दशहरे पर्व पर करें माँ अपराजिता की पूजा वरना अधूरी रह जाएगी नवरात्रि

Dussehra Parv Par Karein Aap Maa Aparajita Ki Puja Varna Adhoora Reh Jayega Navratri

हिंदू धर्म में निहित अनेकानेक प्रकार के पर्व त्योहार व्रत आदि के मध्य दुर्गा पूजा एवं दशहरा का विशेष महत्व माना जाता है। दुर्गा पूजा 9 दिनों का पर्व होता है जिसमें माँ आदिशक्ति जगदंबा के नौ रूपों की पूजा आराधना की जाती है एवं उनकी विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। नवरात्र के 9 दिन समाप्त होने के पश्चात दुर्गा पूजा के अगले दिन अर्थात 10वीं वाले दिन दशहरा का पर्व आता है। दशहरा को विजयादशमी भी कहा जाता है। विजयादशमी पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत विजय का पर्व माना जाता है जिसे पूरे देश भर में विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

लगभग हर राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में दशहरा के पर्व पर रावण के पुतले को जलाया जाता है और यह माना जाता है कि रावण के साथ बुराइयों का भी नाश किया जा रहा है। दशहरा का पर्व संपूर्ण हिंदू जाति के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण पर्व होता है। इस वर्ष दशहरा का पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जाने वाला है। दशहरा पर्व से पहले शारदीय नवरात्र का आरंभ 17 अक्टूबर से होने जा रहा है जिसमें माता दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा आराधना की जाएगी और अंत में माँ आदिशक्ति जगदंबा की मूर्ति, प्रतिमा को विसर्जित कर जातक नवरात्र का पारण करते हैं। कई लोग अष्टमी पूजन पर कन्या का पूजन कर अथवा नवमी पर कन्या का पूजन कर अपने व्रत को समाप्त करते हैं। किंतु धार्मिक शास्त्रों की माने तो जिस प्रकार से नवरात्र के 9 दिनों तक विभिन्न माताओं की आराधना कर उनका आशीष ग्रहण किया जाता है, उसी प्रकार से दसवीं के दिन हेतु भी विशिष्ट माता की पूजा आराधना की जाती है जो दशहरे के पूजन के पूर्व किया जाता है।

आइए जानते हैं दसवीं के दिन अर्थात दशहरे के पर्व वाले दिन किस माता की पूजा आराधना की जाती है और इसके पीछे क्या कुछ पौराणिक व धार्मिक महत्व है।

पौराणिक व धार्मिक महत्व

शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि जब भगवान श्री राम लंका पर चढ़ाई कर रावण से युद्ध करने हेतु निकले थे, तो उन्होंने युद्ध से पूर्व लंका पर विजय प्राप्त करने हेतु माँ अपराजिता देवी की पूजा आराधना की थी। माँ अपराजिता देवी की पूजा आराधना करने वाले जातक अपने जीवन में कभी भी किसी भी युद्ध व अन्य क्षेत्रों में भी पराजित नहीं होते। अपराजिता देवी व्यक्ति को हर क्षेत्र में जय विजय प्रदान करती है, इसी वजह से दशहरा पर्व के दिन माता अपराजिता देवी की पूजा आराधना करने का विधान है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता दुर्गा के विसर्जन से पूर्व अर्थात दसवीं की आखिरी पूजा के पूर्व में ही अपराजिता देवी की विधि विधान से पूजा आराधना कर लेनी चाहिए। अपराजिता देवी के पूजा के बिना नवरात्र का पर्व अधूरा माना जाता है। भगवान श्रीराम ने दसवीं देवी के रूप में अपराजिता देवी की पूजा आराधना कर शक्ति स्वरुप को महत्व दिया है एवं दशहरा व नवरात्र के पर्व को पूर्ण किया है, अतः आप भी दशहरा की अंतिम पूजा से पूर्व अपराजिता देवी की विधि विधान से पूजा अवश्य करें।

माँ अपराजिता देवी हेतु पूजा एवं मंत्र

विजयादशमी के पूर्व सभी जातकों को अपराजिता देवी की पूजा आराधना करनी चाहिए। उन पर अक्षत, पुष्प, पान सुपारी, धूप, दीप, नैवेद्य आदि चढ़ाकर उनसे अपने जीवन में सदैव विजय की प्राप्ति हेतु कामना करनी चाहिए। अपराजिता देवी की पूजा आराधना हेतु अपराहन काल को सर्वोत्तम माना जाता है। तो आप दसवीं वाले दिन अर्थात 25 अक्टूबर को अपराहन के समय अपराजिता देवी की पूजा आराधना करें और इनके मंत्र "ॐ अपराजितायै नम:" का भी 108 बार जप अवश्य करें।  इसके अतिरिक्त आप पूजन की काल अवधि के दौरान सुक्तम पाठ करें। अपराजिता देवी को प्रसन्न करने हेतु जातक देवी कवच और अग्रहरा स्त्रोत का भी पाठ करते हैं।

दशहरा व माँ अपराजिता देवी के पूजन हेतु शुभ मुहूर्त

इस वर्ष नवरात्रि पर्व के अंत वाले दिन अर्थात दसवीं वाले दिन का आरंभ 25 अक्टूबर 2020 को प्रातः 7 बजकर 41 मिनट पर होने जा रहा है जिसका समापन 26 अक्टूबर 2020 के सुबह 9 बजकर 4 मिनट पर होगा। इसी काल अवधि के दौरान 25 अक्टूबर की दोपहर 1 बजकर 12 मिनट से लेकर दोपहर के 3 बजकर 27 मिनट तक अपराजिता पूजन का शुभ मुहूर्त है जो लगातार 2 घंटा 15 मिनट तक बना रहेगा। अतः सभी जातकों को इस मध्य अपराजिता देवी की पूजा उपासना अवश्य ही करनी चाहिए।