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पापमोचिनी एकादशी

Papmochani Ekadashi Vrat

हिन्दू धर्म में अनेक मान्यताओं के आधारभूत होकर विभिन्न प्रकार के एकादशी व्रत को अनुसरण करने का सुझाव दिया गया है। पौराणिक काल में ऋषींयों ने जनों के कृत्यों के आधार पर इन एकादशी व्रत की रचना की। इसी प्रकार हिन्दू धर्म में पापमोचिनी एकादशी व्रत की अत्यधिक महत्ता है।

महाभारत काल में स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने इस व्रत को समझ कर इसके महत्व को परख कर अनुसरण किया तत्पश्चात अन्य जनों को इस एकादशी व्रत का अनुसरण करने को कहा है। अनेक मान्यताओं के आधार पर इस व्रत का जो भी साधक विधि पूर्वक अनुसरण करता है उसे अपने अगले पिछले जाने अनजाने में किये गए सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस दिन भगवन विष्णु की आराधना जो भी साधक सह्रदय पूर्वक करता है उसपर सदा अनुकम्पा विराजमान रहती है जिससे उसे अपने जीवन में कल्याण की प्राप्ति होती है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

भारतीय संस्कृति के संस्थापक रुपी महाग्रंथ महाभारत में ज्येष्ठ कुंती पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर भगवान् श्री कृष्ण से यह पूछते हैं कि - हे माधव ! मैंने अन्य कई एकादशी व्रत के बारे में सुना है किन्तु मुझे चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में जानने की अत्यधिक इच्छा है। हे कृपा सिंधु, अपनी अनुकम्पा सहित मुझे उस एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक ज्ञान दीजिये।

धर्मराज युधिष्ठिर की रूचि को देख, भगवन श्री कृष्णा उनसे अति प्रसन्न होकर कहते हैं कि हे धर्मराज, इस सृष्टि में आपसे बड़ा धर्मसेवक कोई भी नहीं। आपके द्वारा किया गया प्रश्न अति प्रसंशनीय है। एक बार नारद जी ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी से यह प्रश्न किया था, उस समय इस प्रश्न का जो उत्तर ब्रह्मा जी ने नारद जी को दिया था, उसको आपको मैं विस्तारपूर्वक बताता हूँ।

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कहते है कि चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जानते है। यह एकादशी अपने नाम स्वरुप मानव द्वारा किये गए जाने अनजाने में पापों से मुक्ति प्रदान करती है। इस दिन सृष्टि के पालन करता, दुखहर्ता एवं कल्याणकर्ता भगवान् विष्णु जी की आराधना की जाती है। इस दिन इस व्रत को धारण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन कल्याणमय हो जाता है।

एक नगर के समीप चित्ररथ नामक वन था। उस वन में अनेक अप्सराओं व देवताओं सहित देवराज इंद्र उस वन में विचरण कर रहे थे। उसी समय च्यवन ऋषि के परमवीर व ज्ञानी पुत्र मेधावी भी वहाँ पर अपनी तपस्या में लीन थे।

ऋषि मेधावी को देखकर देवराज इंद्र के साथ आई अप्सरायें मोहित हो गयी, तथा वे उनकी तपस्या को भंग करने हेतु अनेक कृत्य करने लगीं। कुछ समय उपरांत कामदेव भी वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने जब अप्सराओं को उनकी तपस्या में विघ्न डालते देखा तो वह उनकी मंशा से पूर्णतः अवगत हो गए।

यह देख कामदेव भी उनकी सहायता करने लगे। इस प्राकर ऋषि अप्सराओं के कृत्य, गीत और नृत्यलोकन से प्रभावित होकर तपस्या को भूलकर उनमें मोहित हो गए। वे भगवान शिव की आराधना को त्याग कर मञ्जूषा नामक अप्सरा के साथ काम भावना में लीन रहे। तत्पश्चात मञ्जूषा ने ऋषि से देव लोक जाने को कहा। तब मेधावी ऋषि को यह ज्ञात हुआ कि मेरा तपस्या के मार्ग से मन भटकने का एकमात्र राहगीर ये अप्सरा मञ्जूषा ही है। उस समय अप्सरा से क्रोधित होकर मेधावी ऋषि ने उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया।

