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कामदा एकादशी

Kamada Ekadashi Vrat

सनातन धर्म में अनेकानेक प्रकार के व्रत-त्योहार आदि निहित है जिसमें एकादशी के व्रत को सर्वोत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी के व्रत का उल्लेख सभी धर्म ग्रंथों में मिलता है। इस व्रत के संबंध में स्वयं साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने भी महाभारत के काल में वर्णन किया है।

महाभारत के काल में एकादशी व्रत के महत्व को योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को समझाया जिसे श्री कृष्ण एवं युधिष्ठिर के संवाद के रूप में एवं अन्य पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्ण के संवाद स्वरूप में श्रीमद भगवत गीता में दर्शाया गया है।

श्रीमद भगवत गीता सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। श्रीमद्भगवद्गीता को सनातन हिंदू धर्म का मूल आधार माना जाता है, बल्कि भगवत गीता को तो धर्म, जात, पात आदि की बेड़ियों से काफी ऊपर एवं श्रेष्ठ माना गया है।

भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता के संबंध में यह कहा है कि कलयुग में मैं श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में विद्यमान रहूँगा। श्रीमद भगवत गीता को भगवान श्री कृष्ण के द्वारा गाए गए गीत के रूप में माना जाता है। अतः गीता में वर्णित तथ्यों व्रत-त्योहार आदि का काफी अधिक महत्व माना जाता है। इस कारण से भी एकादशी के व्रत को श्रेष्ठ माना जाता है। एकादशी के व्रत का धारण मुख्य रूप से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा आराधना पर आधारित होता है।

पूरे वर्ष भर में 24 एकादशी का व्रत माने जाते हैं जिसमें मलमास पड़ने पर एकादशी का व्रत वर्ष में दो और अधिक हो जाता है जिससे कि वर्ष भर में 26 एकादशी के व्रत मनाए जाते हैं।

24 प्रकार के एकादशी के व्रत प्रत्येक माह के दोनों अलग-अलग पक्षों कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को मनाया जाता है, अर्थात यह माह में दो बार पड़ता है जिसमें से कामदा एकादशी को काफी अधिक महत्वकारी माना जाता है।

कामदा एकादशी व्रत इस वर्ष अपनी तिथि व ग्रह-गोचरों की स्थितियों के अनुसार रामनवमी के 2 दिन पश्चात पड़ने जा रही हैं। तो आइए जानते हैं कामदा एकादशी व्रत के महत्व व्रत हेतु शुभ मुहूर्त तिथि यह साथ-साथ व्रत विधि आदि के संबंध में।

कामदा एकादशी व्रत का महत्व

कामदा एकादशी व्रत के संबंध में यह मान्यताएं प्रचलित है कि जो भी व्यक्ति कामदा एकादशी का व्रत धारण करते हैं उन्हें अपने 8400000 (चौरासी लाख) योनियों की नकारात्मक प्रवृत्तियों से उन्हें मुक्ति मिलती है। इस व्रत को धारण करने वाले जातकों के अंदर की दानवी प्रवृत्ति का नाश होता है।

वहीं इस व्रत के संबंध में यह भी मान्यता प्रचलित है कि जो भी सुहागन स्त्रियां कामदा एकादशी के व्रत को धारण करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कामदा एकादशी व्रत धारण करने वाले जातकों पर निरंतर भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा बरकरार रहती है, ऐसे जातकों के जीवन एवं घर परिवार में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। मूल रूप से एकादशी के अर्थ व महत्व के तौर पर जो भी जातक किसी भी एकादशी के व्रत का धारण करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस दृष्टिकोण से भी यह व्रत आपके लिए काफी लाभकारी एवं शुभकारी साबित होने वाला है।

एकादशी व्रत धारण करने वाले जातकों के घर में सुख-शांति व खुशहाली भी बरकरार रहती है, साथ ही ऐसे जातकों की सभी मनवांछित इच्छाओं की पूर्ति होने के पूर्ण आसार रहते हैं। अतः जातकों को वर्ष के सभी एकादशी के व्रत का धारण करना चाहिए, साथ ही कामदा एकादशी के व्रत का धारण भी अवश्य रूप से करना चाहिए। इससे जीवन में खुशहाली एवं शांति बरकरार रहती है।

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कामदा एकादशी व्रत हेतु तिथि एवं शुभ मुहूर्त

कामदा एकादशी व्रत हेतु ग्रह गोचर एवं सनातन हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 23 अप्रैल की तिथि निर्धारित है जिसके लिए कामदा एकादशी व्रत की तिथि का आरंभ 1 दिन पूर्व की ही रात्रि अर्थात 22 अप्रैल 2021 की रात्रि 11 बजकर 34 मिनट से हो जाएगा।

कामदा एकादशी के मुहूर्त अगले तिथि यानी 23 अप्रैल 2021 की तिथि को पूरे दिन भर बना रहेगा, तत्पश्चात इसका समापन 23 अप्रैल 2021 की ही रात्रि को 9 बजकर 47 पर हो जाएगा।

