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ये 6 वस्तुएं हैं श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय

6 things that are most loved by Lord Krishna

भगवान श्री कृष्ण श्री हरि विष्णु के अनेकों अवतारों में से एक हैं। श्री कृष्ण का संपूर्ण जीवन ही चरितार्थ है। श्री कृष्ण का जीवन चरित्र व्यक्ति को अनेकानेक प्रकार की बाधाओं से उभरने का मार्ग बताता है। उनके द्वारा कहीं गई भगवत गीता संपूर्ण संसार भर की समस्याओं के निदान का सार तत्व है। कृष्ण द्वारा कही गई गीता स्वयं ईश्वर की वाणी मानी जाती है जिसमें जनमानस के व्यावहारिक जीवन से जुड़े तथ्यों, जीवन मे आने वाली बाधाओं, दुविधाओं का उल्लेख व विस्तृत वर्णन किया गया है, साथ ही उन सभी के कारण निवारण सभी के संबंध में पूर्ण जानकारी दी गई है। श्री कृष्ण संपूर्ण मानव प्रजाति हेतु ना केवल एक नायक अपितु मिसाल बने, अपितु उनका चरित्र जीवन व व्यवहार दार्शनिक रहा है। श्री कृष्ण को अपने जीवन में उतार पाना कठिन ही नहीं दुर्लभ है, किंतु हम उन्हें समझने की और उनके अंश को अपने अंदर फलीभूत करने की चेष्टा अवश्य ही कर सकते हैं। इसके लिए हमें श्री कृष्ण द्वारा की हुए लीलाओं, उनकी कलाओ, उनके व्यक्तित्व, चरित्र,  चिंतन व विचारों का अपने जीवन में बीजारोपण करने की आवश्यकता है।

भगवान श्री कृष्ण का जन कल्याण हेतु पृथ्वी लोक पर अवतरण हुआ था। बंशीधर का अवतरण भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। श्री कृष्ण के जन्मावतार के पश्चात उन्होंने अनेकों लीलाएं रची एवं जनमानस के समक्ष सच्ची मित्रता, सच्चे प्रेम, वात्सल्य, भ्रातृ अनुराग, धर्म-कर्म आदि की एक मिशाल कायम की। अंततः उन्होंने कंस का संघार कर असत्यता पर सत्य की विजय का परचम लहराया।

इस वर्ष बाल गोपाल का जन्मोत्सव भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि यानी की 12 अगस्त को मनाया जाने वाला है। इस वर्ष जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण के प्रति स्वयं को पूर्णरूपेण समर्पित कर श्रद्धा और भक्ति की भावना को विकसित कर चरम तक ले जाएं। आइए आज हम आपको श्रीकृष्ण से जुडी 6 वस्तुओं के संबंध में कुछ विशेष जानकारी देते हैं जिसके माध्यम से आप श्री कृष्ण की प्रिय वस्तुओं के के पसंदीदा होने के पीछे के मर्म को समझ कर श्री कृष्ण के प्रति और भी अधिक श्रद्धा व भावना के साथ समर्पित होकर उनके भक्तों की पात्रता ग्रहण कर पाने योग्य स्वयं को बनाने में सफल हो पाएंगे। आइए जानते हैं भगवान श्री कृष्ण की अति प्रिय वस्तुओं के संबंध में।

1. बांसुरी

भगवान श्री कृष्ण का अवतरण जब वृंदावन की नगरी में हुआ तो वे बालसखाओ,  गाय, गोपियों व प्रकृति में लीन रहा करते थे। वे इन सभी का आनंद उठाते थे एवं प्रकृति व बाल शाखाओं को, बालाओं को सदैव खुशियां देते थे। उनकी बंसी की मधुर धुन सभी का मन मोह लेती थी। श्री कृष्ण को अपनी बांसुरी से बहुत प्रेम है। श्री कृष्ण की माने तो बांसुरी अत्यंत ही मधुर होती है जो नकारात्मकता को दूर कर एक सकारात्मक वातावरण बनाती है, साथ ही ऊर्जाओं का भी संचार करती है। बांसुरी सम्मोहन, खुशी, आकर्षण आदि का प्रतीक मानी जाती है और सदैव प्रेम व शांति का ही संदेश लोगों तक देती है।

