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करें इन 7 मन्त्रों का अनुसरण, पायें जीवन में सभी समस्याओं से मुक्ति

Chant these 7 mantras to get rid of all problems of life

हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि अपने शुभ दिन का आरंभ मनुष्य को शुभ क्रियायों, शुभ प्रतीकों व् प्रतिमाओं के स्मरण से करना चाहिए। इसलिए प्रातः कालीन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ जाने के पश्चात विभिन्न क्रियाओं से ईश्वर को नमन करना, मनुष्य रुपी इस धरा पर जन्म देने हेतु ईश्वर को धन्यवाद् प्रकट करना, कुबुद्धि का विनाश व् सन्मार्ग पर चलने का मार्गप्रदर्शित करना, श्रेष्ठ कार्यों को करने हेतु सदा बुद्धि विवेक प्रदान करना, जाने-अनजानें किये गए पापों से मुक्ति प्रदान करना, अपने ईश्वर के अंश रुपी शरीर से सर्वदा हित के लिए तत्पर रहना आदि ऐसी मंगल कामनाओं के साथ प्रातः काल ईश्वर का स्मरण कर विभिन्न मन्त्रों के जरिये उनका आवाहन करना चाहिए।

जीवन की बाधाओं से छुटकारा दिलाएंगे ये मंत्र

1)

कराग्रे वस्ते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम।।

अर्थात : मनुष्य के कर अर्थात हांथों के अगले भाग में देवी माँ लक्ष्मी जी का वास होता है। हांथों में अगले भाग का निर्माण सभी अँगुलियों (कनिष्ठिका, तर्जनी, मध्यिका, अनामिका, अंगुष्ठ ) के योजन से होता है। हांथों के मध्य भाग अथवा हथेली (जहाँ पर कर्म रेखायें सर्वविदित होती है) में देवी माँ सरस्वती का वास होता है तथा हांथों के अंतिम छोर अर्थात मूल भाग में परम ब्रह्म का वास होता है।

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ऐसी मान्यता है कि मनुष्य के हांथों में देवी-देवताओं का वास होता है। यह हमारे शरीर के प्रमुखतम अंगों में से एक है। हम समाज के हित व् अहित सभी क्रियाओं को अपने हांथों के द्वारा ही पूर्ण करते हैं। ( सर्वजनहितायें ) इसलिए हम इस मन्त्र के माध्यम से ईश्वर से यह कामना करते हैं कि हमारे हाथ सर्वदा श्रेष्ठ कार्य व् सबके हित हेतु तत्पर रहें। यह मान्यता है कि हमारे हाथ के अगले भाग में लक्ष्मी जी वास करती है, मध्य भाग में माँ सरस्वती जी का तथा हाँथ के मूल भाग में परमब्रह्म स्वयं अंश रूप में सभी मनुष्य में विराजमान है। इसलिए हमें प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम अपने हांथों को देखना चाहिए और इस मन्त्र का अनुसरण करना चाहिए।

2)

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।।

अर्थात : हे माँ! मुझे दैहिक अर्थात शारीरिक, दैविक अर्थात प्राकृतिक व भौतिक अर्थात सांसारिक जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति प्रदान करो। मुझ पर सर्वदा अपनी अनुकम्पा धन अर्थात सम्पदा, वैभव, ऐश्वर्य, समृद्धि  व्  धन्य अर्थात यश, विजय, आरोग्य, सुख, आदि रूप में बनाये रखो। मुझे अंतर्मन का दर्पण दिखा अन्तः कारण में अच्छे भाव व शुभ विचारों के अमूल्य मोतियों की माला को स्थापित कीजिये तथा सृष्टि के सभी दोषों (काम, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, आलस्य, प्रमाद) से सदा दूर रहने का मार्गदर्शन प्रदान कीजिये।

वर्तमान परिदृश्य में मनुष्य बाह्य जगत में पूर्णतः लीन है। वह अपने अंतर्मन को भूल कर बाह्य जगत में अपने आप को ढूंढने में व्यस्त है। इस मन्त्र के माध्यम से ईश्वर से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि वो हमें जीवन की सभी बाधाओं से मुक्त करने की कृपा करे। हमारे अंतर्मन से अहम् की भावना को समाप्त कर हम की भावना का समावेश करें। अर्थात हमारे अन्तः करण को शुद्ध कर सत्य का मार्ग प्रदर्शित करें।  

3)

सर्वमंगल मांगल्यै शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥

अर्थात : हे माँ त्रिनेत्री! आप सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने वाली है, आप सभी को शुभ, अशुभ, दुःख, सुख, हित, अहित आदि प्रदान करने वाली हैं, आप सभी का मंगल चाहने वाली हैं, ऐसी मंगलकारी, कल्याणकारी,  दुखहर्ता त्रिकालदर्शी, देवाधिदेव महादेव की अर्धांगिनी शिवा हो। आपने सभी पुरषार्थों को सिद्ध कर हमें आयामों को प्रदान करने वाली हो। कृपया सांसारिक जीवन के अनुसार हमें उनके अनुपालन हेतु प्रेरित कीजिये। आप सदा शरण में आये साधक को स्नेह व्  प्रेम प्रदान करने वाली हैं। ऐसी माँ नारायणी को में हृदय से नमन करता हूँ ।

