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सूतक काल के होते है कई विधान, जानिये इससे जुड़े धार्मिक नियम

Sutak Kaal se Jude Dharmik Niyam

जिस प्रकार हिंदू धर्म में अनेकानेक प्रकार की पूजा-पाठ, व्रत, त्योहार आदि निहित है, उसी प्रकार से हिंदू धर्म में कुछ ऐसे कालावधी आते हैं जिसमें सूतक का काल आरंभ हो जाता है, अर्थात उस समय पूजा-पाठ का करना वर्जित माना जाता है। ऐसे काल खंडों में से सबसे प्रथम स्थान पर सूतक काल आता है। शास्त्रों में सूतक काल को अशौच काल कहकर भी संबोधित किया गया है ।

सूतक काल दो परिस्थितियों में लगता है। पहला जब कभी आपके घर में किसी की मृत्यु हो जाती है, तत्पश्चात सूतक का काल लगता है। इसके अलावा यदि आपके घर में किसी नवजात शिशु का जन्म होता है, तब भी सूतक काल आरंभ हो जाता है। सूतक काल आरंभ हो जाने का तात्पर्य होता है कि आपके घर में किसी भी प्रकार के उत्सव-समारोह आदि व्रत-त्योहार आदि का समापन नहीं होगा। आपके घर में पूजा-पाठ व श्रृंगार पर निर्धारित दिनों तक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रोक लगा दी जाती है।

जब घर में किसी नवजात शिशु का जन्म होता है तब सूतक काल कम अवधि के लिए लगता है एवं इस का बहुत अधिक महत्व नहीं माना जाता है। जबकि यदि आपके घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो सूतक काल काफी कष्टकारी एवं महत्वकारी हो जाता है। आज हम मृत्यु के पश्चात लगने वाले सूतक काल से जुड़े कुछ विशेषताओं के संबंध में जानेंगे ।

तो आइए जानते हैं मृत्यु के पश्चात लगने वाले सूतक काल के दौरान जातकों को किस प्रकार की गतिविधियां करनी चाहिए एवं क्या कुछ इस दौरान नियम का पालन होना चाहिए।

जब किसी के घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके पूरे वंश में अर्थात उसके कुल के सभी जातकों के ऊपर सूतक काल लग जाता है एवं उन सभी लोगों के लिए सूतक काल के नियम लागू हो जाते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूतक काल अलग-अलग जाति वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग समय सीमा में निहित होता है। शास्त्रों की माने तो ब्राह्मणों के घर में किसी की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनके यहां 10 दिनों का सूतक काल लगता है, जबकि क्षत्रिय के यहां 12 दिनों का, वहीं वैश्य वर्ण के लोगों के घर में 15 दिनों का सूतक काल लगता है, जबकि शुद्र के घर में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उनके कुल के जातकों के ऊपर पूरे 1 माह तक का सूतक का लगता है।

वैसे कुछ विषम परिस्थितियों में जैसे कि यदि आप की पुत्री का विवाह निर्धारित हो चुका हो एवं उसके विवाह की तिथि तय है जिन्हें परिवर्तित नहीं किया जा सकता या अन्य किसी कार्यक्रम आदि हेतु समय निर्धारित है जिसे परिवर्तित करना काफी कठिन होता है, तो ऐसे समय में उस वंश के लोग 10 दिनों तक सूतक काल मानकर स्वयं की शारीरिक तौर पर शुद्धि कर लेते हैं। यहां शारीरिक शुद्धि का तात्पर्य छुआछूत वाले नियम से हैं। दरअसल जब किसी के घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस दौरान छुआछूत जैसी मान्यताएं भी होती है। वहीं तेरहवीं के दिन अर्थात किसी की मृत्यु के 13 दिन के पश्चात वाली तिथि को जातकों का पूर्ण शुद्धिकरण माना जाता है। तेरहवीं की तिथि को होने वाले संस्कार को त्रयोदशी संस्कार कहकर संबोधित किया जाता है। हालांकि इसे लोक बोलचाल की भाषा में तेरहवीं कहा जाता है।

शास्त्रों के मुताबिक किसी भी मृत्यु हुए घर में त्रयोदशी संस्कार अर्थात तेरहवीं के पश्चात ही पूजा-पाठ आदि का कार्यक्रम आरंभ किया जा सकता है। इसमें सर्वप्रथम भगवान विष्णु की पूजा करवाई जाती है, साथ ही सत्यनारायण भगवान की कथा के पाठ का भी श्रवण किया जाता है, तभी सूतक काल का निवारण हो पाता है।

