पौष पूर्णिमा

Paush Purnima

पौष की पूर्णिमा खोलेगी मोक्ष के द्वार, लाएगी आपके जीवन में सुख, समृद्धि व खुशियां अपार, जानिए पौष पूर्णिमा के विशेष धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व एवं इस दिन किए जाने वाले महत्वपूर्ण क्रियाकलाप आदि के संबंध में

हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन, तिथि, समय, मुहूर्त आदि का स्यं में भिन्न-भिन्न व विशेष महत्व रहता है। हिंदू धर्म की सभी तिथियां हमारे सनातन पंचांग अर्थात हिंदू पंचांग से पूर्णतया आधारित है।

हिंदू पंचांग में सभी तिथियों व समय, मुहूर्त आदि के महत्व को दर्शाते हुए उचित क्रियाकलाप सुझाव व स्वयं के आत्मिक, आध्यात्मिक व अन्य सभी परिपेक्ष में विकास हेतु उपाय, विधि-विधान आदि भी दर्शाए गए हैं।

हिंदू धर्म में प्रत्येक माह, दिवस आदि भी स्वयं में विशेष महत्व धारण करता है। इसी मध्य प्रत्येक माह में पड़ने वाली पूर्णिमा की तिथियों में 28 जनवरी 2021 को पौष माह में पड़ने वाली पूर्णिमा की तिथि है जो कि काफी महत्वकारी है।

चूँकि सनातन धर्म में सभी 12 माह में पौष माह को काफी महत्व माना जाता है, इस माह को जातकों को दान धर्म पूजा-पाठ व आध्यात्मिक हेतु काफी लाभकारी माना जाता है। इस दिन सभी देवी देवता पृथ्वी लोक पर गमन करते हैं। इसी पौष माह के विशेष महत्व के कारण की पूर्णिमा को भी काफी महत्वकारी माना जाता है। इस दिन पौष माह के स्नान, जप, तप आदि का काफी महत्व है।

इस वर्ष 2021 में पौष पूर्णिमा की तिथि दिन गुरुवार 28 जनवरी 2021 को पड़ रही है। तो आइए आज हम आपको पौष की पूर्णिमा के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाते हुए पूर्णिमा के आरंभ की तिथि शुभ मुहूर्त व अन्य पहलुओं को भी दर्शाते हैं:-

पौष पूर्णिमा तिथि एवं शुभ मुहूर्त

ज्योतिष शास्त्र व किसी भी अन्य धार्मिक शास्त्रीय क्रियाकलाप में समय, मुहूर्त आदि को काफी महत्व दिया जाता है ताकि उचित व पूर्णरूपेण लाभ हासिल किया जा सके। आइये आप भी पौष की पूर्णिमा के उचित मुहूर्त का पूरा लाभ उठाएं।  

पौष पूर्णिमा तिथि

पूर्णिमा तिथि का आरम्भ :- 28 जनवरी 01 बजकर 30 मिनट (01:30 am)
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति:- मध्यरात्रि 12 बजकर 48 मिनट (29 जनवरी 00:48am) पर।

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पौष पूर्णिमा को करें पवित्र नदियों में स्नान

पौष की पूर्णिमा कई प्रकार की तिथियों व पहलुओं को लेकर काफी महत्वकारी मानी जाती है। पौष की पूर्णिमा में नदियों में जाकर स्नान करने को काफी लाभकारी माना जाता है। इस दिन जातक गंगा, यमुना आदि जैसी पवित्र नदियों में जाकर प्रातः सूर्योदय कालीन बेला में नदी में गोता लगाते हैं और पवित्र नदी में डुबकी लगाकर अपने पापों व नकारात्मक प्रवृत्तियों का उत्सर्जन कर स्वयं को आत्मिक तौर पर स्वच्छ व सकारात्मक बनाने की भावना रखते हैं।

पौष की पूर्णिमा के ही दिन की तिथि को स्नान हेतु अत्यंत शुभकारी इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इस दिन ब्रह्मांड में ग्रह-गोचरों व नक्षत्रों का कुछ इस प्रकार दुर्लभ योग बनता है कि चंद्रमा व अन्य ग्रह अपने गोचरों के माध्यम से प्रकृति व पवित्र नदियों के जल आदि पर अपनी किरणों के माध्यम से अमृत वर्षा करते हैं। नदियों के जल में विशिष्ट ऊर्जा समाहित होती है जो कि अमृत समान प्रदायिनी मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी जातक किसी भी पवित्र नदी आदि में स्नान करता है उसकी काया के निरोग होने के योग रहते हैं, साथ ही आपको इस दिन स्नान करने से पुण्य प्रताप की प्राप्ति होगी। कई जातक तो पौष की पूर्णिमा को मोक्ष की प्राप्ति हेतु व्रत भी धारण करते हैं। पौष की पूर्णिमा विशेष तौर पर भगवान सूर्य को समर्पित व्रत माना जाता है। जातक पवित्र नदी गंगा नदी में सूर्योदय कालीन बेला में ही प्रातः काल स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं।

