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मार्गशीर्ष पूर्णिमा

Margashirsha Purnima

प्रत्येक वर्ष के हर एक माह के पक्षों के अनुसार पूर्णिमा तथा अमावस्या की तिथि आती है जिसमें दोनों को ही अत्यंत ही महत्वकारी माना जाता है। किंतु पूर्णिमा को शुभकारी घटनाओं में से एक माना जाता है। पूर्णिमा का काफी महत्व है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा की तिथि को पूण्य अर्जित करने की तिथि माना जाता है। इस दिन तीर्थ स्थल की यात्रा, जरूरतमंदों की सेवा, परोपकार की भावना आदि को काफी प्रभावी माना जाता है। इस दिन किए गए किसी भी सत्कर्म का कई गुना अधिक फलित परिणाम प्राप्त होता है।

इस लेख के माध्यम से आज हम बात करेंगे वर्ष की आखिरी पूर्णिमा की तिथि की। वर्ष के अंतिम माह की पूर्णिमा तिथि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से प्रचलित है। यह मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि है। इस कारण से इसे मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहकर संबोधित किया जाता है। हालांकि इसके अतिरिक्त इसे अगहन पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

दरअसल पूर्णिमा के नाम का निर्धारण माह अथवा नक्षत्र के नाम के अनुसार होता है, अर्थात किसी भी पूर्णिमा के दिन जो नक्षत्र विद्यमान होता है, उसी नक्षत्र के आधार पर पूर्णिमा का नाम भी रखा जाता है और इस माह मार्गशीर्ष या मृगशिरा नक्षत्र पड़ रहा है, इस कारण से इस पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा या माह के आधार पर अगहन पूर्णिमा के नाम से संबोधित किया जा रहा है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व

हिंदू पंचांग में पूर्णिमा तिथि को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है और इनमें से मार्गशीर्ष पूर्णिमा काफी महत्वकारी तिथियों में से एक मान्य है। पूर्णिमा की तिथि को मूल रूप से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना की जाती है तथा अलग-अलग पूर्णिमा की तिथि को भगवान श्री हरि विष्णु के अलग-अलग रूपों की पूजा आराधना की जाती है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि को भगवान श्री हरि विष्णु के कृष्ण अवतार की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन 16 कलाओं के कलाधर भगवान श्री हरि विष्णु का जातकों को श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव की अर्चना का भी विशेष महत्व माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा की तिथि के दिन चंद्र देव अमृत से परिपूर्ण स्वरूप में परिलक्षित होते हैं। इस बार पूर्णिमा की तिथि अर्थात मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि दो तिथि की है। किंतु व्रत की तिथि 29 दिसंबर की ही मान्य है, तो वहीं स्नान, दान व अन्य प्रक्रियाओं के लिए 30 दिसंबर 2020 की तिथि को उत्तम माना जा रहा है। 30 दिसंबर की तिथि को जातकों को धार्मिक तीर्थ स्थल की यात्रा करनी चाहिए तथा दूसरों के प्रति परोपकार व सहयोग की भावना प्रकट करते हुए श्रद्धा भाव से दूसरों की मदद व सेवा करनी चाहिए। इस दिन जातकों को विशेष तौर पर अपने अंदर के क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आदि का परित्याग कर स्वयं को आंतरिक तौर पर परिष्कृत करने हेतु सकारात्मक सोचने व सकारात्मक क्रियाकलाप करनी चाहिए।

पूर्णिमा की तिथि जातकों की आंतरिक बुराइयों को नष्ट करती है, साथ ही इस तिथि पर चंद्र का अमृत से परिपूर्ण स्वरूप अपने अमृत्व से हमारा परिष्कृत व शुद्ध कर दीर्घायु करता है। यह तिथि जातकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, साथ ही व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा व तनाव आदि जैसी स्थितियों से उभारने का काम करती है। इस कारण से मार्गशीर्ष पूर्णिमा को अत्यंत ही महत्वकारी दिवस माना जाता है।

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तिथि व मुहूर्त

किसी भी पर्व, त्यौहार, व्रत आदि हेतु शुभ मुहूर्त तिथि आदि को अत्यंत ही महत्वकारी माना जाता है। इसके बिना जातक किसी भी व्रत आदि का पूर्ण लाभ ग्रहण नहीं कर पाते हैं। तो आइए जानते हैं  मार्गशीर्ष पूर्णिमा हेतु कुछ विशेष मुहूर्त व समय आदि।

दरअसल पूर्णिमा विशेष तौर मासिक पक्षों की काल अवधि तथा नक्षत्रों पर आधारित होती है। अतः इस मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि पर इसके नक्षत्र अर्थात मृगशिरा नक्षत्र की कालावधी 29 दिसंबर को संध्या 5 बजकर 32 तक रहने वाली है। हालांकि पूर्णिमा की तिथि का आरंभ 29 दिसंबर प्रातः 7 बजकर 56 मिनट पर हो जाएगा, जबकि इसका समापन 30 सितंबर को प्रातः 8 बजकर 59 मिनट पर होना निर्धारित है। जातकों को व्रत धारण करने हेतु 29 दिसंबर की तिथि का चयन करना चाहिए, तो वहीं व्रत के पारण अर्थात दान, धर्म आदि क्रियाकलाप हेतु 30 दिसंबर की तिथि का चयन करना चाहिए। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से यही आपके लिए शुभकारी हैं।

पूजा व व्रत विधि

  • मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पूजन व व्रत विधि आदि हेतु आप सर्वप्रथम मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जग कर किसी पवित्र नदी, अगर संभव हो तो माँ गंगा में जाकर गोता लगाएं, अन्यथा आप किसी भी अन्य पवित्र नदी या अगर पवित्र नदी या तालाब भी संभव ना हो तो आप अपने घर में स्नान कर रहे जल में गंगाजल मिश्रित कर लें।
  • तत्पश्चात स्नान करें, फिर सर्वप्रथम भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें।
  • भगवान सूर्य को जल से अर्घ्य प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें आप लाल पुष्प भी उन्हें अर्पित करें।
  • तत्पश्चात अपने इष्ट देवी देवताओं की पूजा-आराधना करने के साथ-साथ भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना की क्रिया भी संपन्न करें।
  • इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के कृष्ण स्वरूप की विशेष को तौर पर पूजा आराधना की जाती है, अतः इस दिन भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को स्थापित कर उनका पंचामृत से स्नान करें।
  • उनका श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र आदि धारण कराएं और उनकी अर्चना करें।
  • इस दिन जातकों को सत्यनारायण भगवान की पूजा व पाठ करवाना चाहिए।
  • आज आप भगवान विष्णु और भगवान श्री कृष्ण को चूरमा, माखन आदि का भोग लगाएं और प्रसाद को अन्य जातकों के मध्य बांटे भी।
  • पूजन आदि की प्रक्रिया को संपन्न करने के साथ जातकों को व्रत धारण करना चाहिए और फलाहार का सेवन दिन भर में एक समय करना चाहिए।
  • तत्पश्चात आप दूसरे दिन पुनः प्रातः काल स्नान की क्रिया किसी पवित्र जल, तालाब आदि या फिर अपने घर में ही अपनी इच्छा अनुसार विधि से संपन्न करें और भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हुए भगवान श्री हरि विष्णु तथा श्री कृष्ण की आरती करें।
  • तत्पश्चात जरूरतमंदों व साधु-संतों के मध्य दान-धर्म आदि के क्रियाकलाप का क्रियान्वयन करें।