अनेक प्रथाओं, मान्यताओं, पौराणिक कथाओं, आदि का द्वार है हिंदू धर्म। जिस प्रकार जीवन में हर घड़ी घटित घटनाओं के पीछे एक निश्चित कारण निहित होता है, उसी प्रकार हिंदू धर्म में हर चीज व वस्तु के होने का एक अमूल कारण होता है।
शास्त्रों और पुराणों की मान्यताओं के अनुसार, हिंदू धर्म में यह मान्यताओं की रीत हमेशा से चलती आ रही है। हिंदुओं में हर दिन, हर माह की अलग ही मान्यता है। जिस प्रकार मुस्लिमों में रमजान का माह सबसे शुद्ध व सफल माना जाता है, उसी प्रकार हिंदुओं में सावन का महीना बहुत ही पवित्र व शुभ माना जाता है। सावन मास की उत्पत्ति श्रवण नक्षत्र से हुई है, इसका स्वामी चंद्र को माना जाता है जो भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। श्रवण नक्षत्र जल का कारक माना जाता है, इसी नाते इस माह को शुभ कार्यों का माह, मंगलकारी व कल्याणकारी माना जाता है। इसलिए इस माह में शिव की आराधना करना अति आवश्यक व लाभकारी होता है।
ऐसी मान्यता है कि एक बार देवी सती के पिता दक्ष अपने अंगने में विशाल यज्ञ का आयोजन करने जा रहे थे। यज्ञ में सम्मिलित होने हेतु, उन्होंने सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, आदि जगत के ज्ञाताओं को वहाँ उस यज्ञ में उपस्थित होने के लिए निमंत्रण दिया। किंतु पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती व उनके परमेश्वर भोलेनाथ को आयोजन में आने का निमंत्रण नहीं दिया। जब पार्वती को इस यज्ञ के आयोजन के बारे में ज्ञान हुआ, तो वे बिना निमंत्रण वह वहां जाने के लिए अपने ईश्वर से हठ करने लगीं। उनकी हठ के समक्ष विवश होकर, भगवान शिव ने उनको यज्ञ में जाने हेतु आज्ञा प्रदान की। किंतु वहाँ अपने पिताजी द्वारा अपने परमेश्वर की निंदा करते देख उन्होंने उस विशाल अग्नि में स्वयं को भस्म करने का संकल्प लिया। अन्ततः उन्होंने योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर शरीर त्यागने से पूर्व उन्होंने भगवान शिव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का संकल्प लिया।
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इसी प्रकार अपने दूसरे जन्म में देवी सती हिमालय और देवी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लेती हैं। वे युवावस्था में ही निराकार रहकर कठोर तप और साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करती हैं। जिस माह में पार्वती जी ने तप व आराधना की, वह सावन का माह ही था जिसमें पार्वती ने युगों तक तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास किया और उनसे विवाह किया। ऐसे में इस माह को विशेष रूप से भक्तों के लिए फलदाई माना जाता है।
नारी के लिए लाभदायक
शास्त्रों-पुराणों का अध्ययन करने से यह ज्ञान प्राप्त होता है कि भगवान शिव नारी सशक्तिकरण के प्रेरक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। योगा अग्नि में अपनी अर्धांगिनी सती को भस्म होने के बाद उनका रौद्र रूप इस बात का गवाह है व उनकी अर्धनारीश्वर छवि इसका प्रतीक है। कुंवारी कन्याएं सावन माह हर सोमवार को शिव के समान स्त्री का सम्मान करने वाले पति की कामना से व्रत और जलाभिषेक करती हैं।
शिव जी पर इस माह में जलाभिषेक का महत्व
पूर्ण कथा यह है कि अनंत देवताओं व असुरों ने मिलकर इसी माह में समुद्र मंथन किया था। इसी दौरान भगवान शिव ने जन कल्याण हेतु समुद्र से अमृत के साथ निकले विष का पान किया था, इससे उनका कंठ नीला पड़ गया था, इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ा। विषपान से उनके शरीर का ताप बढ़ने लगा, जिस को शांत करने के लिए आदि देवों ने उन्हें शीतलता प्रदान की, किंतु उन्हें इससे कोई प्रभाव नहीं हुआ। इसके उपरांत देवराज इंद्र ने उनके तापमान को कम करने के लिए घनघोर वर्षा की, जिससे भगवान शिव को शीतलता प्राप्त हो सके। इसलिए सावन मास में साधक के जलाभिषेक का अधिक महत्व माना जाता है। इस माह में प्रकृति भी वातावरण की उष्णता शांत करने हेतु जलाभिषेक करती है।
अलग-अलग तीर्थों में विभिन्न जल धाराओं का महत्व होने के कारण शिवजी की प्रसन्नता के लिए पुरातन काल में कावड़ यात्रा का प्रचलन था। कहते हैं कि कावड़ यात्रा की शुरुआत शिवभक्त एवं असुरों के विराट रूप रावण ने की थी। कहते हैं कि ऋषि परशुराम ने कावड़ में 'गढ़मुक्तेश्वर' से जल लाकर 'बागपत' उत्तर प्रदेश के पास स्थित पुरा महादेव में प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक किया ।
उसी प्रकार आज भी लोग मनोकामना की पूर्ति के लिए परंपरा का पालन ह्रदय पूर्वक करते हैं। हिंदू धर्म में इसका अधिक महत्व माना गया है। पूर्व में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि से जल लाते थे और प्रसाद के साथ जल को शिव को हृदय पूर्वक समर्पित करते थे। इस माह में मुख्य तीर्थों के जलधारा से जल लाकर जलाभिषेक विधान पूर्वक किया जाता है। इसके साथ चारों दिशाओं में ' हर हर महादेव ', ' हर हर भोले' आदि का मंत्र गूंज उठता है।
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इस बार संयोग से सावन माह का बड़ा ही विलक्षण आरंभ है। 6 जुलाई दिन सोमवार से इस वर्ष आरंभ हो रहे सावन का अंत भी 3 अगस्त दिन सोमवार को ही हो रहा है, अर्थात इस बार सावन माह का आरंभ और समापन दोनों ही दिन सोमवार के साथ संपन्न हो रहा है।
06- जुलाई - 2020 को सोमवार की पहली तिथि।
13- जुलाई - 2020 को सोमवार की दूसरी तिथि ।
20- जुलाई - 2020 को सोमवार की तीसरी तिथि।
27- जुलाई - 2020 को सोमवार की चौथी तिथि।
03- अगस्त - 2020 को सोमवार की पांचवीं तिथि।