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श्री कृष्ण को बांसुरी से इसलिए भी अधिक प्रेम था क्योंकि बांसुरी मुख्य रूप से तीन गुणों से सुसज्जित होती है। बांसुरी में जिस प्रकार तीन छेद होते हैं उसी प्रकार उसमें तीन सुंदर गुण भी होते हैं। जो लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। पहला बांसुरी में कहीं भी कोई गांठ नहीं होता, अर्थात लोगों को अपने अंदर किसी के प्रति ईर्ष्या द्वेष व दुर्भावना की गांठ नहीं बांधनी चाहिए। किसी के प्रति बदले की भावना रखना चाहिए। ऐसे लोग श्री कृष्ण को अत्यंत ही अप्रिय है।

वही बांसुरी के दूसरे गुण के संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि यह बिना बजाए कभी आवाज नहीं करती, अर्थात जब तक बांसुरी को बजाया नहीं जाता, वह बोलती नहीं है। यानी जब तक आपसे पूछा ना जाए तब तक आपको नहीं बोलना चाहिए, अर्थात आप के लिए संयमीत वार्तालाप ही उचित व सकारात्मक परिवेश उत्पन्न करती है। वहीं बांसुरी के तीसरे गुण को अत्यंत ही प्रिय बताते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि बांसुरी को जब भी बजाओ तब वह मधुर ध्वनि ही देती है, अर्थात यदि आप कुछ बोल रहे हो तो जब भी अपना मुख खोलें सुंदर यानी मधुर ही बोले ताकि लोगों का ध्यान आप की ओर आकर्षित हो। आप से लोगों में प्रसन्नता का वातावरण बने और चारों ओर प्रेम फैले। कान्हा ने कहा है कि जिन भी जातकों के अंदर यह तीनों गुण समाहित होते हैं, उसे मैं अपने हृदय से लगा लेना चाहता हूँ। इसलिए मुझे बांसुरी से अत्यंत प्रेम है।

2. गाय

श्री कृष्ण को गौ से अत्यंत ही लगाव व प्रेम है। भगवान श्री कृष्ण गौ माता की नित्य प्रतिदिन सेवा किया करते थे। उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व प्रेम जताया करते थे। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि गाय के अंदर 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। गाय एक ऐसी पशु है जिसे कामधेनु कह कर संबोधित किया गया है। गाय को माता मानकर पूजा जाता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि गायों में संपूर्ण सृष्टि का वास होता है, ये पृथ्वी का प्रतीक है जिसमें सभी देवी देवता विद्यमान हैं। यहां तक कि संसार को मार्गदर्शन देने वाली वेद व उनकी ऋचाएं भी गाय में ही प्रतिष्ठित है। गाय से उत्पन्न सभी तत्व जन कल्याण हेतु अत्यंत ही हितकारी होते हैं। गाय के अपशिष्ट पदार्थ भी अत्यंत ही महत्व माना जाते हैं। दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र, आदि इन सभी तथ्यों को मनुष्य तो क्या, देवता भी संग्रहित कर उपयोग करते हैं। गाय को सबसे अधिक उदार व माँ समान माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक गोमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी आदि जैसे पंचगव्य का सेवन करता है, उनके शरीर के अंदर कभी भी पाप का ठहराव नहीं होता है। श्री कृष्ण स्वयं भी गौ की प्रतिदिन प्रदक्षिणा कर उन्हें नमन किया करते थे। गाय की सेवा करने से जातक पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग के सुखों की प्राप्ति करता है। अतः कृष्ण की गाय के प्रति अद्भुत श्रद्धा भावना की थी।

3. मोर पंख

पक्षियों में मोर का अत्यंत ही अधिक महत्व माना गया है। मोर भगवान शिव शंकर भोलेनाथ के जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय का वाहन भी माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त मोर का शास्त्रों में वर्णन करते हुए कहा गया है कि मोर चिल ब्रह्मचारी युक्त जीव है जिसके अंदर प्रेम में ब्रह्मचर्य की अद्भुत भावना समाहित होती है। इसी कारणवश भगवान श्री कृष्ण का मोर से अत्यंत ही लगाव है। इसलिए श्री कृष्ण मोर के प्रति अपने सम्मान व प्रेम की भावना को दर्शाते हुए उन्हें अपने सिर के मुकुट में स्थान देते हैं। ऐसा माना जाता है मोर मुकुट का गहरा रंग व्यक्ति के जीवन के दुख व परेशानियों का निदान करता है, तो वही हल्का रंग जातक के जीवन में सुख-समृद्धि व शांति का परिमार्जन करता है। ज्योतिष शास्त्र में भी मोर पंख के संबंध में वर्णन करते हुए कहा गया है कि नवग्रहों की शांति हेतु मोर पंख अत्यंत उपयुक्त है। मोर पंख घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, साथ ही ग्रह दोषों का भी निवारण होता है। मोर पंख में सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है।