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इस मन्त्र के अनुसरण से हम देवाधिदेव महादेव की अर्धांगिनी माँ नारायणी से यह प्रार्थना करते हैं कि सर्वदा हम पर वो अपनी अनुकम्पा हम बनाये रखे अथवा हमें जीवन के चार आयाम रुपी पुरषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का पूर्णतः अनुपालन कर सांसारिक जीवन सफल बनाने हेतु सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करें। इस कामना के साथ माँ नारायणी को सहृदय नमन।

4)

ॐ ह्रीं लृी बगलामुखी मम् सर्वदुष्टानाम वाचं मुखं पदं ।
स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं लृी ॐ स्वाहा ।।

अर्थात : ईश्वर स्वरूपा माँ बगलामुखी दुष्टों का नास करने वाली हो, कुशब्द, कुविचार व् दुर्वचन बोलने वाले मुखयुक्त दुष्टों का विनाश करने वाली हो, शत्रुओं  की जीव को बाधाओं से पूर्ण करने वाली हो व् शत्रु का विनाश करने वाली हो, ऐसी शक्ति स्वरूपा माँ बगलामुखी को मैं अपना प्रणाम समर्पित करता हूँ।

किसी कार्य में आ रही बाधाओं से मुक्ति हेतु जिसमे जीवन मरण का प्रश्न हो, यह मन्त्र उस परिस्तिथि में कारगर साबित होगा। किन्तु मुख्य बात यह है कि इस मन्त्र का जाप साधक को विधिपूर्वक ही करना चाहिए अन्यथा इसके विपरीत प्रभाव की सम्भावना निश्चित होती है।

5)

विद्याः समस्तास्तव देवी भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत का ते स्तुतिः स्तव्यपरा   परोक्तिः।।  

अर्थात : हे माँ सरस्वती ! संसार की समस्त  64 विद्यायें आप के ही विभिन्न रूपों में शुशोभित हैं। जगत की समस्त देवी, स्त्रियों में आपका ही अंश रुपी कीर्ति स्थापित है। इसी प्रकार सभी स्त्रियाँ आपकी ही प्रतिमूर्ति के रूप में इस धरा पर शोभायमान हैं। हे जगदम्बा आप ही पूरे संसार को अपने विभिन्न रूपों के माध्यम से प्रकशित करती है। अतः आपकी शक्ति अपार है, किस प्रकार कोई साधक आपकी आराधना कर सकता है। आप तो श्रेष्ट, श्रेष्ठतर व् श्रेष्ठतम से भी परे हैं। अतः आपकी आराधना के लिए इस सम्पूर्ण सृष्टि में पदार्थों का भी आभाव है।

6)

ओम गं ऋणहर्तायै नम:

अथवा

ओम छिन्दी छिन्दी वरैण्यम् स्वाहा

अर्थात : देवत्व स्वरूप करुणा की प्रतिमूर्ति, प्रतिक्षण अभयदान देने वाले, श्रेष्ट वर प्रदान करने वाले, सबके विघ्नों को हरने वाले विघ्नविनाशक गणेश जी को मैं सह्रदय प्रणाम समर्पित करता हूँ।  शास्त्रों व् पुराणों के अनुसार इस मन्त्र का जाप कर्ज से मुक्ति हेतु किया जाता है।

सामान्यतः जीवन में कई कार्य साधारण मानव के जीवन में ऐसे होते हैं जिसके लिए उसे कभी न कभी किसी न किसी से कर्ज लेना ही पड़ता है, जैसे घर में विवाह के उपलक्ष में, किसी परशानी में, शिक्षा के लिए आदि जरुरत की पूर्ति हेतु। जिस कारण वह अपना सम्पूर्ण जीवन उसकी पूर्ति  हेतु लगा देता है। उस कर्ज से मुक्ति प्राप्त हेतु इस मन्त्र का याजक को नित जाप करना चाहिए।

7) ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा।

अर्थात : हे शक्ति स्वरूपा, दुष्ट नाशिनी, कृपानिधान, ईश्वर की प्रिय देवी माँ काली आप अचानक आये जीवन में संकटों से मनुष्य को मुक्त करने वाली हैं, आपको मैं सहृदय प्रणाम समर्पित करता हूँ।

यह एक विलक्षण मन्त्र है जो मनुष्य को सभी संकटों, मुश्किलों व् परेशानियों से मुक्त करता है। इस मन्त्र का जाप सदा विधिपूर्वक ही करना चाहिए, अन्यथा इसका विपरीत प्रभाव सुनुश्चित होता है।