यदि किसी दुर्घटनावश या दुर्भाग्यवश आपके घर में किसी की मृत्यु होने के 10 दिनों के अंदर ही पुनः किसी अन्य सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो सूतक की काल की अवधी पहले सदस्य की मृत्यु से 10 दिनों तक की ही मानी जाती है, अर्थात पहले सदस्य की मृत्यु पर लगे सूतक काल के अंत होने वाले दिन ही दूसरे सदस्य के मृत्यु के सूतक काल का भी अंत माना जाएगा।

शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार यदि किसी जातक के घर में पहले से सूतक काल आरंभ है एवं इसके समापन की तिथि के पूर्व यानी सूतक के दसवें दिन की रात्रि के तीसरे पहर से पूर्व तक में यदि किसी अन्य सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो सूतक काल की अवधि मात्र 2 दिन और बढ़ जाती है।

वहीं यदि घर के किसी अन्य सदस्य की मृत्यु पहले सदस्य के मृत्यु के दसवें दिन के चौथे पहर तक में होती है, तो सूतक की काल अवधि 3 दिन और अतिरिक्त बढ़ जाती है। हालांकि जो भी मुख्य जातक होते हैं अर्थात जो क्रिया कर्म को पूर्ण करने वाले जातक होते हैं उनके लिए सूतक काल 10 दिनों तक ही माना जाता है, बाकी अन्य सदस्यों के लिए सूतक काल 3 दिन और बढ़ जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यदि पिता की मृत्यु होने के बाद 10 दिनों के अंदर ही अंदर माता की भी मृत्यु हो जाती है तो क्रिया कर्म करने वाले जातक एवं उस वंश के अन्य सभी जातकों के ऊपर भी डेढ़ दिनों का सूतक और भी अधिक बढ़ जाता है। वहीं यदि माता की मृत्यु के पश्चात 10 दिनों के अंदर ही अंदर यदि पिता की मृत्यु हो जाती है तो सूतक काल की अवधि पिता की मृत्यु से अगले पूरे 10 दिनों तक की मान्य होती है।

जब कभी किसी की मृत्यु के पश्चात किसी कारणवश उसके मृत्यु वाले दिन उनका दाह संस्कार अर्थात अग्निहोत्री नहीं किया जाता है तो प्रायः यह दुविधाजनक स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि सूतक काल का आरंभ मृत्यु वाले तिथि से माना जाएगा अथवा अग्निहोत्र वाली तिथि से, ऐसे समय में जातकों को मृत्यु वाली तिथि से सूतक काल का आरंभिक समय मानकर चलना चाहिए, अर्थात अग्निहोत्र का क्रिया कर्म करने वाले जातक के लिए सूतक काल की अवधि मृत्यु से 10 दिनों तक ही मानी जाएगी।

किसी भी विवाहित पुत्री के लिए सूतक काल की अवधि 3 दिनों की ही मानी जाती है, अर्थात यदि विवाह के पश्चात किसी कन्या के माता पिता की मृत्यु हो जाती है तो उसकी पुत्री व उसकी पुत्री के पारिवारिक जनों के लिए सूतक काल की अवधि 3 दिनों तक की ही मानी जाती है।

जब मृत्यु के पश्चात घर में शव रखा होता है तो उस दौरान उस शव के इर्द-गिर्द अर्थात उस घर में होने वाले सभी गोत्र के जातकों के ऊपर सूतक काल लगता है जो 24 घंटे का माना जाता है।

यदि किसी अन्य गौत्र या वंश का व्यक्ति किसी अन्य जातक के घर में रहता हो, भोजन करता हो एवं उसके घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उस अन्य गोत्र के जातक के ऊपर भी सूतक काल 10 दिनों तक का लगता है।

यदि किसी की मृत्यु के उपरांत कोई अन्य व्यक्ति या आस-पड़ोस या अलग वंश का व्यक्ति उसके सब को कंधा देने जाता है या उसकी शव यात्रा में शामिल होता है, तो उन जातकों के लिए भी सूतक काल आरम्भ होता है जो केवल 1 दिनों के लिए ही मान्य होता है।

वहीं यदि मृत्यु होने वाले व्यक्ति का दाह संस्कार अर्थात मुखाग्नि व शव यात्रा आदि की प्रक्रिया सूर्यास्त के पूर्व ही समाप्त हो जाती है तो सब यात्रा में शामिल होने वाले अन्य वंश या गोत्र के जातकों के ऊपर सूर्यास्त के पश्चात सूतक काल प्रभावी नहीं होता है।

वहीं यदि दाह संस्कार की प्रक्रिया का समापन सूर्योदय के पश्चात अर्थात रात्रि काल तक होता हो तो सूतक काल अवधि अगले सूर्योदय के पूर्व तक बनी रहती है। सूतक काल के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं होते हैं ना ही घर के सदस्य श्रृंगार आदि करते हैं।