मोक्षदा एकादशी

Mokshada Ekadashi Vrat Date and Katha

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को काफी महत्व दिया जाता है। एकादशी व्रत के संबंध में स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता में भी उल्लेख मिलता है। एकादशी व्रत को मोक्ष प्रदायनि और सभी प्रकार के विकृतियो के नाश करने वाले व्रतों में से एक महत्वपूर्ण माना जाता है। यहाँ आज हम मोक्षदा एकादशी के संबंध में चर्चा करेंगे।

मोक्षदा एकादशी का मूल अर्थ होता है मोह का नाश करने वाली, अर्थात इस एकादशी व्रत पर व्रत धारियों को अपने मोह का नाश करने हेतु संकल्पित होकर प्रयास करना चाहिए।

धर्म ग्रंथों में मोह का नाश करने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी नाम से संबोधित किया गया है। मोक्षदा एकादशी का व्रत धारण करने वाले जातकों को अपने पूर्व जन्मों के पाप व दुष्प्रभावों से मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रती को इस व्रत को धारण करने से सीधे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।

जो जातक इस व्रत का श्रद्धा पूर्वक भाव व अर्थ के साथ व्रत धारण करता है उन जातकों को 8400000 योनियों में भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इनके ऊपर स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा दृष्टि बनी रहती है जो इन्हें मोक्ष प्राप्त करने में सहायक होते हैं। वैसे भी शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोपरि स्थान उन्हीं व्रतों को दिया जाता है, जो जातकों को इन 8400000 योनियों से दूर कर मोक्ष की प्राप्ति करवाते हैं। इस प्रकार के महत्वपूर्ण व्रत की तिथि इस वर्ष के इसी माह अर्थात दिसंबर माह के 25 दिसंबर की तिथि को निर्धारित है।

25 दिसंबर की तिथि अन्य कई तथ्यों को लेकर भी काफी महत्वपूर्ण है। तो आइए आज हम जानते हैं 25 दिसंबर  की तिथि को पड़ने वाले मोक्षदा एकादशी के संबंध में साथ ही इस तिथि के विशेष महत्व के बारे में भी।

मोक्षदा एकादशी व्रत तिथि व मुहूर्त

हिंदू पंचांग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष की अगहन माह अर्थात मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस साल मोक्षदा एकादशी का व्रत 25 दिसंबर को रखा जाना है। शास्त्रों तथा पंचांग के मुताबिक मोक्षदा एकादशी व्रत के दिन ही गीता जयंती पड़ रही है। इसके अतिरिक्त 25 दिसंबर को ईसाई धर्म में बड़ा दिन के रूप में मनाया जाता है और इस दिन को महत्व दिया जाता है। साथ ही मोक्षदा एकादशी के साथ ही इस वर्ष के एकादशी का भी अंत हो जाएगा, अर्थात मोक्षदा एकादशी वर्ष 2020 की आखरी एकादशी है।

मुहूर्त

सनातन धर्म के धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक किसी भी व्रत, पर्व, त्योहार आदि हेतु जितनी अत्यधिक महत्वपूर्ण तिथि होती है, उतने ही महत्वपूर्ण समय, शुभ मुहूर्त आदि भी माने जाते हैं। हम मोक्षदा एकादशी के आरंभ की तिथि व समय की बात करें तो मोक्षदा एकादशी तिथि का आरंभ 24 दिसंबर की रात्रि 11 बजकर 17 मिनट से आरंभ हो जायेगा जो कि अगले दिन अर्थात एकादशी व्रत धारण करने वाली तिथि को 25 दिसंबर वाले रात्रि को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक बना रहेगा।

जिसका उदय उसका ही अस्त हिंदू धर्म का विधान है, उसी विधान अनुसार एकादशी व्रत को 25 दिसंबर के प्रातः काल से धारण कर 26 दिसंबर को इसका पारण किया जाएगा।

