हिन्दू धर्म में पापान्कुशा एकादशी को अन्य सभी एकादशी में सर्वोपरि माना गया है। महाग्रंथों के अनुसार पापंकुशा एकादशी के व्रत का जो भी साधक अनुसरण करता है, उसका गृह सुख समृद्धि से व्याप्त रहता है व सदा भगवान विष्णु की अनुकम्पा उसपर विराजमान रहती है। इससे उसके जीवन में सभी पापों से मुक्ति मिलती है व भगवान उसके जीवन के सभी कष्टों का निवारण करते हैं। इसी कारण इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी से जानते है। ये एकादशी साधक के सभी पापों को कुशलता पूर्वक हर लेती है और उसके जीवन को सुखमय बनाने में सहायता करती है।
द्वापर युग में वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत में गांडीव धारी पांडु पुत्र महारथी अर्जुन, श्री कृष्ण रूप भगवान विष्णु से यह प्रश्न करते हैं कि - हे माधव! मैं अन्य एकादशी के नाम व महत्व से अवगत हूँ, किन्तु मुझे अश्विन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक समझाइए।
महारथी अर्जुन के प्रश्न को सुनकर माधव मन ही मन मुस्कुराते हुए बोले - हे गांडीव धारी अर्जुन! अश्विन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को विश्व में पापाकुंशा एकादशी के रूप में जानते हैं। नाम स्वरूप पापाकुंशा नामक एकादशी व्रत का अनुसरण करने से साधक को अपने समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। अतः मृत्यु के भोग में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पापाकुंशा एकादशी के शुभ अवसर पर साधक को चक्रधारी विष्णु जी की आराधना करनी चाहिए। भगवान विष्णु की महिमा स्वरूप उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना जो भी साधक, विधिपूर्वक करता है, इससे उसे पिछले सात जन्मों में किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि जो सिद्धियां विशाल यज्ञ व तप करने से भी प्राप्त नहीं होती, वो सिद्धियां सिर्फ पापाकुंशा एकादशी व्रत का अनुसरण कर व भगवान विष्णु के चरणों को स्पर्श करने मात्र से प्राप्त हो जाती है। यथावत उसे अपने जीवन में भी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसके विपरित ये भी कहा जाता है कि जो भी मानव इस व्रत का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्हें नरक की प्राप्ति होती है।
हिन्दू धर्म में यज्ञ के माध्यम से भगवान की आराधना करने के अधिक महत्व है। इससे ईश्वर को हृदय पूर्वक साधक अपनी आहुतियां अर्पित करता है और स्वयं में भी उज्जवलता कि अग्नि को प्रज्वलित करता है। धार्मिक महाग्रंथों के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ, राजसूय यज्ञ व बाजपाय यज्ञ की अधिक मान्यता है। कहते है कि इन यज्ञों का अनुसरण करने से साधक के समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है व पापों से मुक्ति मिलती है। किन्तु मान्यता ये है कि पापाकुंशा एकादशी का व्रत रखने मात्र से फलस्वरूप यज्ञों के अनुसरण का 16 वे भाग के बराबर फल प्राप्त होता है ।
जो साधक इस एकादशी पर सहृदय दीन, असहाय लोगों को दान देते हैं व ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उन्हें कभी भी यम के दर्शन नहीं होते। सामान्यतः हमें नित इस सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता, चक्रधारी भगवान विष्णु जी की आराधना करनी चाहिए। वे सदा ही मानव का कल्याण चाहने वाले व उसके पापों को हरने वाले हैं, किन्तु यह मान्यता है कि एकादशी व्रत का अनुसरण करने से साधक पर भगवान विष्णु की कृपा निरंतर विराजमान रहती है और वह सदा खुशहाल पूर्वक अपना जीवन यापन करता है।
पुरातन काल में कथिक अन्य कथन
पुरातन काल में भारत के मध्य स्थित विंध्याचल पर्वत पर एक क्रोधी बहेलिया रहा करता था जिसका नाम उसके व्यवहार अनुसार क्रोधन था। वो आस-पास के लोगों को लूट कर अपना जीवन यापन करता था। वो नित मदिरा का सेवन कर हिंसा को अंजाम दे, अपने पापों के घड़े को बड़ी ही तीव्र गति से पोषित करने में तत्पर था।
नित इसी क्रिया के अनुसार अंततः उसका अंतिम समय निकट आ गया। एक दिन यमराज उसके पास आकर बोले - हे पापी! है दुष्ट! तेरे पापों का घड़ा अब इस प्रकार भर गया है कि कोई भी तुझे अब मेरे आधीन होने से नहीं बचा सकता। यमराज की बात से भयभीत होकर, उल्टे पैर दौड़ते हुए महात्माओं में महान , ऋषिंयों में श्रेष्ठ अंगीरा ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। अपनी पूर्ण व्यथा का वर्णन कर कहते हैं कि हे ऋषिवर, मैं अपने जीवन के यापन के लिए ही ये हिंसा कार्य कर रहा था। हाँ मैंने गलत मार्ग को अपना कर पापों की चादर पर शयन किया है, किन्तु है मुनिवर! मुझे अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग प्रदर्शित कीजिए। मैं अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ जिससे मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो सके। हे मुनीवर! आप उत्तम है, आप श्रेष्ठ हैं। कृपया मुझे पथ प्रदर्शित कीजिए।
क्रोधन के निवेदन अनुसार महर्षि ने उसे अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में पापांकुशा एकादशी का अनुसरण कर विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करने की सलाह दी। महर्षि द्वारा दिए गए उपाय स्वरूप उसने इस एकादशी व्रत का अनुसरण कर विधिवत रूप से पूजा सम्पन्न की। तत्पश्चात उसको अपने सभी बुरों कर्मों व पापों से मुक्ति मिल गई और भगवान श्री विष्णु जी कृपा अनुसार उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। ईश्वर की महिमा को देख स्वयं यमदूत भी चकृत हो गए, वे क्रोधन को लिए बिना ही वापिस यमलोक लौट गए।
1) प्रातः काल उठकर सर्वप्रथम अपने ईष्ट व भगवान विष्णु जी का स्मरण कर अपने शुभ दिन का आरंभ करें।
2) अपने घर को पूर्णतः स्वच्छ कर, पूजा घर को गंगा जल के द्वारा पवित्र करें।
3) पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित कर ईश्वर की वंदना करें।
4) विधि पूर्वक कमल का पुष्प, हल्दी, चंदन, धूप, नारियल, तुलसी आदि सामग्री का समायोजन कर विधि अनुसार ईश्वर को अर्पित करें।
5) ज्यादा से ज्यादा भगवान विष्णु की कथा का पाठ करें ।
6) एकादशी व्रत का अनुसरण कर दीन, असहाय लोगों को सहृदय दान दें व ब्राह्मणों के भोजन का इस दिन प्रबंध करें।
7) एकादशी के व्रत के पूर्व साधक को हल्का भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
तिथि
इस वर्ष पापांकुशा एकादशी अश्विन मास में शुक्ल पक्ष के मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020 को एकादशी की शुभ तिथि आरम्भ हो रही है।
शुभ मुहूर्त
पापांकुशा एकादशी व्रत का आरंभ - 26 अक्टूबर 2020 रात्रिकालीन 08 बजकर 51 मिनट पर।
पापांकुशा एकादशी व्रत का अंत - 27 अक्टूबर 2020 रात्रिकालीन 10 बजकर 16 मिनट पर।