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Karwa Chauth 2020: 4 नवंबर को है करवा चौथ, जांनिये व्रत धारण नियम से लेकर शुभ मुहूर्त व कथाओं के संबंध में

Karwa Chauth Date 2020, Story, Muhurat, Pujan Vidhi and Niyam

किसी भी कन्या के जीवन में विवाह जीवन का मूलभूत पड़ाव होता है जिसके बाद उसका जीवन संपूर्णतया परिवर्तित हो जाता है। विवाह को हिंदू धर्म में सात जन्मों का बंधन माना जाता है जिसमें एक स्त्री अपने सुहाग के प्रति स्वयं को पूर्णरूपेण समर्पित करती है तथा पुरुष भी आजीवन अपनी पत्नी के रक्षा हेतु व उसके हर अरमान को पूरा करने हेतु वचनबद्ध हो जाता है। हर पत्नी अपने पति के सुंदर सुखी जीवन हेतु मनोकामना करती है और अपने पति की लंबी उम्र के लिए दिन-रात ईश्वर से प्रार्थना करती है।

भारतीय महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र व सुख-समृद्धि व खुशहाली हेतु अनेक प्रकार के व्रत-उपवास, पूजा-पाठ आदि भिन्न-भिन्न प्रकार के सभी क्रियाकलाप करती हैं और अपने पति के प्रति अपना समर्पण भाव दिखाती हैं।

पूजा-पाठ त्योहार आदि में समर्पण और त्याग प्रदर्शित करने का एक पर्व करवाचौथ भी है। करवा चौथ को सभी सुहागन स्त्रियां अपने पति के लंबी आयु और अपने सुखी दांपत्य जीवन हेतु व्रत धारण करती है और दिन-रात भूखे प्यासे रखकर अपने पति के लिए ईश्वर से मनोकामना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म की सभी महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन भगवान शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा की पूजा होती हैं। हालांकि करवा चौथ के व्रत को कई कुंवारी लड़कियां भी अपने मनवांछित वर की प्राप्ति हेतु व्रत रखती हैं। करवा चौथ हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

इस वर्ष 2020 में करवा चौथ मलमास की वजह से 1 माह की देरी से हो रहा है, अर्थात इस वर्ष मलमास हो जाने की वजह से कार्तिक मास एक मास विलंब से आएगा जिस कारण से करवा चौथ के व्रत की तिथि 4 नवंबर की निर्धारित हुई है। करवा चौथ को सुहागन स्त्रियों के द्वारा किए जाने वाले व्रतों में से सर्वश्रेष्ठ और अत्यंत ही महत्वकारी माना जाता है। तो आइए, आज हम जानते हैं करवा चौथ व्रत धारण करने हेतु व्रत नियम, विधि, उचित मुहूर्त, तिथि, समय आदि के साथ-साथ करवा चौथ व्रत और पूजा के क्रियाकलाप एवं करवा चौथ व्रत के संबंध में पौराणिक मान्यताएं व कथाएं।

करवा चौथ व्रत हेतु पूजन मुहूर्त, तिथि व समय

हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार की तिथि मुहूर्त आदि का निर्धारण हिंदू पंचांग के मुताबिक होता है जिसके अनुसार हर वर्ष करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर 2020 को संपन्न होना है जिसमें करवा चौथ के पूजन हेतु उचित पूजन मुहूर्त 4 नवंबर की तिथि को संध्या कालीन बेला में 5 बजकर 29 मिनट से लेकर 7 बजकर 05 मिनट तक की है। करवा चौथ के पर्व पर चांद की विशेष पूजा आराधना की जाती है। अतः इस दिन चंद्रोदय का समय 8:16 का बताया गया है। वहीं अगर चतुर्थी तिथि के आरंभ और अंत की बात की जाए तो 4 नवंबर के ब्रह्म मुहूर्त में 3 बजकर 26 मिनट पर चतुर्थी तिथि का आरंभ होगा जिस का समापन 5 नवंबर की तिथि को सुबह 5 बजकर 14 मिनट पर होगा।

करवा चौथ व्रत विधि व नियम

हिंदू धर्म में एक विधान है जिसमें ऐसा कहा जाता है कि जिसका उदय उसी का अस्त। अर्थात यदि आप किसी भी व्रत आदि का धारण करते हैं तो उसमें सूर्योदय के पूर्व के काल अवधि से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि को बहुत ही अधिक महत्वकारी माना जाता है और सूर्योदय से सूर्यास्त तक की काल अवधि को ही दिन गिना जाता है।