मोक्षदा एकादशी व्रत की विधि

  • मोक्षदा एकादशी व्रत धारण करने हेतु जातकों को व्रत वाली तिथि को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर पूजन क्षेत्र आदि को व्यस्थित कर लेना चाहिए।
  • तत्पश्चात सर्वप्रथम सूर्य की पहली किरण के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हुए लाल पुष्प अर्पित करना चाहिए।
  • इसके पश्चात सभी जातकों को अपने सभी इष्ट देवी देवताओं की पूजा-आराधना करने के साथ-साथ माता लक्ष्मी एवं भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए एवं उन पर अक्षत, पुष्प, पान, सुपारी, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित कर इनकी आराधना करनी चाहिए।
  • इस दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष आराधना की जाती है। किंतु ध्यान रहे सभी देवी देवताओं के पूजन को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है।
  • पूजन के आरंभ में गणेश भगवान की पूजा आराधना कर ले और अंत में भगवान श्री हरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी की आरती भी अवश्य ही करें।
  • इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु को लगाए जाने वाले भोग में तुलसी के पत्र अवश्य ही अर्पित करें। इससे आपका भोग विशिष्ट रूप से सात्विक पवित्र अर्पित माना जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का ज्ञान

दरअसल वर्ष की आखिरी एकादशी मोक्षदा एकादशी सभी एकादशी के व्रतों में विशेष महत्व धारण करती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इसी एकादशी तिथि पर आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार स्वरूप श्री कृष्ण ने गीता स्वरूप उपदेश संपूर्ण मानव जाति को अर्जुन के माध्यम से प्रदान किया था।

गीता मोक्षदायिनी ग्रंथ है। यह व्यक्तित्व की मूलता को परिलक्षित व परिभाषित करता है जिसमें व्यक्तित्व का आईना स्वयं भगवान श्री कृष्ण है, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन काल से एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व की परिभाषा को परिभाषित किया और अंततः अपने मरण से स्वयं को अजर अमर कर गए, अर्थात वे मर कर भी नहीं मरे। उन्होंने मृत्यु को भी मात दे दी। गीता ऐसे ही ज्ञान की आधारशिला है जो व्यक्ति को आत्म ज्ञान प्रदान करती हैं जिसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा मोक्षदा एकादशी की तिथि को दिया गया था। इस कारण से मोक्षदा एकादशी व्रत अत्यंत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है और इस तिथि को संपूर्ण विश्व भर में एवं विशेष तौर पर सनातन धर्म में गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है।

मोक्षदा एकादशी की कथा

मोक्षदा एकादशी व्रत के संबंध में कई कथाएं प्रचलित है जिसमें से एक कथा के अनुसार एक समय की बात है। गोकुल नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था। एक रात्रि राजा ने अपने सपने में देखा कि उसके पिता नरक लोक में दुख भोग रहे हैं और उसके पिता कष्टों से आहत होकर अपने पुत्र से उधार हेतु याचना कर रहे हैं। अपने पिता की दशा व उनके जर्जर हालात को देखते हुए उसके पुत्र काफी दुखी और व्याकुल हो उठे।

राजा ने दूसरे दिन प्रातः काल अपने घर में साधु-संतों व ज्योतिषियों को बुलाकर अपने स्वप्न के संबंध में चर्चा की और अपने पिता के दुखों के निवारण हेतु उपाय की याचना की। तत्पश्चात ब्राह्मण देवता ने कहा हे राजन इस स्थान से कुछ दूरी पर एक महान ऋषि है जो भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं, आप उनसे अपनी समस्या प्रकट करें, वे अवश्य ही आपकी समस्या का समाधान करेंगे।

राजा मुनि के पास वन में चले गए। उस मुनि का नाम पर्वत मुनि था। राजा ने पर्वत मुनि से अपने स्वप्नन व ब्राह्मणों की सलाह आदि से संबंधित सभी वार्ता को सामने रखा। तत्पश्चात पर्वत मुनि ने नेत्र बंद कर उस राजन के पिता के तथा उस राजन के भूत, भविष्य, वर्तमान आदि का आकलन करते हुए राजन से कहा कि - हे राजन! आपके पिता अपने पूर्व जन्मों के कर्मों की वजह से नर्क वास कर रहे हैं। यदि आप उन्हें मुक्ति दिलाना चाहते हैं तो आप उनके लिए मोक्षदा एकादशी का व्रत धारण करें। इस व्रत का यदि आप श्रद्धा पूर्वक अपने पिता के प्रति समर्पित होकर विधि विधान से व्रत धारण करेंगे, तो अवश्य ही आपके पिता को मुक्ति की प्राप्ति होगी।

तत्पश्चात राजन ने विधि विधान से अपने पिता के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए मोक्षदा एकादशी व्रत का धारण किया। फलस्वरुप उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई। तत्पश्चात राजन ने कभी भी स्वप्न में अपने पिता के जर्जर हालात को नहीं देखा और इस प्रकार मोक्षदा एकादशी व्रत के महत्व को समझा जा सकता है।