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4. कमल

श्री कृष्णा को कमल का पुष्प भी अत्यंत ही प्रिय है। भगवान श्री कृष्ण श्री हरि विष्णु के अनन्य अवतार है। श्री हरि विष्णु को कमलनयन भी कहा जाता है। श्री हरि विष्णु ने भगवान शिव की आराधना हेतु 108 कमल का अर्पण किया था जिसमें एक कमल पुष्प कम हो जाने पर उन्होंने अपने नेत्र को निकालकर भगवान भोले भंडारी के चरणों में अर्पित किया था, तब से उनका नाम कमलनयन कहलाया। कमलनयन के अनन्य अवतार श्री कृष्ण कमल के पुष्प के सम्बंध में कहते है कि कमल कमल कीचड़ में खिलता है, बावजूद इसके वो बुराइयों के सदैव स्वयं को पवित्र रहने का संदेश दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करता है। कमल सांसारिकता के मध्य रहकर आध्यात्मिकता में लीन रहने का प्रतीक माना गया है। इसे जीवन की सरलता वह जटिलताओं के निवारण का प्रतीक तत्व माना जाता है।

5. माखन मिश्री

कान्हा माखन चोर कहे जाते हैं। उनके माखन चोरी की कथाएं चहुँ ओर लोक प्रचलित है। श्री कृष्ण को माखन मिश्री से अत्यंत ही प्रेम है। माखन मिश्री के संबंध में कहा जाता है कि जब माखन में मिश्री को मिलाया जाता है, तो वह माखन के कण-कण में घुल कर अपनी मिठास छोड़ता है एवं माखन को भी मधुर कर देता है। मिश्री व माखन का सम्मिश्रण जातकों को अपने जीवन में व्यवहार व प्रेम के सम्मिश्रण से और खुशहाली बांटने का संदेश देता है। यह लोगों के जीवन में प्रेम घोलने का प्रतीक माना जाता है जो गौ माता के प्रसाद के रूप में कान्हा को बहुत ही प्रिय है।

6. वैजयंती माला

वैजयंती माला ना सिर्फ भगवान श्री कृष्ण, अपितु श्री हरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी को भी अत्यंत ही प्रिय है। भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप अत्यंत ही मनमोहक व दिव्य है। श्री कृष्ण को वैजयंती माला अत्यंत ही प्रिय है। वे प्रायः अपने गले में वैजयंती माला को धारण करते थे। वैजयंती माला कमल के बीजों से निर्मित होती है। दरअसल कमल के बीज अपने प्रकृति के अनुरूप गुणों से काफी सख्त होते हैं, बावजूद इसके वे काफी चमकदार रहते हैं और टूटते नहीं है, ना ही सड़ते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि आपके जीवन में अनेकानेक प्रकार की कठिनाइयां बाधाएं आएंगी, किंतु आपको हमेशा सशक्त रहने की आवश्यकता है एवं अपने आत्मा की चमक खुशी के स्वरूप में चेहरे पर हमेशा बरकरार रखनी चाहिए। स्वयं को किसी भी दुख व परिस्थितियों में टूटने नहीं देना चाहिए, साथ ही यह इस बात का भी संदेश देता है कि लोगों को हमेशा अपनी नीव से जुड़े रहना चाहिए। वैजयंती जमीन से उत्पन्न होती है जो इस बात का भी संदेश देती है कि व्यक्ति को सदैव अपने जमीन से अर्थात अपनी मूल पहचान व अपने अस्तित्व से जुड़ा हुआ होना चाहिए। भले ही आप स्वयं में कितनी भी बड़ी उपलब्धि क्यों न हासिल कर ले। अतः अपने अस्तित्व को सदैव जहन में रखना चाहिए ताकि आप स्वयं को अहंकार से मुक्त रख बाधाओं से दूर रख पाए।