपके आर्थिक समस्याएं समाप्त होगी, साथ ही संतान संबंधित समस्याओं का भी निदान होगा।