मानव जीवन में अध्यात्म का महत्व

Significance of Spirituality in Human Life

अध्यात्म एक दर्शन है, चिंतन धारा है, विद्या है, एवं हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है। आध्यात्मिक साधक के कर्म आशुक्ल - अकृष्ण अर्थात पुण्य व पाप से रहित होते है, जबकि साधारण मनुष्यों के कर्म तीन प्रकार के होते हैं ।

1) शुक्ल कर्म / पुण्य कर्म   
2) कृष्ण कर्म / पाप कर्म  
3) शुक्ल - कृष्ण / पाप व पुण्य कर्म।

आज का मानव आधुनिकता की ओर बड़ी निर्ममता से दौड़ रहा है। इस दौड़ में इंसान की आस्थायें इतनी दुर्बल हो गई है, कि वो सांसारिक वासनाओं की पूर्ति करने हेतु सामाजिकता व नैतिकता की सीमाओं का व्यापार करने लगा है जैसे सांसारिक वासना की तृप्ति ही सब कुछ है। आधुनिकता व तकनीकी से वह अमूल रूप से जुड़ गया है। क्षणभर के लिए हम उस अंतरजाल में फंसे व्यक्तित्व के बारे में सोचे तो हमें ज्ञात होगा कि ये ऐसा मकड़जाल है जिसमें फंसकर अनजान व नादान लोग देश के धर्म, संस्कृति और सभ्यता का सत्यानाश कर रहे हैं ।

आज का कड़वा सत्य यह है कि हमारा आधुनिक विज्ञान केवल सुख-सुविधाएं जुटाने तक ही सीमित है। धर्म, नैतिकता और विश्वकल्याण जैसी भावनाओं की, उसमें कोई जगह नहीं है। इसलिए अधिकांश वैज्ञानिक आविष्कार, मानव समाज के विकास में कम, विनाश में अधिक कारगर सिद्ध होते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी राक्षस, उसके अंतःकरण के धरातल पर इस कदर तांडव नृत्य कर रहे हैं कि उसे एक पल के लिए भी शांति प्राप्त नहीं होती। वह शांति की प्राप्ति के लिए संसार में जहां-तहां भटकता है किंतु सांसारिक नश्वर पदार्थों में, सुख- शांति कैसे विद्यमान हो सकती है।

हम एक पदार्थ का उपभोग करने के पश्चात, हम दूसरे की इच्छा करते हैं तथा दूसरे के उपभोग उपरांत तीसरे की। इसी प्रकार क्रमशः हमारी चेष्टाएं नित बढ़ती जाती है किंतु हमारी तृष्णा कभी शांत नहीं होती। कहते है कि शांति और तृप्ति का मूल स्रोत हमारे भीतर हमारी आत्मा में विद्यमान हैं, सांसारिक पदार्थों में नहीं। वह अध्यात्म तृप्ति की अभिव्यक्ति है, वहीं से अध्यात्म का आरंभ होता है। हम सब परमात्मा की संतान हैं, सभी में उस मेघ समान परमपिता की बूंद रूपी आत्मा विद्यमान है और उसको पहचानना ही अध्यात्म का परम सत्य है, तथा अपने रूप से अलग जो आत्म रूप है, उसका अध्ययन करना व अपने अंतर्मन के चेतन तत्वों का स्मरण करना और दर्शन करना ही सही अर्थों में अध्यात्म है। अध्यात्म को प्राप्त करने के लिए तीर्थाटन, पूजा और भजन काफी नहीं है। उसके लिए हमें ईश्वर के प्रति अपना अनुराग - प्रेम स्थापित कर, हमें ये चार कार्यों का अनुसरण करना होगा -

1) साधना,
2) स्वाध्याय
3) संयम
4) सेवा