विवाह, स्वास्थ्य, नौकरी, व्यापार, धन-सम्पत्ति, मकान, वास्तु, कोर्ट-कचहरी, संतान, शिक्षा, उन्नति, पारिवारिक दिक्कतें, कुंडली मिलान, विदेश निवास या यात्रा, करियर आदि से जुड़ी सभी समस्याओं के सटीक उपाय जानें लाल किताब गुरु आचार्य पंकज धमीजा जी से।
संपर्क करें - +91 8384874114 / 9258758166

रमा एकादशी

rama ekadashi

हिंदू धर्म में अनेक-अनेक प्रकार के धार्मिक ग्रंथ, शास्त्र आदि निहित हैं जिनका अलग-अलग भागों में वर्गीकरण किया गया है। इनमे से एक ज्योतिष शास्त्र भी है। ज्योतिष शास्त्र के एक भाग पंचांग में सभी व्रत तिथि, मुहूर्त आदि का वर्णन किया जाता है जिसे हिंदू पंचांग को संपूर्ण सनातन धर्म में माना जाता है और उसी के अनुसार पर्व त्यौहार आदि का निर्धारण भी होता है।

हिंदू पंचांग के मुताबिक इस माह की 11 नवंबर की तिथि को एकादशी व्रत का आरंभ होना है। एकादशी व्रत को मोक्षदायिनी व्रत कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत व सबसे अधिक फलित महत्वकारी व्रत एकादशी को कहा गया है। एकादशी व्रत का वर्णन स्वयं भगवान श्री कृष्ण गीता में करते हैं। लगभग सभी एकादशी व्रत का उल्लेख करते हुए गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन युधिष्ठिर नकुल सहदेव भीम आदि को उपदेश प्रदान किए हैं।

पूरे वर्ष भर में 24 एकादशी के व्रत सामान्य तौर पर धारण किए जाते हैं, किंतु शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि जिस पर किसी वर्ष में मलमास अर्थात अधिक मास पड़ता है, उस वर्ष में एकादशी का व्रत 24 से बढ़कर 26 हो जाते हैं। इन्हीं व्रतों में आज अर्थात 11 नवंबर की तिथि को रमा एकादशी का व्रत है जिसका विशेष महत्व माना जाता है।

आइए जानते हैं रमा एकादशी व्रत के महत्व पूजा विधि शुभ मुहूर्त तिथि आदि के संबंध में।

व्रत हेतु उचित तिथि व समय

रमा एकादशी का व्रत हर वर्ष की कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष को रखा जाता है। इस वर्ष 2020 में कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की तिथि 11 नवंबर की पड़ रही है जिसमें एकादशी का व्रत 11 नवंबर के प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में 3 बजकर 05 मिनट से आरंभ होने जा रहा है जो 12 नवंबर तक विद्यमान रहेगा। इसमें जातकों को अन्य एकादशी की भांति ही विधि पूर्वक मुहूर्त समय आदि को ध्यान में रखते हुए नियमित व्रत का धारण करना चाहिए। रमा एकादशी का व्रत सभी जातकों द्वारा 11 नवंबर की तिथि को धारण किया जाएगा। जिसका पारण 12 नवंबर को प्रातः होना निर्धारित है।

एकादशी व्रत हेतु पूजा विधि

  • रमा एकादशी के व्रत हेतु सभी जातकों को 1 दिन पूर्व ही प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहा धोकर दूसरे दिन पड़ने वाले व्रत को लेकर संकल्पित हो जाना चाहिए और एकादशी के एक दिन पूर्व की तिथि से ही तामसिक भोजन पान आदि चीजों का परित्याग कर देना चाहिए।
  • इसके लिए आप इस दिन सात्विक व सादा भोजन ग्रहण करें और दूसरे दिन के व्रत को लेकर मन ही मन संकल्पित हो जाए।
  • फिर दूसरे दिन अर्थात व्रत वाले दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र नदी अथवा जल में गंगा जल आदि मिलाकर स्नान आदि की क्रियाकलाप कर लें।
  • तत्पश्चात अपने इष्ट तथा भगवान सूर्य की पूजा आराधना करने के पश्चात भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करें और स्वयं भी पीले वस्त्र पहनकर साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को भी पीले रंग की वस्तु को पहनाकर पूजन की प्रक्रिया को आरंभ करें।
  • पूजन की प्रक्रिया में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के समक्ष धूप दीप दिखाकर पान सुपारी अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मेवा, मिष्ठान आदि समर्पित करें।
  • तत्पश्चात तुलसी के पत्र को भी अर्पित करें और इस दिन फलाहार द्वारा व्रत का धारण करें।
  • इस दिन आप भगवान विष्णु की कथा पाठ आदि का सेवन करें। एकादशी के व्रत के कथा का भी श्रवण करें।
  • तत्पश्चात दूसरे दिन अर्थात द्वादशी तिथि को प्रातः काल में उठकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना कर भूखे और गरीबों में भोजन करावा कर उन्हें अन्य वस्त्र धन आदि समर्पित करें तत्पश्चात अपने व्रत का पारण करें।

रमा एकादशी है विशेष महत्वकारी

रमा एकादशी व्रत के संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि रमा एकादशी व्रत के नाम 'रमा' का निर्धारण माता लक्ष्मी के अनन्य नामों में से एक के द्वारा हुआ है, अर्थात रमा, माता लक्ष्मी का ही उपनाम है और इसी उपनाम के आधार पर इस एकादशी के व्रत का नाम निर्धारित किया गया है। इस कारण से इस व्रत का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक इस व्रत को विधिपूर्वक धारण करते हैं और माता लक्ष्मी के प्रति भी अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं, उन जातकों को आर्थिक समस्याओं से निजात प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त गीता व अन्य शास्त्रों के मुताबिक एकादशी व्रत को मोक्षदायिनी कहा गया है।

एकादशी व्रत धारण करने वाले जातकों को सभी प्रकार के पाप, राग, द्वेष, नकारात्मक विचारों आदि से मुक्ति मिलती है। एकादशी व्रत धारण करने वाले जातकों को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और माता लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि भी आजीवन बनी रहती हैं। इस कारण से सभी जातकों को एकादशी व्रत धारण अवश्य ही करना चाहिए। एकादशी व्रत को लेकर भगवान श्री कृष्ण ने भी पांडवों को भिन्न-भिन्न उपदेश प्रदान किए हैं और एकादशी के महत्व को समझाया है। अतः सभी जातकों को इस महत्वकारी रमा एकादशी के व्रत को अवश्य ही धारण करना चाहिए।