समस्त संसार के पाप हरने वाली एवं मोक्ष प्रदान करने वाली माँ गंगा को कोटि कोटि नमन।
हिंदू सनातन संस्कृति में गंगा दशहरा पर्व का अत्यंत महत्त्व है। कहा जाता है कि इसी दिन माँ गंगा, ब्रह्मा जी के कमंडल से निकल कर भगवन शिव की जटा में स्थान प्राप्त कर धरती पर अवतरित हुई थी। माँ गंगा के धरती पर उद्गमन होने पर इस तिथि को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। इसे प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाने का विधान है तथा इस वर्ष गंगा दशहरा 1 जून को मनाया जायेगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन माँ गंगा के शीतल जल में स्नान कर दान-पुण्य करने पर सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा परलोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पर्व को मनाने का शुभ मुहूर्त 31 मई 2020 को साय 05:36 बजे से 1 जून 2020 को दोपहर 02:57 बजे तक है। इस मुहूर्त में याचक पवित्र माँ गंगा के शीतल जल में स्नान कर अपने पाप धो मोक्ष की प्राप्ति करता है।
माँ गंगा के इस पावन पर्व का शुभारम्भ इस मंत्र की आराधना से करना चाहिए :
"नमो भगवते दशपापहराये, गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये ।
दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:।।"
अर्थात - "हे भगवती, दस पाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को को मेरा नमन।"
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि माँ गंगा की आराधना मात्र से मनुष्य में निहित 10 प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। माँ गंगा के जल में स्नान मात्र से मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे 10 प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन मनुष्य द्वारा दान पुण्य कर सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त करना संभव है। कहा जाता है कि इस दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है।
माँ गंगा स्वर्ग लोक की वासी थी तथा सृष्टि के रचयता श्री ब्रह्मा जी के कमंडल में रहती थी। धरती के एक प्रतापी राजा भागीरथ, जिनके पूर्वजों को श्राप मिला था कि उनको कभी मोक्ष नहीं मिलेगा, ने अथक तपस्या की। तब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न हो उनको वरदान दिया कि स्वर्ग की नदी माँ गंगा जो की सबके पापों का निवारण करती है तथा मोक्ष प्रदान करती हैं, का अवतरण धरती पर होगा। परन्तु इसमें एक बाधा थी, माँ गंगा का वेग अत्यंत होने के कारण यह सम्भावना थी कि शायद वो धरती पर स्थिर ना रह कर धरती फाड़ कर पाताल लोक चली जाएंगी। तब भगीरथ जी ने भोले-भंडारी की तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर भोले शंकर से माँ गंगा को अपनी जटाओं में स्थान देने का आग्रह किया। इस प्रकार जब माँ गंगा ब्रह्मः जी के कमण्डल से धरती की ओर आयी, तब भोलेनाथ ने उनका वेग अपनी जटाओं में समाहित कर लिया, जहाँ से माँ गंगा निर्मल धारा के साथ समस्त धरती लोक के लोगों तथा राजा भगीरथ के पूर्वजों के पापों को हर उनको मोक्ष प्रदान किया। माँ गंगा के धरती पर हुए इस अवतरण दिवस को ही गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।
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गंगा दशहरा के अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा भजन संध्या, गंगा आरती, उपवास, दान पुण्य, एवं गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है।
"माँ गंगा में नहा लो, एक डुबकी लगा लो, के पाप सरे धूल जायेगे, के मोक्ष तुम्हे मिल जायगे।।"
इसी मान्यता के साथ इस दिन माँ गंगा के जल में डुबकी लगा कर स्वयं को पवित्र करने का प्रावधान है। इस दिन देश के सबसे बड़ा आस्था का केंद्र, जहाँ श्रद्धालु लाखों की संख्या में अपने पाप धोने आते है, प्रयागराज, हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, पटना एवं गंगा सागर हैं।
गंगा दशहरा के इस मंगल दिवस पर भक्तों द्वारा लस्सी, शरबत, ठंडाई, एवं शिकंजी तथा जेलबी, मालपुआ, खीर आदि खाद्य वस्तुओं का भी वितरित किया जाता हैं।