ऐसे हुआ था पवनपुत्र हनुमान जी का जन्म

Aise Hua Tha Pawanputra Hanuman Ji Ka Janam

धार्मिक शास्त्रों में निहित तिथि एवं ज्योतिषीय गणना के अनुसार भगवान श्री हनुमान जी का जन्मदिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को मंगलवार के दिन हुआ था। जिस वक्त उनका जन्म हुआ था, उस वक्त चित्रा नक्षत्र मेष लग्न में योग भाव में था।

हनुमान जी केसरी और माता अंजना के पुत्र हैं। केसरी सुमेरु पर्वत के वानर राज हुआ करते थे। अंजना देव लोक की अप्सरा थी जो श्रापित होने के कारण वानरी स्वरूप में पृथ्वी लोक पर जन्म लेकर केसरी की पत्नी बनी थी। हनुमान जी के अनेकानेक प्रकार के नाम है, जैसे केसरी नंदन, अंजनी पुत्र, पवन पुत्र, बजरंगबली, मारुति नंदन आदि-आदि।

इन सभी नामों में 2 नामों में व्यक्ति दुविधा जनक स्थिति में प्रायः पड़ जाया करते हैं, कि भगवान श्री हनुमान पवन पुत्र हैं अथवा वानर राज केसरी के पुत्र हैं? चूँकि इन दो नामों के भिन्न-भिन्न अर्थ है, अतएव आपका संशय में पड़ जाना लाजमी है। चलिये आज हम आपको आपके इस जटिल प्रश्न का सामान्य एवं सरल भाषा में उत्तर प्रदान करते हैं।

दरअसल हनुमान जी के पवन पुत्र एवं केसरी नंदन नाम के पीछे का मर्म उनके जन्म के काल से जुड़ा है। आइए जानते हैं हनुमान जी की जन्म कथा-

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केसरीनन्दन क्यों कहलाते है पवनपुत्र?

भगवान श्री हनुमान वानर राज केसरी एवं माता अंजना के पुत्र हैं। इनके जन्म से संबंधित एक विशिष्ट एवं रोचक कथा प्रचलित है। दरअसल वानर राज केसरी की कोई संतान नहीं थी। विवाह के लंबे समय पर्यंत भी उन्हें किसी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी जिस कारण माता अंजनि संतान न होने एवं और महाराज केसरी अपने राज्य पाठ एवं संतान विहीन होने के दुख से तनावग्रस्त रहने लगे।

तत्पश्चात देवी अंजना ने स्वयं की संतान विहीन होने की पीड़ा एवं अपने पति महाराज केसरी के दुखों के निवारण हेतु एक सुप्रसिद्ध एवं तपस्वी ऋषि, मतंग ऋषि के पास मार्ग ढूंढने गई। तब मतंग ऋषि ने उन्हें यह सलाह दी कि पम्पा सरोवर के पूर्व की दिशा में एक नरसिंगा नामक आश्रम है, उसी नरसिंगा आश्रम के दक्षिण की दिशा में एक नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है। वहाँ जाकर वे स्नान कर लें, तत्पश्चात 12 वर्षों तक उपवास रखकर तपस्या करें। तत्पश्चात ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है।

देवी अंजनी ने अपने पुत्र वियोग में पुत्र विहीन एवं महाराज केसरी के कष्टों का निवारण करने हेतु तप करने का संकल्प लिया एवं इसके लिए उन्होंने महाराज केसरी से सर्वप्रथम अनुमति ली। तत्पश्चात उन्होंने तीर्थ में स्नान कर जप-उपासना आदि आरंभ किया।

माता अंजना ने निरंतर 12 वर्षों तक निर्जला हो करें केवल वायु का पान करते हुए तपस्या की, तत्पश्चात वहाँ वायु देव प्रकट हुए एवं उन्होंने माता अंजना को भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार रुद्रावतार के आदि स्वरूप हनुमान के रूप में उन्हें पुत्र प्रदान किया जिसे केसरी नंदन, पवन पुत्र, अंजनिनन्दन आदि-आदि नामों से जाना गया।

देवता गण भगवान श्री हनुमान को पवन देव के पुत्र होने के कारण पवन पुत्र के नाम से पुकारते थे, इसी कारण इनका एक शुभ नाम पवन पुत्र भी है।

कैसे करें अंजनिपुत्र को प्रसन्न?

मंत्रोपाय से करें हनुमान जी को प्रसन्न

हर मंगलवार को सूर्योदय के पश्चात मूंगे की माला से उक्त मंत्र का 251 बार जप करें, आपके सभी संकट दूर होंगे एवं घर-परिवार में सुख-शांति, समृद्धि व सिद्धि आएगी।

।। ॐ मारकाय नमः ।।

मंगलवार के ही दिन संध्याकालीन बेला में दीपक जलाकर भगवान हनुमान के समक्ष उक्त मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। सारे क्रियाकलाप आपकी अनुरूप होने लगेंगे।

ॐ महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते।
हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये।।

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मंगलवार के दिन उक्त मंत्र का जप करने से घर के सभी बुरे साए, कलह-क्लेश आदि समाप्त होते हैं। घर पर भूत-पिशाच, पैतृक कष्ट आदि की समस्याएं समाप्त होती हैं एवं सुख शांति समृद्धि पूर्ण सकारात्मक परिवेश उत्पन्न होता है।

ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय।
रसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।।
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।

कुछ अन्य उपाय

  • मंगलवार के दिन प्रातः काल ताजी रोटी और गुड़ का गाय को सेवन कराएं।
  • भगवान हनुमान के मंदिर जाकर प्रतिदिन उनकी पूजा आराधना करें।
  • हनुमान चालीसा का पाठ प्रतिदिन अवश्य करें।
  • मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ विशेष फलदाई होता है।