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परिवर्तिनी एकादशी

Parivartini Ekadashi Date, Shubh Muhurat and Katha

युगोंयुगों से इस धरा पर दैत्यों और देवताओं के मध्य द्वांध चलता रहा है। कभी दानवों के आधीन तो कभी देवताओं के आधीन इस धरा का मान बड़ता रहा है। जब-जब इस दैत्यों ने इस धरा को आधीन कर अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया, तदोपरांत ही स्वयं ईश्वर ने इस धरा पर जन्म लेकर असुरों का संपूर्ण जगत से अंत किया है। भगवान विष्णु ने इस धरती पर कई अवतार लिए, त्रेता काल में भगवान राम के रूप में, द्वापर में श्री कृष्ण तथा वामन अवतार आदि रूपों में स्वयं इस धरा पर अवतरित होकर प्रकाशित किया है।

भगवान विष्णु की आराधना हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि वे ही इस सृष्टि के पालनकर्ता है। मान्यता है कि चक्रधारी विष्णु जी की आराधना से समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त देवी-देवताओं की आराधना आप ही हो जाती है। यह भी मानना है कि भगवान की जिस साधक पर असीम अनुकम्पा व साथ मिलता है, उसे सारे पापों से मुक्ति मिलती है और वो जीवन में अनंत सफलता का भागीदार का पात्र बन जाता है। हिन्दू धर्म में हर माह एकादशी के व्रत की मान्यता है। इस दिन विशेषकर याजक अपने सभी विषम कर्मों से मुक्ति पाने के लिए ईश्वर से विशेष आग्रह करता है। कोई भी मंगल कार्य करने के लिए एकादशी का दिवस बहुत ही शुभ व मंगल माना जाता है।

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

पुरातन काल में त्रेता युग में एक बहुत ही क्रूर, शूरवीर, पराक्रमी व ईश्वर अनुरागी बली नामक एक असुर इस धरा पर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। वो विष्णु जी का अनंत भक्त था, उसका ईश्वर के प्रति असीम अनुराग था। वो नित्य वेदों के सूक्त व ऋचाओं को पढ़कर ईश्वर के प्रति अपना अनुराग अर्पित करता था। प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम विष्णु जी को स्मरण कर अपने शुभ दिन को आरम्भ करता था। वो अनेक प्रकार से विधि पूर्वक विष्णु जी की प्रत्येक दिन आराधना करता था। संकल्प पूर्वक वो नित यज्ञ में विष्णु भगवान को आहुति समर्पित कर, आस-पास के निर्धन, असहाय व ब्राह्मणों को भोजन कराता था। ईश्वर के प्रति जितना उसका अनुराग था, उतना ही वह पराक्रमी व शूरवीर भी था। एक बार उसने अपने पराक्रम के बल पर सभी देवताओं को परास्त कर स्वर्गलोक को अपने आधीन कर लिया था और इंद्रलोक को भी अपनी कैद में ले लिया था। इंद्रलोक को बली की कैद से मुक्त कराने हेतु सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की दिन रात आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने देवताओं को उनकी समस्या का समाधान करने का वचन दिया।

देवताओं की समस्याओं से निवारण हेतु भगवान विष्णु ने पांचवां अवतरण धारण किया। वे इस अवतार में वामन अवतार के नाम से प्रचलित हैं। एक दिन राजा बली अपनी नित दिनचर्या के अनुसार उग्य में आहुति अर्पित कर रहे थे, उस समय भगवान विष्णु ने वामन अवतार में आकर उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी। यह सुन राजा बली ने उन्हें तीन पग जमीन नाप कर ले लेने को कहा। वामन अवतार में ईश्वर ने दो ही पग में आकाश व पाताल पूरी सृष्टि को नाप लिया और तीसरे पग के लिए उन्होंने राजा बलि की ओर देखा। महाराजा बली ने नतमस्तक होकर ईश्वर को प्रत्यक्ष पाकर प्रणाम किया और अपने सिर को झुका तीसरा पग नापने को कहा।

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भगवान विष्णु राजा बली की दानवीरता व ईश्वर भक्ति देखकर वह बहुत ही प्रसन्न हुए। उनसे प्रसन्न होकर विष्णु जी ने राजा बली को इंद्रलोक को छोड़कर पाताल लोक जाकर अपना स्थान ग्रहण करने को कहा और उन्होंने यह वचन दिया कि चातुर्मास में एक रूप धारण कर मैं पार्वती जी के अनुरोध का पालन कर निद्रा को ग्रहण करूंगा, यथावत दूसरे रूप में मैं पाताल लोक में तुम्हारे राज्य की रक्षा करूंगा ।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व

कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु ने जब महाराजा बली को प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे, उसके उपरांत राज बलि ने उनसे यह वरदान मांगा कि - हे भगवन्! कृपा मुझे अपने साथ रहने का सौभाग्य प्रदान कीजिए। तब भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक में स्थान ग्रहण कर साथ रहने की आज्ञा दी। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु निद्रा में करवट बदला करते हैं, इसलिए इस दिन को जगत में परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की जो भी साधक सहृदय आराधना करता है, वह जीवन में सभी समस्याओं व पापों से मुक्ति प्राप्त करता है। इस दिन भगवान को कमल से सुशोभित करने से जीवन में सफलता का प्राप्ति होती है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजन विधि

1) प्रातः काल उठकर भगवान विष्णु व लक्ष्मी  जी को स्मरण कर दिन की शुरुआत करें।
2) अपने घर को स्वच्छ कर पूजा घर सहित सभी उपयोगी पत्रों में गंगा जल का सिंचन करें ।
3) भगवान विष्णु की पूजा विधिपूर्वक कर कमल का पुष्प अर्पित करना चाहिए।
4) हल्दी, चंदन व मिठाई से पूजन कर भगवान विष्णु की वंदना करनी चाहिए।
5) व्रत के उपरांत सांय काल में विष्णु जी की कथा का पाठ करना चाहिए।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत तिथि व शुभ मुहूर्त

इस वर्ष परवर्तिनी एकादशी व्रत भादौ माह के शुक्ल पक्ष में शनिवार 29 अगस्त 2020 को है।

शुभ मुहूर्त

व्रत आरंभ:- 28 अगस्त 2020, रात्रि कालीन 08 बजकर 40 मिनट से
व्रत समाप्ति:- 29 अगस्त 2020, रात्रि कालीन 08 बजकर 20 मिनट पर।
पारण (व्रत तोड़ने का समय):- 30 अगस्त प्रातः 05 बजकर 59 मिनट से प्रातः 08 बजकर 19 मिनट तक।