शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय क्षेत्रों में अनेक प्रकार की समस्याएं और उलझने अपने चारों ओर बिखरी हुई हैं जिस कारण हम हर क्षण अच्छे या बुरे दोनों ही प्रकार के कृत्य करते हैं, और अपने जीवन में उनके परिणामों से बचने हेतु, हमारे हिंदू धर्म में प्रत्येक माह 2 एकादशी व प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी का जो साधक अनुसरण करता है, वह अपनी हर मुश्किलों से पार पाता है।
ऐसा कहा जाता है कि एकादशी पर जो भी साधक विधिवत रूप से एकादशी व्रत का अनुसरण करता है, ईश्वर उसे फलस्वरूप बुरे कृत्य व पापों से मुक्ति प्रदान करता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी योगिनी व शयनी एकदशी के नाम से विख्यात है। इस दिन साधक व्रत का अनुसरण कर भगवान हरि की आराधना करता है।
महाभारत के मध्य एक बार धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण से कहते हैं कि, हे वसुदेव मैने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के बारे में सुना है। कृपया मुझे आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक बताईये।
उनकी बात सुनकर कृष्ण कहते हैं कि हे ज्येष्ठ पाण्डु पुत्र, इस आषाढ़ माह कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी व शयनी है। जो भी इस व्रत को सफलता पूर्वक पूर्ण कर्ता है, वह अपने बुरे कृत्यों के परिणामों से मुक्ति प्राप्त करता है। इस दिन भगवान विष्णु की अराधना कर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों में एक कथा के आधारभूत होकर हमारे धर्मं में इसका महत्व माना गया है।
कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नामक नगरी में वास करता था। वह तृकालदर्शी महाकाल का अनन्त भक्त था। वह प्रतिदिन शिव की आराधना किया करता था। उसकी नगरी में हेम नामक एक माली नित्य राजा को पूजा से पूर्व पुष्प लाकर दिया करता था। माली की विशालाक्षी नाम की पत्नी थी।
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एक दिन माली मानसरोवर से पुष्प लेकर सीधे अपने घर चला गया और कामसक्त होकर अपनी स्त्री के मोह में लीन हो गया हो। उस दिन राजा को पुष्प देने में वो असफल हो गया।
वहीं दूसरी ओर राजा दोपहर तक उसकी राह देखते रहे, अंत में उन्होंने अपने सैनिकों को उसके घर जाकर उसकी खोज करने को कहा। सैनिकों के लौटकर आने के बाद वे उसके ना आने का कारण बताते हैं, जिसे सुन राजा क्रोधित हो माली को तुरंत सभा में उपस्थित करने का आदेश देते हैं। राजा के डर से कांपता हुआ माली सभा में उपस्थित होता है। राजा कुबेर क्रोध में आकर उसे कहते हैं कि - हे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे ईश्वर शिव जी का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू हमेशा अपनी स्त्री से दूर व स्त्री वियोग में सदा तड़पता रहेगा और मृत्यु लोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करेगा।
इस प्रकार वह माली स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आ पहुंचा। धरा पर आते ही वह स्त्री वियोग में अपना जीवन यापन करने लगा। वह मृत्यु लोक में कठिन तप एवं जंगल में बिना भोजन व जल के यहाँ-वहाँ भटकता रहा, किन्तू अपनी पिछले कुछ अच्छे कृतियों के अनुसार शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको अपनी कृतियों का ज्ञान अवश्य था।
एक दिन जंगल में घूमते हुए हेम की युगपुरुष मार्कंडेय ऋषि से भेंट हुई। वह माली उनके पास जाकर चरणों को पकड़ लेता हैं और शीश झुका कर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करता हैं। कुछ देर वार्ता करने के पश्चात महर्षि उस माली से पूछते हैं कि तुमने ऐसे कौन से कृत्य किए हैं जिसके कारण तुम यहां पर इस परिस्थिति में अपना जीवन यापन कर रहे हो।
इसके उपरांत उस माली ने अपनी पूरी कथा महर्षि को सुनाई। उसकी व्यथा को सुन महर्षि उसे अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए व उसके जीवन के उद्धार के लिए उसे ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत का अनुसरण करने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि इससे तुम्हारे सारे पाप व दुष्कर्म समाप्त हो जाएंगे और अंततः तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
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महर्षि की बात सुन वह माली उनसे आज्ञा लेकर इस व्रत को सफलतापूर्वक पूर्ण करता है और पुनः अपने पुराने स्वरूप में जन्म लेकर अपनी सुंदर स्त्री के साथ सुखमय जीवन यापन करता है।
योगिनी एकादशी व्रत का फल
श्री कृष्ण ज्येष्ठ पाण्डु पुत्र को योगिनी एकादशी की महत्वता विस्तार पूर्वक समझाते हुए कहते हैं कि - यह एकादशी अनंत ब्राह्मणों को भोजन दान करने के समान फल प्रदान करती है। इसके व्रत से साधक को संपूर्ण पाप, दुष्कर्म व बुरे कृत्य के परिणामों से मुक्ति व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस वर्ष 16 जून 2020 ब्रह्ममुहुर्त 05 बजकर 41 मिनट से योगिनी एकादशी व्रत की तिथि आरंभ होगी।
17 जून, 2020 को प्रातः 07 बजकर 50 मिनट पर योगिनी एकादशी की तिथि समाप्त होगी।