एक ओर अपने श्राप से मुक्ति हेतु वह अप्सरा बनी पिशाचनी दर-बदर भटकने लगी, तथा वहीं दूसरी ओर मेधावी ऋषि भी अपनी गलतियों के प्रायश्चित के लिए मार्ग की तलश में तत्पर थे।

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एक दिन वे दोनों ही मेधावी ऋषि के पिता च्यवन ऋषि के पास गए। उन दोनों ने अपनी दुविधा को विस्तारपूर्वक ऋषि के समक्ष व्याख्यान किया। वार्ता को सुनकर महर्षि उन्हें चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की पापमोचिनी एकादशी के व्रत का अनुसरण करने की सलाह देते हैं। वे दोनों विधिपूर्वक पापमोचिनी एकादशी व्रत का अनुसरण करते है जिससे उनके सारे पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। तत्पश्चात मञ्जूषा पुनः देवलोक में अपना स्थान स्थापित करती है। वहीं दूसरी ओर एक बार पुनः च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि त्रिकालदर्शी देवाधिदेव महादेव की आराधना में लीन हो गए।

पापमोचिनी एकादशी व्रत 2021 तिथि एवं शुभ मुहूर्त

हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी व्रत की शुभ तिथि का आगमन होता है। इस वर्ष पापमोचिनी एकादशी व्रत की शुभ तिथि का आगमन 7 अप्रैल 2021 दिन बुधवार को होगा।

शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरम्भ:- 7 मार्च 2021 दिन बुधवार 02:09 am से
एकादशी तिथि समाप्ति:- 8 अप्रैल 2021 दिन बृहस्पतिवार 02:28am पर।
व्रत पारण समय:- 8 अप्रैल दोपहर 01 बजकर 39 मिनट शाम 04 बजकर 11 मिनट तक।

पापमोचिनी एकादशी व्रत की महत्वता

पापमोचिनी एकादशी की हिन्दू धर्म में अधिक महत्वकारी है, क्योंकि ये मानव कल्याण हेतु एकमात्र ऐसा मार्ग है जिससे साधक अपने जीवन रुपी सागर में जाने-अनजाने किये गए पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। यह मान्यता है कि इस एकादशी के अनुसरण मात्र से साधक अपने कई जन्मों में किये गए पापों से छुटकारा प्राप्त कर सकता है।

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इस व्रत में भगवन श्री हरी की आराधना की जाती है जिससे साधक का जीवन मंगलमय हो जाता है एवं भगवन विष्णु की अनुकम्पा साधक पर सदा विराजमान रहती है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत की पूजन विधि

  • प्रातः काल उठकर साधक को अपने इष्टदेव का स्मरण कर शुभ दिन का आरम्भ करना चाहिए।
  • अपने अंतर्मन को स्वस्छ कर बाह्य शरीर को स्वच्छ करना चाहिए।
  • अपने घर स्तिथ पूजा स्थल में पवित्र गंगा जल का अभिसिंचन करना चाहिए।
  • पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।
  • एकादशी की शुभ तिथि पर पूजा स्थल पर पीले व लाल वस्त्र को स्थापित करें।
  • एकादशी के एक दिन पूर्व साधक को हल्का भोजन ही ग्रहण चाहिए।
  • साधक को इस शुभ तिथि पर सायं काल भगवान् श्री विष्णु की कथा का पाठ करना चाहिए, तथा आसपास के समस्त जनो को बुलाकर उस पाठ का अनुसरण कराना चाहिए।
  • अपने व्रत के पश्चात निर्धन एवं गरीब जनों को भोजन सामग्री व् दक्षिणा दान में देना चाहिए।
  • व्रत के पश्चात ब्रम्ह भोज का प्रबध करना साधक के लिए अति लाभदायक होगा।