पद्मिनी एकादशी

Padmini Ekadashi Vrat

हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार के व्रत-त्योहार आदि निहित है जिसमें एकादशी के व्रत को बहुत ही अधिक महत्वकारी व मोक्ष प्रदायक माना जाता है। एकादशी के कुल 26 व्रत वर्ष में जातकों को मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्राप्त होते हैं जिसमें से पद्मिनी एकादशी का महत्व विशेष माना जाता है। चूँकि पद्मिनी एकादशी हर वर्ष मलमास या अधिक मास में आती हैं, इसे कमला एकादशी कहकर भी संबोधित किया जाता है।

इस वर्ष 2020 में मलमास या अधिक मास का आरंभ 18 सितंबर को ही हो चुका है जो कि 16 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा। इसी मध्य 27 सितंबर की तिथि को पद्मिनी एकादशी की शुभ तिथि पड़ रही है।

तो आइए आज इस लेख के द्वारा जानते हैं पद्मिनी एकादशी के व्रत हेतु उचित मुहूर्त, तिथि, व्रत विधि, महत्व व संपूर्ण कथा।

पद्मिनी एकादशी हेतु  तिथि व शुभ मुहूर्त

किसी भी पर्व त्योहार आदि हेतु हिंदू धर्म में शुभ मुहूर्त, शुभ तिथि आदि को सर्वोत्तम व सार्थक माना गया है। अतः पद्मिनी एकादशी के व्रत के आरंभ हेतु 27 सिंतबर की तिथि पञ्चाङ्ग अनुसार निहित है। 26 सिंतबर शाम 07 बजकर 01 मिनट का समय एकादशी के आरंभ का माना गया है, वहीं पद्मिनी एकादशी के समापन का समय 27 सितंबर की तिथि को संध्याकाल 07 बजकर 49 मिनट का है। इस व्रत के पारण हेतु उचित मुहूर्त 28 सितंबर की तारीख को सुबह 6 बजकर 15 मिनट  से 8 बजकर 34 मिनट के मध्य का समय सर्वोत्तम है, अतः आप अपने व्रत का धारण व पारण उचित मुहूर्त के अनुरूप ही करें।

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पद्मिनी एकादशी के लिए व्रत विधि

जो भी जातक पद्मिनी एकादशी कर रहे हैं, उन्हें सर्वप्रथम तो प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिए। तत्पश्चात नित्य क्रिया से संपन्न होकर भगवान सूर्य को सूर्य गायत्री मंत्र अथवा गायत्री मंत्र के साथ अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात आप अपने घर के पूजा घर में पूजा-पाठ की क्रियाकलाप को संपन्न करें, अपने पितरों के प्रति श्रद्धा भाव अर्पित करें, साथ ही भगवान विष्णु की इस दिन विशेष पूजा करें। उनका पीले रंग के वस्त्रों से श्रृंगार करें। आज के दिन आप फलाहार का सेवन करें एवं ब्राह्मणों, भूखे, गरीबों को फल भोजन आदि का सेवन करवाएं। पद्मिनी एकादशी के दौरान अथवा अन्य किसी भी प्रकार के व्रत के दौरान आप मुहूर्त, तिथि आदि का विशेष ध्यान रखें।

पद्मिनी एकादशी व्रत का महत्व

पद्मिनी एकादशी को अत्यंत ही महत्वकारी एवं कल्याणकारी माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि जो भी जातक श्रद्धा भाव से पद्मिनी एकादशी का व्रत धारण करता है एवं उसे बिना किसी बाधा के पूर्ण करता है, उस जातकों को मृत्यु के पश्चात सीधे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। साथ ही ऐसे जातकों के जीवन में समस्याएं भी नहीं आती। ऐसा कहा जाता है कि पद्मिनी एकादशी अनेकानेक वर्षों तक किए गए तप तपस्या, यज्ञ, व्रत आदि के समान परिणाम प्रदान करने वाली मानी गई है। गीता में पद्मिनी एकादशी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम अर्जुन को पुरुषोत्तम एकादशी के व्रत की कथा को सुना कर पद्मिनी एकादशी के महत्व को दर्शाया था।

पद्मिनी एकादशी व्रत की सम्पूर्ण कथा

पद्मिनी एकादशी के व्रत की कथा का पौराणिक वर्णन त्रेता काल में देखने को मिलता है। दरअसल त्रेता काल के एक पराक्रमी राजा कृत्य वीर्य हुआ करते थे जिनके कोई संतान नहीं थी। इससे वे अत्यंत ही दुखी थे एवं अपने राज्य पाठ को लेकर चिंतित रहा करते थे। उन्होंने अनेकानेक विवाह भी किये, उनकी कई रानियां थी, पर बावजूद इनके उनके संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण नहीं हो पा रही थी।

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तत्पश्चात उन्होंने धर्म-आध्यात्म का मार्ग अपनाते हुए अपनी रानियों के साथ कठोर तप-जप, पूजा आदि की क्रिया आरंभ कर दी। किंतु बावजूद इसके भी राजन को किसी भी प्रकार के बढ़िया परिणाम की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात राजा की 1 मुख्य रानी ने माता अनुसुइया की शरण ली एवं माता अनुसूया से पुत्र प्राप्ति हेतु उपाय पूछा। तब माता अनुसूया ने उन्हें राजा सहित मल मास के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली पद्मिनी एकादशी का व्रत रखने को कहा।

तत्पश्चात रानी ने पूर्ण विधि- विधान से शुभ मुहूर्त एवं श्रद्धा भाव से मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जिसमें व्रत की समाप्ति पर उन्हें श्री हरि भगवान विष्णु के दर्शन हो गए जिस पर रानी व राजा ने उनसे यह वरदान मांगा कि उन्हें कोई ऐसा पुत्र प्रदान हो जो कई गुनो से संपन्न हो, जिसके अंदर शालीनता के साथ-साथ अदम्य साहस भी निहित हो, कुल मिलाकर मेरा पुत्र सर्वगुण संपन्न हो जिसकी चंहु लोक में यश और कीर्ति फैले हो एवं संपूर्ण सृष्टि जिसका सम्मान करते हो, ऐसी छवि वाला बालक प्राप्त हो।

भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने भक्तों को पूर्ण करने का वचन दिया एवं कुछ ही समय के पश्चात रानी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम कृत्य वीर्य अर्जुन रखा गया। ऐसा माना जाता है कि कृत्यवीर्य अर्जुन इतने बलशाली थे कि उन्होंने रावण तक को भी बंदी बना लिया था। कृत वीर्य के जन्म के पश्चात से ही पद्मिनी एकादशी का महत्व और भी अधिक बढ़ गया एवं इसे जातक श्रद्धा भाव से करने लगे।