रक्षाबंधन का त्योहार खुद में बेहद ही खास माना जाता है। यह भाई बहनों का त्यौहार है जो हर वर्ष सावन मास के आखिरी दिन को पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि को सावन पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। इस दिन हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है एवं ईश्वर से प्रार्थना करती है कि उसका भाई सदैव-सुखी संपन्न व दीर्घायु रहे। उनके मान-सम्मान में कभी कोई कमी ना आए, इस भावना के साथ वह अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाती हैं। वहीं भाई अपनी बहन को उपहार देते हुए यह वचन भी देता है कि वह आजीवन उसकी रक्षा करेगा एवं हमेशा उसके चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखने की कोशिश करेगा।
रक्षाबंधन का यह खास त्यौहार संपूर्ण हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वकारी माना जाता है। यह भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधने के अतिरिक्त ब्राह्मणों गुरुओं व घर की छोटी कन्याओं को भी राखी बांधने का है। रक्षा बंधन का यह दिन अत्यंत ही विशेष होता है। इस दिन चंद्रमा भी अपनी पूर्ण कलाओं के साथ दिव्य प्रकाश में स्वरूप में दिखाई देता है। यही कारण है कि चंद्र दोष के निवारण हेतु श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत ही महत्वकारी माना जाता है। इस दिन चंद्र दोष संबंधी विकारों का सुगमता पूर्वक निवारण हो जाता है।
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर नक्षत्रों का भी फेरबदल होता है। मूल रूप से प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों को ही नक्षत्रों की संज्ञा दी जाती है। अतः इस ब्रह्मांड में 27 नक्षत्रों को माना गया है। इन नक्षत्रों में से सावन मास की पूर्णिमा तिथि को श्रावणी नक्षत्र का आरंभ होता है। श्रावणी नक्षत्र को कई कार्य हेतु अत्यंत ही महत्वकारी व शुभ प्रभावी माना गया है। पवित्र सावन मास की पूर्णिमा तिथि ना केवल रक्षाबंधन पर्व हेतु विशेष मानी जाती है, अपितु इस दिन अन्य कई ऐसे कर्म भी हैं जिन्हे करना अत्यंत ही शुभकारी व फलदाई होता है। इस कारण ही इस दिन को कुछ खास तौर तरीके व उपाय को अपनाने हेतु ज्योतिष शास्त्र व धर्म शास्त्र हमें प्रेरित करता है।
तो चलिए आज हम जानते हैं कि श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को जातकों को क्या कुछ विशेष करना चाहिए जिससे उनके जीवन में सदैव सकारात्मकता बनी रहे एवं सावन मास की पूर्णिमा के समान पुण्य दायक तिथि का पूर्ण लाभ उठा सकें।
जनेऊ परिवर्तन
सावन मास की पूर्णिमा तिथि को सनातन हिंदू धर्म के जातक अपने जनेऊ का परिवर्तन करते हैं। ऐसी परंपरा है कि जो भी जनेऊ जातक द्वारा धारण किया जाता है, वह सावन मास की पूर्णिमा तिथि को ही पूजित किया जाता है। हिंदू धर्म में जनेऊ के पूजन हेतु श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को ही महत्व दिया गया है। इस दिन जनेऊ यानी यज्ञोपवीत धारण करने वाले जातक श्रद्धा भाव से, धर्मावलंबी मन, वचन व कर्म की पवित्रता को आत्मसात करते हुए संकल्प के साथ यज्ञोपवीत का धारण करते हैं। प्रायः ब्राह्मणों के घर में इसे श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को ही धारण किया जाता है, अर्थात ब्राह्मण 1 वर्ष में सावन मास की पूर्णिमा तिथि को ही जनेऊ परिवर्तन करते हैं।
रक्षाबंधन
पवित्र श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि संपूर्ण भारत भर में सावन पूर्णिमा रक्षाबंधन व अन्य अन्य रूपों में मनाई जाती है। गुजरात में इसे पवित्त्रोपणा पर्व के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सावन पूर्णिमा की तिथि को रुई की बत्तियों को पंचगव्य में डुबोकर भगवान शिव के समक्ष अर्पित करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
सावन की इस आखिरी तिथि पर होती है विशेष पूजा
सावन पूर्णिमा की तिथि सावन मास की आखिरी तिथि होती है, इस कारण भी इस दिन पूजा-पाठ आदि के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना का भी विधान है। वैसे तो सावन का पूरा माह ही भोलेनाथ का माह माना जाता है, किंतु आखरी तिथि की विशेष पूजा अधिक महत्वकारी होती है। आज के दिन कावड़ यात्री अपनी कावड़ यात्रा का अंत करते हैं, साथ ही अमरनाथ यात्रा का भी इसी दिन समापन हो जाता है। कुल मिलाकर यह दिन बेहद शुभकारी होता है।
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