वहीं ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कामदा एकादशी व्रत के पारण हेतु द्वादशी तिथि यानी कि 24 अप्रैल की तिथि के सुबह 5 बजकर 45 मिनट से लेकर 8 बजकर 24 मिनट तक के मुहूर्त को काफी अधिक शुभकारी माना गया है। इस कालावधि में व्रत का पारण करना सार्थक एवं फलित माना जाता है। इस एकादशी के पारण की काल अवधि 2 घंटे 36 मिनट की रहेगी, अतः आप इसी दौरान पारण अवश्य ही कर ले।

कामदा एकादशी व्रत वाले तिथि को कई बेहतरीन शुभ मुहूर्त भी रहेंगे जिसमें कुछ शुभ मुहूर्त में से प्रमुख मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त को माना जाता है। इस दिन यानी 23 अप्रैल 2021 को ब्रह्म मुहूर्त प्रातः कालीन बेला में 4 बजकर 22 मिनट से लेकर 5 बजकर 03 मिनट तक बरकरार रहेगा। वहीं इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 55 मिनट से आरंभ होकर दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक बरकरार रहेगा।

तत्पश्चात इस दिन विजय मुहूर्त भी पड़ने जा रहा है। विजय मुहूर्त की शुरुआत दोपहर 2 बजकर 17 मिनट पर होने जा रही है जो कि दोपहर 3 बजकर 09 मिनट तक बरकरार रहेगा। तत्पश्चात पुनः संध्या कालीन बेला में गोधूलि मुहूर्त की शुरुआत होगी जिसकी कालावधि संध्या कालीन बेला में 6 बजकर 30 मिनट से 6 बजकर 47 मिनट तक बरकरार रहने वाली है।

इस दिन अमृत काल के भी योग हैं। अमृत काल इस दिन मध्यरात्रि 12 बजकर 19 मिनट पर आरंभ होगा जो कि रात्रि 01 बजकर 49 मिनट को यानी कि 24 अप्रैल की तिथि के प्रवेश तक बरकरार रहने वाला है।

अतः आप उपरोक्त शुभ मुहूर्त वह काल अवधि के अनुसार इस दिन अपने क्रियाकलाप, पूजा-पाठ आदि के कार्यक्रम को पूर्ण करें।

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व्रत धारण करने हेतु विधि विधान

जो भी जातक एकादशी के व्रत का धारण करना चाहते हैं, उन जातकों को एकादशी व्रत के 1 दिन पूर्व की तिथि यानी दशमी तिथि से नियमों के पालन हेतु सचेत हो जाने की आवश्यकता है।

  • आप दशमी तिथि को प्रातः स्नान पूजा कर इस दिन से ही तामसिक व अन्य मांस-मदिरा, लहसुन, प्याज आदि जैसे भोज्य पदार्थों के सेवन का परित्याग कर दें।
  • इस दिन आप संध्या कालीन बेला के पश्चात अन्न जल का परित्याग कर दे।
  • तत्पश्चात दूसरे दिन प्रातः कालीन बेला में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी आदि में स्नान कर लें, अथवा अपने घर के नहाने के जल में ही गंगाजल मिश्रित कर स्नान कर लें या फिर अपनी श्रद्धा भाव के अनुसार सामान्य तौर पर ही स्नान कर ले।
  • तत्पश्चात भगवान सूर्य को सर्वप्रथम अर्घ्य प्रदान करें और उन्हें लाल पुष्प अर्पित करें जिसके बाद आप भगवान श्री हरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी के पूजन पाठ की प्रक्रिया को आरंभ करें।
  • भगवान श्री हरि विष्णु को पीले वस्त्र धारण कराएं और पीले रंग का चंदन भी लगाएं।
  • इस दिन आप स्वयं भी पीले रंग का वस्त्र ही धारण करें और अपने मस्तक पर भी पीले रंग का चंदन का टीका लगाएं।
  • भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी के विधि-विधान से पूजन के पश्चात इष्ट देवी देवताओं की पूजन आराधना की प्रक्रिया को भी संपन्न करें एवं संध्या कालीन बेला में भगवान श्री हरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी की आरती भी करें।
  • साथ ही तुलसी के पेड़ में आज आप जल भी दें और संध्या कालीन बेला में तुलसी के पेड़ के समीप घी का दीपक अवश्य ही जलाएं और तुलसी माता की आरती भी करें।
  • इस दिन आप भोज्य पदार्थ के तौर पर केवल जल एवं फल का ही सेवन करें।
  • वहीं दूसरे दिन प्रातः काल उठकर पुनः पूजन व सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान की प्रक्रिया को संपन्न कर आप शुभ मुहूर्त अनुसार पारण करें। अगर संभव हो तो व्रत के पारण से पूर्व आप गरीबों तथा जरूरतमंदों में भोजन, अन्न, वस्त्र आदि का दान भी करें और अपने व्रत को श्रद्धा भाव के साथ संपन्न करें।