इस दिन को शाकंभरी पूर्णिमा व अन्य कई नामों से जाना जाता है-

पौष की पूर्णिमा के कई अलग-अलग भिन्न-भिन्न महत्व है। इसे कई राज्यों व स्थानों पर अपने भिन्न-भिन्न तौर तरीके से मनाया भी जाता है। ऐसा माना जाता है कि पौष की पूर्णिमा की तिथि को ही माँ आदिशक्ति जगदंबा ने अपने भक्तों के कल्याण हेतु शाकंभरी देवी के स्वरूप में पृथ्वी लोक पर अवतार लिया था। इस कारण से इस पूर्णिमा को शाकंभरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।

पौष की पूर्णिमा की तिथि के दिन ही अवतार लेने की वजह से पौष पूर्णिमा की तिथि को ही शाकंभरी जयंती भी मनाई जाती है। इस दिन माँ आदिशक्ति जगदंबा की भी विशेष पूजा आराधना की जाती है। कई राज्यों में पौष की पूर्णिमा को अन्य कई भिन्न नामों से भी जानते है। जैसे कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी इसे छेड़ता पर्व के रूप में धूमधाम से मनाते हैं।

पौष पूर्णिमा पर बन रहे हैं कुछ दुर्लभ महा योग

पौष पूर्णिमा की तिथि को सम्पतक योग बन रहा है। इसके अतिरिक्त इस दिन गुरु पुष्य और सर्वार्थसिद्धि नामक भी योग बन रहे हैं। इस योग को काफी लाभकारी माना जाता है।

किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत हेतु यह समय व कालावधी अत्यंत ही महत्वकारी माने जाते हैं। इस दिन जल तत्व एवं मन के स्वामी ग्रह चंद्रमा अपनी राशि परिवर्तित कर मिथुन से कर्क में प्रवेश कर रहे हैं। साथ ही सूर्य और चंद्रमा अपने ग्रह गोचरों की परिस्थितियों के कारण एक-दूसरे के ठीक आमने-सामने बने रहेंगे।

पौष पूर्णिमा की तिथि को प्रीति योग भी बन रहा है। साथ ही इस दिन प्रात काल में रवि योग भी बना रहेगा। यह सभी उपयुक्त महायोग अत्यंत ही शुभकारी एवं महत्वकारी हैं। इन शुभ योग व महत्वकारी समय में जप, तप, ध्यान, योग आदि करना काफी फलित व शुभकारी माना जाता है। इस दौरान किसी विशिष्ट मनोकामना को मन में धारण करते हुए किए गए जब तक योग से आपकी मनोकामनाएं भी अवश्य ही पूर्ण होती हैं।

पौष पूर्णिमा की तिथि से ही कल्पवास का होता है आरंभ

धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक पौष पूर्णिमा की तिथि से ही कल्पवास का आरंभ हो जाता है। जो भी जातक कल्पवास करने वाले होते हैं यह सभी जातक पौष की पूर्णिमा के पूर्व से ही कुंभ में आ कर ध्यान, साधना व जप-तप में लीन हो जाते हैं। वह इस तिथि व महायोग वाले दिवस का पूर्ण लाभ उठाते हैं।

पौष पूर्णिमा की तिथि को ही कुंभ का दूसरा स्नान होगा। इस दिन से आरंभ कल्पवास का समापन माघ माह की पूर्णिमा तिथि पर होगा। कल्पवास को काफी महत्वकारी साधना के स्वरूप में माना जाता है। कल्पवासी जातक स्वयं को सांसारिक बंधनों से दूर जीवन मृत्यु के विचारणा से परे रखकर मोक्ष हेतु आराधना करते हैं।

कल्पवास को काफी महत्वकारी माना जाता है। कल्पवास को कई नामों से जाना जाता है। इसकी परिचर्चा भिन्न-भिन्न ग्रंथों और पुराणों में विस्तृत तौर पर की गई है।

वैसे तो हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा की तिथि को ही विशेष महत्वकारी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन जातक अपनी पात्रता को व्यक्त कर स्वयं को मोक्ष के द्वार तक ले जा सकते हैं। किंतु सभी 12 माह के पढ़ने वाले पूर्णिमा की तिथि में पौष मास की पूर्णिमा को श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन जातकों को भगवान भास्कर अर्थात सूर्य देव की पूजा आराधना करनी चाहिए ताकि इनके जीवन में ऊर्जा का संचार होता रहे, व्यक्ति आंतरिक शारीरिक व बौद्धिक तौर पर प्रखर विकसित तेजस्वी ओजस्वी हो। इसके साथ ही इस दिन सूर्य के साथ-साथ चंद्रमा अर्थात चंद्र देव की पूजा आराधना करनी चाहिए ताकि व्यक्ति के अंतःकरण में शीतलता, मस्तिष्क में शांति व जल व मन के अधिपति चंद्रमा की आराधना से मन की चंचलता पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके।

इस दिन जातकों को अपने क्षमता के अनुसार गरीबों व जरूरतमंदों के मध्य दान-पुण्य का कार्य भी करना चाहिए। इस दिन सर्दियों के कपड़े, कंबल, ऊनी वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। साथ ही ब्रह्मचर्य के नियमों को अपने जीवन में धारण करने का प्रयत्न करना चाहिए। आप अपने जीवन में किसी ना किसी एक सकारात्मक विचार व सकारात्मक तथ्य को अवश्य धारण करें।