इसी मध्य करवा चौथ के व्रत के नियम की अगर बात करें तो करवा चौथ का व्रत सूर्य उदय होने से पूर्व आरंभ होकर चंद्रोदय तक रखा जाता है, अर्थात करवा चौथ के व्रत हेतु 1 दिन पूर्व की रात्रि से ही अपना मन बना ले और स्वयं को आत्मिक तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें। दूसरे दिन सुबह प्रातः काल स्नान पूजा आदि की प्रक्रिया के साथ व्रत संकल्प धारण करें और अपने इष्ट व भगवान शिव गौरी लक्ष्मी गणेश कार्तिकेय आदि की पूजन कर दिन भर बिना अन्न जल ग्रहण किये व्रत धारण करें। तत्पश्चात चांद के निकलने के 1 घंटे पूर्व ही संध्या कालीन बेला में पुनः भगवान शिव, पार्वती, नंदी, गणेश, कार्तिकेय आदि की पूजा कर चंद्रोदय के पश्चात चांद की पूजा करें। उन्हें जल से अर्घ्य प्रदान करें, फिर अपने पति को चांद को छलनी में देखने के पश्चात छलनी में दीपक रखकर देखें और उनकी आरती कर अपने पति के हाथों से जल पान करें। तत्पश्चात मेवा मिष्ठान आदि भी खाएं फिर अपना व्रत तोड़े।

अविवाहित विवाह योग्य कन्याएं भी कर सकती है व्रत धारण

प्रायः लोगों के मन में यह दुविधा होती है कि करवा चौथ के व्रत को कुंवारी कन्याएं कर सकती है अथवा नहीं। मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के व्रत को विवाह योग्य लड़कियां अथवा जिन लड़कियों के विवाह तय हो चुके हैं, वह भी धारण कर सकती हैं। करवा चौथ दांपत्य जीवन को खुशहाल व अपने सुहाग की सुख-समृद्धि हेतु किया जाता है। इस कारण से कुंवारी लड़कियां भी अपने भविष्य व दांपत्य जीवन के सुखी संपन्न होने की कामना करते हुए व्रत को धारण कर सकती हैं। करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के जीवन व रिश्तों में प्रगाढ़ता लाने का व्रत माना जाता है। इस व्रत के धारण करने से जातकों के मन में चांद जैसी शीतलता व सौम्यता आती है और भगवान शिव गौरी का आशीर्वाद सदैव जातक व उनके पति के ऊपर बना रहता है। इससे पति की उम्र दीर्घायु होती है।

करवा चौथ व्रत कथा व मान्यताएं

करवा चौथ व्रत के संबंध में यहां कथा प्रचलित है कि वर्षों पहले एक साहूकार रहा करता था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी जिसका नाम करवा था। करवा के भाई उस से बहुत प्रेम करते थे और अपनी बहन के लिए अपने प्राण निछावर करने को भी तत्पर रहते थे। एक बार की बात है, करवा अपने विवाह के पश्चात अपने ससुराल से मायके आई थी और उसने अपने मायके में ही करवा चौथ का व्रत रखा था जिसमें उसने दिन-रात कुछ भी सेवन नहीं किया। बिना अन्न-जल ग्रहण किए करवा की हालत शाम ढलते-ढलते बिगड़ने लगी। करवा की यह हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई। करवा की सेहत की बिगड़ रही स्थिति को देख उनके भाइयों ने एक युक्ति निकाली और दूर से जाकर पीपल के पेड़ के पीछे से एक बड़ा दिया जला दिया और करवा से कहा कि बहन चांद उग आया है। अब तुम पूजन कर अपने व्रत को तोड़ लो।

करवा ने अपने भाइयों की चतुराई पर अधिक ध्यान नहीं दिया और अपना व्रत खोलकर भोजन ग्रहण कर लिया। दूसरे दिन प्रातः उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनने को मिला। तत्पश्चात उनके भाइयों ने अपने युक्ति के संबंध में बताया जिस पर सभी को काफी पछतावा हो रहा था और सभी दुखी व हताश थे। तत्पश्चात करवा ने बड़े ही शुद्ध मन से व्रत धारण करने का संकल्प लिया और भगवान शिव गणेश जी माता पार्वती और कार्तिक की जी की विधिवत पूजा आराधना की जिससे उसके पति के प्राण पर वापस आ गए और करवा विधि पूर्वक हर वर्ष व्रत धारण करने लगी। तब से करवा चौथ का व्रत और भी अधिक महत्वकारी माना जाने लगा और इसे सभी जातकों द्वारा मनाया जाने लगा।